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पर्यावरण गिरफ्तार - कैसे आरे प्रोटेस्ट ने मुझे जेल में डाला

पर्यावरण गिरफ्तार - कैसे आरे प्रोटेस्ट ने मुझे जेल में डाला

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  • मेट्रो कार शैड बनाने के लिए 2,000 पेड़ों की कटाई का विरोध करने वाला मुंबई के सबसे बड़े सिटिज़न एक्शन मूवमेंट में से एक, आरे विरोध, मुंबई में ताकत और भावना का प्रदर्शन रहा है। और हम में से कुछ के लिए यह धैर्य के साथ लड़ाई लड़ने का सबक भी बन गया है।

अगर मेरी गिरफ़्तारी के तुरंत बाद मैं इसे लिखना शुरू करता, तो यह काफ़ी हताश भाव से शुरू होता। लेकिन मैंने इंतजार किया, जैसा कि सभी अच्छे काम को टालने वाले करते हैं, और यहाँ मैं अपनी कहानी की एक अलग शुरुआत के साथ हूँ। यहाँ तक कि जब मैं यह लिख रहा हूँ तब भी मेरा भाग्य, 28 अन्य लोगों के साथ, जिनको भी आरे विरोध के लिए गिरफ़्तार किया गया था,अनिश्चित बना हुआ है। लेकिन महाराष्ट्र की नयी सरकार के आश्वासन ने हमारी उम्मीद जगाई है। अभी के लिए तो ज़रूर। यह घोषणा की गयी है कि  '29 आरे प्रदर्शनकारियों' के ख़िलाफ़ केस को वापस ले लिया जाएगा। मुझे न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास है और मेरा मानना है कि न्याय होगा।

मैं अपने जीवन के अधिकांश समय किसी भी परेशानी से बाहर रहा हूँ। उस दिन तक न कभी मैंने ट्रैफिक के नियम तोड़े थे (कम-से-कम तोड़ते हुए पकड़ा तो नहीं गया था), न ही अंडरऐज ड्रिंकिंग के लिए पकड़ा गया था... आप बात समझ ही गए होंगे। मानो मेरे एकदम साफ़ रिकॉर्ड को हर तरह से तोड़ने के लिए 4 अक्टूबर 2019 को मुझे न सिर्फ़ लॉक-अप की गर्मी और घुटन का एहसास हुआ, साथ ही यह भी तय हो गया कि मैं हर दो सप्ताह में एक बार पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाऊँ।

मुझे पूरी आशा है कि आप लोगों में से किसी ने यह खुद नहीं भोगा होगा और इसीलिए उन दो दिनों में चीज़ें कैसी रहीं उनकी यह झलक है जो शायद अभी के समय के मुंबई के सबसे बड़े सिटिज़न एक्शन मूवमेंट का क्लाइमैक्स थे।

यह एक शुक्रवार की शाम थी, इसलिए मैं अपने दोस्तों के साथ हमारे वीकली रिचुअल में व्यस्त था जो बांद्रा के पीजे'स में काम के बाद मिलकर कुछ ड्रिंक्स लेना होता है। मेरे एक दोस्त, आदित्य, ने आरे के घटनाक्रम के बारे में ऑनलाइन पोस्ट किया कि कैसे वहाँ चल रही प्रोटेस्ट में गर्मागर्मी बढ़ रही थी क्योंकि जल्द ही पेड़ों के कटने की आशंका थी। इसलिए रात 11.45 बजे, मेरा दोस्त रूहान और मैं आरे के लिए रवाना हुए। बहुत सारी अस्तव्यस्तता और बैरिकेडिंग के बीच हम प्रोटेस्ट के स्थान तक पहुंचे। प्रोटेस्ट के गीत और नारे लगाते हुए एक बड़ी भीड़ सर्कल में बैठी हुई थी। एक घंटे के बाद, एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि हमें अगले 5 मिनट में उस जगह को खाली करना होगा। हमने एक लिखित आश्वासन पर जोर दिया कि कोई और पेड़ नहीं काटा जाएगा, लेकिन ऐसे कोई वादे नहीं किये गए। तब तक, यह गाने और नारेबाजी के साथ एक शांत विरोध था।

"प्रोटेस्ट के गीत और नारे लगाते हुए एक बड़ी भीड़ सर्कल में बैठी हुई थी। एक घंटे के बाद, एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि हमें अगले 5 मिनट में उस जगह को खाली करना होगा।"

