"जागृति पैदा करो, भय नहीं"
- फ़ूड और एग्रीकल्चर कंसलटेंट और एक्सटिंक्शन रिबेलियन, मुंबई के शुभम कर चौधरी, बताते हैं कि अब क्लाइमेट क्राइसिस यानी पर्यावरण संकटकाल के ख़िलाफ़ हमें अपनी चुप्पी क्यों तोड़नी चाहिए।
Sushmita Murthy is a features writer with a penchant for…
उत्तेजक और भय-प्रसारक विरोधी भाषा के लिए विश्व प्रसिद्ध संस्था, एक्सटिंक्शन रिबेलियन ने पर्यावरण से जुड़े वर्णन और चर्चा को काफ़ी हद तक बदला है। मुंबई के प्रतिनिधि, शुभम कर चौधरी से हमने कुछ सवाल पूछे और यह जाना कि आज के समय में पर्यावरण के लिए अपनी आवाज़ उठाना क्यों अत्यंत आवश्यक है।
पर्यावरण में ३ सबसे चिंतित कर देने वाले बदलाव जिन्होंने खेती या कृषि को प्रभावित किया है।
- भू-जल में घटाव
- बढ़ती गर्मी
- अनपेक्षित और अस्थिर वर्षण
अनपेक्षित वर्षण कुछ फसलों की खेती के तौर-तरीकों को भारी नुक़्सान पहुँचा रही है और कुछ प्रजाति की पैदावार में बाधा बन रही है। ऊपर दिए गए कारणों की वजह से खेती बारी करने वाले श्रमिकों कि संख्या अब कम हो गई है। किसान अपने गाँव को छोड़ आस-पास के शहरों में प्रवास कर रहें हैं। कड़कती धूप में खेती करने के बजाय वह सेक्युरिटी गार्ड की नौकरी करना चुनेंगें क्योंकि इस नौकरी से ज़्यादा पैसे मिलते हैं।
इन सबका परिणाम यह होगा कि खाने और फसलों की भिन्नता और प्रजाति में घटाव आएगा, इसी के साथ पौषणिक गुणों में भी। इसका मतलब है कि हम कुछ प्रजाति की सब्ज़ियाँ, फसल और फल नहीं उगा पाएँगे। जिस वजह से खेत और कृषि उद्योग बड़े व्यापारों को बेच दिए जाएँगे जो फिर जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड यानी आनुवंशिका रूप से संशोधित किए गए फसलों को उगाएँगें, यह फसलें अकाल और बीमारियों के ख़िलाफ़ बची रह सकती हैं।
३ ऐसे तथ्य जो किसी पर्यावरण संदेही को क्लाइमेट क्राइसिस की ओर सही दृष्टिकोण रखना सिखाएँ।
ग्लोबल हीटिंग (हम ग्लोबल वॉर्मिंग से कहीं ज़्यादा आगे बढ़ चुके हैं) बीमारी उत्पन्न करने वाले जंतुओं के पर्यावरण में बदलाव लाकर और हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति को घटाकर, वायरल बीमारियों के होने की संभावना। टिड्डियों और कोरोना वायरस का बढ़ता प्रकोप इस बात को साबित करता है, विश्व स्वास्थ्य संगठन यह भी दावा करता है कि २०५० तक एन्टी बायोटिक रेज़िस्टेंस, जब बैक्टीरिया मौजूदा दवाइयों के ख़िलाफ़ ज़्यादा मज़बूत हो जाते हैं, कैंसर से भी ज़्यादा मृत्यु संख्या का कारण बनेगा।
बढ़ते तापमान के कारण पशुओं की हत्या अब पहले से कहीं अधिक मात्रा में हो रही है। कई परिस्थिति वैज्ञानिकों का मानना है कि ऑस्ट्रेलिया में लगी केवल एक भयानक वनाग्नि के कारण लगभग एक बिलियन पशुओं की मृत्यु हो चुकी है।
क्लाइमेट चेंज के कारण केरल में अब हर साल बाढ़ आती है। यह सावधान कर देने वाला एक बड़ा संकेत है।
३ ऐसे बदलाव जो पृथ्वी की चिंता कर रहे लोगों को (या फिर साँस लेने जैसा सरल कार्य तक कर रहें लोगों को) लाना चाहिए।
- उन लोगों को शिक्षित करें जो इस विषय की गंभीरता से परिचित नहीं हैं- आपके दोस्त या सहकर्मी या फिर पिछड़े हुए समुदाय।
- सोशल मीडिया पर जानकारी बाँटें ताकि आप भय नहीं, जागृति पैदा करें।
- इस विषय पर और ज़्यादा पढ़ें, केवल प्रतिकार करने के बजाय इस चर्चा का हिस्सा बनें।
क्लाइमेट क्राइसिस पर रौशनी डालने या फिर इसके ख़िलाफ़ कदम उठाने की प्रक्रिया में एक्सटिंक्शन रिबेलियन मुंबई ने योगदान कैसे दिया है? कृपया इसका वर्णन करें।
हम कला और संस्कृति का उपयोग कर कई समुदायों के साथ ज़मीनी-स्तर पर काम कर रहें हैं और जागरूकता फैला रहें हैं। हम मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिये और भी लोगों से जुड़ रहें हैं। हम और भी आंदोलनों से जुड़ कर उन्हें जनता से जोड़ने की कोशिश कर रहें हैं।
एक्सटिंक्शन रिबेलियन मुंबई या फिर पूरे एक्सटिंक्शन रिबेलियन भारत ने चर्चा करने के अलावा और क्या प्रतिक्रियाएँ एवं कदम सोच रखें हैं?
हमने राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में एक मुहिम शुरू की है जिसका नाम है 'टेल द ट्रूथ'- इसके तहत हम सरकार पर दबाव डालते है ताकि वह पर्यावरणीय क्राइसिस से जुड़े सच को बताएँ। सरकार को अलग-अलग दलों और समुदायों के साथ काम कर, जल्द से जल्द बदलाव लाने की प्रतिक्रिया पर जनता को जागरूक करना होगा।
हमें यह भी पता है कि यह किसी एक टीम, दल या संस्था के बस की बात नहीं। क्लाइमेट क्राइसिस एक ऐसा विशाल असुर है जिसके कई अंग और पहलू हैं। केवल अलग-थलग मुद्दों पर काम कर हम निरंतर बदलाव की अपेक्षा नहीं रख सकते। दुनिया को बचाने का कोई साधारण हल नहीं है।
हमने एक पहल महाराष्ट्र के चिम्बई गाँव में शुरू की जो की एक मछुआरों का गाँव हैं। हम कला का प्रयोग कर यहाँ के समुदायों से ज़मीनी स्तर पर जुड़ने की कोशिश कर रहें हैं। कुछ अन्वेषक हमे सोशल मीडिया पर सही तथ्य डालने में भी मदद करते हैं। २०२० भी एक महत्वपूर्ण साल है क्योंकि यह वह निर्णायक साल है जिसमे सरकार सही कदम उठा, बदलाव लाना शुरु कर सकती है। नीतियों को बदलने में समय लगता है इसलिए आज ही कदम उठाना होगा!
हम इस विषय पर जागरूकता फैलाते रहेंगें ताकि हम अपनी पहली मांग 'टेल द ट्रूथ' को पूरा कर सकें। इसके बाद हम अपनी मुहिम 'एक्ट नाउ' की ओर बढ़ेंगें जिसके तहत हम पर्यावरण से जुड़े उचित कदम लेने के लिए दबाव डालेंगें। हम बजट के आवंटन और उपयोगिता पर सवाल उठाएँगें और ऐसे कई कदम लेंगें। यह कार्य एक ऐसे जीव की तरह है जो हर एक दिशा में बढ़ रहा है। हमे लोगों को एकजुट करना होगा ताकि जनता लोकतांत्रिक तरीकों से अपने और अपने समुदायों के लिए निर्णय ले सकें।
सुष्मिता मूर्ति एक फ़ीचर्स राइटर हैं। सस्टेनबिलिटी से सम्बंधित विषयों में रूचि रखती सुष्मिता एक अनुभवी प्रोक्रस्टिनेटर हैं, जो विडम्बना से अपनी जीविका समयसीमा के पीछे भागते हुए कमाती हैं।