पांच मिनट के बाद, पुलिस ने कार्यवाही शुरू कर दी; वे लोगों को पुलिस की वैन में जबरन ले जाने लगे। जैसा कि किस्मत में था, मैं और मेरे दोस्त हाथ खींच कर पुलिस वैन में डाले जाने वाले पहले लोग थे, जो फिर एक अनजान जगह के लिए अपना रास्ता बनाने लगी। बहुत लम्बे समय के बाद हमें एहसास हुआ कि हमें दहिसर पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा है। हम सभी ने पुलिस अधिकारियों की बातों का चुपचाप पालन करने का फैसला किया और उम्मीद की, कि थोड़ी देर में रिहा हो जाएंगे। पुलिस स्टेशन में आने पर पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया गया था और हम में से 17 को एक छोटे से निगरानी कक्ष में रखा गया (बाकी या तो दूसरे कमरे में या आरे थाने में थे) जो कि ज़्यादा से ज़्यादा 8-10 लोगों के लिए था, वो भी तब, जब कि कोई भी हिले-डुले नहीं। लेकिन हाँ, हमने एडजस्ट किया।

"हम में से 17 को एक छोटे से निगरानी कक्ष में रखा गया जो कि ज़्यादा से ज़्यादा 8-10 लोगों के लिए था, वो भी तब, जब कि कोई भी हिले-डुले नहीं"

एक इंस्पेक्टर ने जल्द ही सूचित किया कि हमें सुबह रिहा किया जायेगा। और इसलिए एक आरे संरक्षण समूह के वालंटियर के दिए हुए कुछ बिस्कुट खाकर एक लंबी रात बिताई गई। अगली सुबह, दो डिटेन किये हुए लोगों ने बताया कि उनकी परीक्षा थी। अधिकारियों ने मान लिया और कुछ डिटेल लेने के बाद उनको जाने दिया। लगभग 10 बजे, कुछ अधिकारियों ने फ़ॉर्म के साथ प्रवेश किया और एक-एक करके हमारा नाम और दूसरी डिटेल भरने शुरू कर दिए। किसी भी थाने में "ड्वेन निकोलस लसराडो" नाम को लिखवाने में बहुत समय लगा। उन्होंने हमारे अंगूठे के निशान भी ले लिए। कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था। पता चला यह एक अरेस्ट फ़ॉर्म था। हमें भरोसा दिलाया गया कि चिंता की कोई बात नहीं है। इसके तुरंत बाद, एक इंस्पेक्टर ने हमें बताया कि हमें ट्रायल के लिए बोरीवली कोर्ट ले जाया जा रहा था और हम पर भारतीय दंड संहिता की 4 धाराओं के तहत आरोप लगाए जा रहे थे। धारा 144 (अपराधिक बल का उपयोग करना, या अपराधिक बल दिखाना), किसी भी व्यक्ति को वह करने के लिए बाध्य करना जो वह कानूनी रूप से करने के लिए बाध्य नहीं है, या ऐसा नहीं करना जिसे करने का वह कानूनी रूप से हकदार है), धारा 149 (गैरकानूनी सभा), धारा 332 (अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे एक लोक सेवक को चोट पहुँचाना) और बहुत खतरनाक धारा 353 (हमला या आपराधिक बल का उपयोग करके किसी लोक सेवक को अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकना)। यह सब जबकि विरोध शांतिपूर्ण था।

"हम पर भारतीय दंड संहिता की 4 धाराओं के तहत आरोप लगाए जा रहे थे। धारा 144 ( अपराधिक बल का उपयोग करना, या अपराधिक बल दिखाना), किसी भी व्यक्ति को वह करने के लिए बाध्य करना जो वह कानूनी रूप से करने के लिए बाध्य नहीं है, या ऐसा नहीं करना जिसे करने का वह कानूनी रूप से हकदार है), धारा 149 (गैरकानूनी सभा), धारा 332 (अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे लोक सेवक को चोट पहुँचाना) और बहुत खतरनाक धारा 353 (हमला या आपराधिक बल का उपयोग करके किसी लोक सेवक को अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकना)।"

निगरानी कक्ष में इंतज़ार कर रहे आरे प्रदर्शनकारी

लेकिन जिस बात ने हमारा दिल तोड़ दिया वह यह खबर थी कि उस रात में अधिकारियों ने 2,000 से अधिक पेड़ों को काट दिया था। अगली सुबह नाश्ते के लिए एक वड़ा पाव, जो एक मानवाधिकार वालंटियर द्वारा दिया गया था, खाने के बाद हमें बोरीवली के कोर्ट में ले जाया गया। बोरीवली पहुंचने पर, हमें 'मेडिकल टेस्ट' के लिए जोगेश्वरी ट्रोमा अस्पताल ले जाया गया। एक ऐसा 'मेडिकल टेस्ट' जिसमें कागज के एक टुकड़े पर हमारे अंगूठे का निशान लगाना शामिल है। हमें अंगूठे का निशान जोगेश्वरी में देने के लिए एक वैन में ठूंसा गया। भूख, नींद और थकावट से परेशान हममें से किसी के पास भी ’परीक्षा’ की अजीबोग़रीब पर सवाल उठाने की हिम्मत बाकी नहीं थी। अदालत में कुछ अन्य प्रदर्शनकारी अपने दोस्तों और परिवार से मिले जिन्होंने हमें पानी पिलाया। फिर हम समर्थकों और मीडिया के लोगों के एक बड़े समूह के बीच अदालत में ले जाये गए। एक-एक करके, जज ने हमसे पूछा कि क्या हमें पुलिस से कोई समस्या है। जब हमने मना कर दिया तो यह तय हुआ कि हमें ठाणे जेल में न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाएगा। इस सब के बीच, हमारा सामान जो, अलग रखा गया था वह गायब हो गया था। मेरा बैकपैक, जिसमें मेरा चार्जर, किताबें, ईयरफ़ोन और सबसे महत्वपूर्ण मेरे दोस्त का वॉलेट और कार्ड भी था अब नहीं मिलने वाला था। यह स्पष्ट था कि संघर्ष जल्द समाप्त होने वाला नहीं था।

"मेरा बैकपैक, जिसमें मेरा चार्जर, किताबें, ईयरफ़ोन और सबसे महत्वपूर्ण, मेरे दोस्त का वॉलेट और कार्ड भी था, अब नहीं मिलने वाला था। यह स्पष्ट था कि संघर्ष जल्द ही समाप्त होने वाला नहीं था।"

हम में से 24 को होल्डिंग सेल में ले जाया गया, जो एक छोटी, अँधेरी जगह थी। यहां एक छोटा इंडियन-स्टाइल का शौचालय था जिसमें कोई लाइट नहीं थी, कोई खिड़की नहीं थी और बहुत ज़्यादा बदबू थी। लेकिन इस समय तक आते-आते हम ठाणे जेल की परेशानियों के बारे में सोचने के लिए बहुत थके हुए थे। हमारे ग्रुप के एक सीनियर सदस्य संदीप ने सबको शांत करने के लिए कहा कि हमें इसे एक कड़वे घूँट की तरह लेना चाहिए जिससे हम ज़्यादा मजबूत इंसान बनेंगे। इन शब्दों का अर्थ मेरे पिछले 24 साल के जीवन में सीखी गयी बातों से कहीं ज़्यादा था। तनाव को और कम करने के लिए, हमने आपस में परिचय का एक दौर करने का फैसला किया। सौभाग्य से उस दिन, हमें अपने दोस्तों और परिवार का दिया हुआ घर का खाना खिलाया गया। मन को शांत करने के लिए भरा हुआ पेट बहुत मदद करता है।

होल्डिंग सेल में कुछ घंटे पसीना बहाने के बाद इंस्पेक्टर ने हमें बताया कि हमें ठाणे जेल ले जाया जाएगा। उन्होंने हमें आश्वस्त करने की पूरी कोशिश की कि हमें अपराधी नहीं माना जाएगा और हम 'पॉलिटिकल प्रिज़नर्स' हैं। हमारे अनुमान के हिसाब से रात के 8.30-9 बजे होंगे जब हमें ठाणे जेल जाने के लिए तैयार होने के लिए कहा। मैं उस समय भी सेल के बाहर हमारा समर्थन कर रहे लोगों की संख्या देख कर दंग रह गया। मैंने अपने पापा को, जो मेरे कुछ दोस्तों के साथ बाहर थे, अपना वॉलेट, घड़ी, जूते, मोज़े आदि सौंपे। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वो मेरे साथ हैं, और इस नयी शक्ति के साथ, मैंने पुलिस वैन में प्रवेश किया जो हमें ठाणे जेल तक पहुंचाने वाली थी। हम में से अधिकांश नंगे पैर थे क्योंकि हम जेल के अंदर जूते नहीं पहन सकते थे। हम दोषी नहीं थे, पर इसके बावजूद हमारे साथ दोषियों जैसा व्यवहार किया जा रहा था। मराठी अच्छे से नहीं बोलने के कारण भी हमें मुश्किल हुई। बाद में एक कैदी ने हमें बताया कि मराठी नहीं बोलने वाले को ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

हम आखिरकार ठाणे जेल पहुँच गए। इसके बाद मेरी जो दिनचर्या थी, वह केवल फिल्मों में देखी गई है। हमारे कैश को जब्त कर लिया गया, और हमारी डिटेल फिर से लिखी गयी (जो दसवीं बार जैसा प्रतीत हो रहा था) और हमें स्ट्रिप-सर्च भी किया गया — अन्तःवस्त्रों को छोड़ के — और उठक-बैठक भी लगानी पड़ी। इसके बाद हम बैरक पहुंचे जो उस रात के लिए हमारा स्लीपिंग क्वार्टर भी था। जो आगे आने वाला था उसकी तो कोई तैयारी नहीं की जा सकती थी। यह जगह लगभग 150-200 सोते हुए लोगों से भरी हुई थी। ठाणे जेल की क्षमता 1000 कैदियों की है। जब हमने शनिवार रात को प्रवेश किया, तो अंदर कैदियों की संख्या 3,600 थी - 2,600 से अधिक। केयरटेकर हमारे लिए सोते हुए लोगों पर चिल्ला कर या उनको मार कर जगह बनाने की कोशिश कर रहा था।

खैर, उस बैरक में, दो लोगों के बीच, एक ठोस पत्थर की फ्लोर जो तिरपाल से ढकी थी, मैंने 48 घंटों में पहली बार एक नैप ली।

"यह जगह लगभग 150-200 सोते हुए लोगों से भरी हुई थी। केयरटेकर हमारे लिए सोते हुए लोगों पर चिल्ला कर या उनको मार कर हमारे लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहा था। "

इसके एक घंटे में ही दूसरे कैदियों को ज़्यादा सोने के लिए मारे जाने की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी। झपकी लेने के ख़याल को मैंने दूर कर दिया। फिर एक अटेंडेन्स का राउंड हुआ और हम नाश्ते के लिए गए। जिस तरह से हमारे सोने की जगह थी, उसी स्तर का नाश्ता था, जो शीरा और उपमा को एक साथ मिलाकर बनाया हुआ लग रहा था और उसके साथ मटमैली सी चाय परोसी गयी। कहने की जरुरत नहीं है कि हममें से अधिकांश लोगों ने इसे खाया नहीं और जिन्होंने खाने का प्रयास किया, उन्हें उस नाश्ते को फेंकना पड़ा l ऐसा करने के बाद, हमने अपनी प्लेटें और कटोरे धोए और बाहर आंगन में चले गए।

"जिस तरह से हमारे सोने की जगह थी, उसी स्तर का नाश्ता था ,जो शीरा और उपमा को एक साथ मिलाकर बनाया हुआ लग रहा था और उसके साथ मटमैली सी चाय परोसी गयी।"

हमें आश्चर्य हुआ जब एक अफसर नाई को लेकर आये। फिर हमें बताया गया कि हमारा 'हेयरकट' होगा। यह भी बताया गया कि इस दिनचर्या से वी.आई.पी. स्तर के लोग भी नहीं बच सकते। हमसे हमारी शर्ट उतरवाई गयी और हमें फर्श पर तिरपाल पर उकड़ू या घुटनों पर बैठने को कहा गया जिससे नाई हमारे बाल काट सकेl खैर, वहां के प्रभारी अफसर ने हमें बक्श दिया क्योंकि, जैसा उन्होंने कहा, "हम क्रिमिनल नहीं थे।" हम सभी उनकी तरफ़ एहसानमंद महसूस करने लगेl जहां तक शेव की बात थी, कोई क्रीम या साबुन नहीं था, बस पानी और एक ब्लेड।

राउंड टू में फिर से मेडिकल चेक-अप, फिंगरप्रिंट स्कैन और मग-शॉट क्लिक्स शामिल थे। जेल की ज़िंदगी में हमारी परेशानियों को बढ़ाने वाली यह बात थी कि घड़ी तक हमारी कोई पहुँच नहीं थी। बस समय साथ खिंचा जा रहा था। इससे पहले हमें समझ में आता, दोपहर के भोजन का समय हो गया था, जो नाश्ते की तुलना में बेहतर था - सूखी भकरी और बहुत कम नमक के साथ पानी वाली ग्रेवी।

बैरक में केयरटेकर ने हमारे आराम करने के लिए फिर से जगह बना दी थी l हमें यह पता चला कि केयरटेकर वो अपराधी बनते हैं जो आमतौर पर 25 साल तक की लंबी सजा काट रहे होते हैं। अन्य कैदी चोरी से लेकर हथियार रखने और यौन हमला करने के अपराध में वहाँ थे। व्यवस्था के बावजूद, ऊमस की वजह से हम सो नहीं पाएl देखभाल करने वालों में से एक ने जानबूझ कर पंखे को बंद कर दिया था क्योंकि किसी ने उसे बैरक में पानी भरने में मदद नहीं की थीl वह ज़ोर- ज़ोर से चिल्लाने लगा और तभी चुप हुआ जब हममें से एक उसकी मदद करने को तैयार हुआl अब हम वातावरण से घुलमिल रहे थे - इसीलिए एक कैदी हमारे "आरे कॉलोनी ग्रुप" के पास आया और हमें सलाह देने लगा - आप उत्तेजित मत होना। अगर कोई परेशानी हो तो केयरटेकर को बुला लेना। यह मददगार तो था लेकिन साथ ही ऐसा भी लगने लगा कि शायद हम लम्बे समय तक यहां रहेंगे। यह ख़याल ही दुखी कर रहा था।

हम सब के सामूहिक विचारों का जवाब लगा जब अफसर ने हमें फिर अटेंडेंस के लिए बुलाया। पता चला कि हमारी बेल पोस्ट हो गयी है। मेरा पहला ख्याल था, "आज मैं अपने बिस्तर में सोऊंगा। "अफसर को हमारे रविवार पर रिलीज़ होने का आश्चर्य हुआ जबकि कोर्ट और जेल बंद होते हैं। जिला कलेक्टर खुद ये देखने के लिए आए थे कि हमें ठीक तरीके से रिहा किया जाए। लम्बे अंतराल और कई नामों की जाँच, हस्ताक्षर और मेडिकल जाँच के बाद हमें हमारे रुपये सौंप दिए गए और प्रोसेसिंग एरिया से जेल के फाटकों की ओर ले जाया गया।

हमें बताया गया था कि पुलिस रिहाई की प्रतिक्रिया का स्तर छोटा रखना चाहती है और इसीलिए हमारे इंतजार में बाहर कोई भी मीडिया नहीं थी। हालांकि, हमारे शुभचिंतकों ने हमारा तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया, वह हमें मिलने के लिए बाहर खड़े थे। एक सच्ची देसी माँ की तरह मेरी माँ की पहली प्रतिक्रिया यह थी कि मैं शुक्रवार की रात को कहाँ गया था यह बात मैंने परिवार को क्यों नहीं बताई। बेशक इसके बाद उन्होंने मुझे गले से लगाया, लेकिन पहले उनकी मीठी डांट थी।

जेल से रिहा होने पर , ठाणे पुलिस स्टेशन हे बहार पोज़ करते हुए प्रदर्शनकारी
इमेज सोर्स: गूगल

आरे पर बन रहे मेट्रो के निर्माण के खिलाफ लड़ने वालों ने हमेशा विकल्प दिए हैं लेकिन वह किसी कारणवश सरकार के डिजाइन के साथ मेल नहीं खाते हैं। नई सरकार के आने के साथ, जंगल और शैड का भाग्य फिर अनिश्चित है, लेकिन शायद इस बार बेहतर तरीके से। पर नुकसान तो हो चुका है — पेड़ों को काट दिया गया है और अब एक ही उम्मीद कर सकते हैं कि हम या तो यहाँ से नुकसान को रोकें या उलट दें।

"लेकिन उन दो दिनों ने हमें प्रदर्शन वाले दिन से थोड़ा और मजबूत बना दिया था। यह एक कठिन काम है, लेकिन किसी ने नहीं कहा था कि आसान होगा।"

दिंडोशी कोर्ट के बहार पोज़ कर रहे आरे प्रदर्शनकारी
इमेज सोर्स: श्याम भोइर

उस रात को घर लौटते समय हमने चर्चा की, कि आगे का रास्ता कितना कठिन है। पुलिस स्टेशन में उपस्थिति देना, क्रिमिनल चार्ज — यह समझने के लिए बहुत सारी बातें थीं। लेकिन उन दो दिनों ने हमें प्रदर्शन वाले दिन से थोड़ा और मजबूत बना दिया था। इस घटना ने मेरा लोगों की बदलाव को लाने और गलत को चुनौती देने की शक्ति में फिर से विश्वास जगा दियाl यह एक कठिन काम है, लेकिन किसी ने नहीं कहा था कि आसान होगा।

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