ग्रीन कारपेट
उन लोकप्रिय चेहरों के बारे में जाने जो अपनी स्टार पावर और मेहनत के साथ सस्टेनेबल बदलाव और ऐक्शन के लिए काम कर रहे हैं।
उन लोकप्रिय चेहरों के बारे में जाने जो अपनी स्टार पावर और मेहनत के साथ सस्टेनेबल बदलाव और ऐक्शन के लिए काम कर रहे हैं।
अभिनेत्री अमाला अक्किनेनी ने छह वर्ष की उम्र में पहली बार एक पशु का बचाव किया और तभी से बिना किसी रुकावट इस ओर कार्यरत हैं। 1992 में तेलुगु फिल्मों के सितारे 'नागार्जुना' से विवाह के पश्चात वे हैदराबाद में रहने लगीं जहां पशु आवासों और पशु कल्याण सुविधाओं की कमी ने उन्हें 'ब्लू क्रॉस फाउंडेशन' की स्थापना करने की ओर प्रेरित किया। आज अपने अट्ठाइसवें वर्ष में कदम रख चुकी 'ब्लू क्रॉस फाउंडेशन' ने विगत वर्षों में करीब 435000 पशुओं के बचाव और उपचार, सरकारी विभागों के साथ मिलकर पशु कल्याण के क्षेत्र में सुधार, प्रयोगशालाओं में पशु परीक्षण प्रक्रिया के निरीक्षण और अधीक्षण, पशुओं के बचाव में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों और अन्य नागरिकों के प्रशिक्षण अथवा अनेक लोगों तक पहुंच बनाने और जागरूकता कार्यक्रमों के संचालन का कार्य किया है। हालांकि पशु कल्याण उनके जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण रहा है, अक्किनेनी जीवन में समय समय पर अनेक संस्थाओं के साथ जुड़कर 'एच.आई.वी' से लेकर 'बाल और विधवा सशक्तिकरण' जैसे व्यापक उद्देश्यों से जुडे़ कार्यों में कार्यरत रही हैं। मनुष्य एवं पशुओं के प्रति उनकी निष्ठा और दया भाव प्रशंसनीय है।
नन्दिता दास वास्तव में सामाजिक विश्वसनीयता प्राप्त एक अभिनेत्री और निर्देशिका हैं। 'समाज कार्य में निष्णात' डिग्री प्राप्त होने के पश्चात अपने संदेश को प्रसारित करने के लिए वास्तव में सक्षम बनाने योग्य माध्यम मानकर उन्होंने फ़िल्म जगत में अपना मार्ग प्रशस्त किया। समाजकार्य के क्षेत्र में वे 'डार्क इज़ ब्यूटीफ़ुल' और उसके अनुगामी अभियान 'इंडिया हैज़ गॉट कलर' की पहचान के रूप में जानी जाती हैं। वे इस तथ्य पर आश्चर्य और निराशा व्यक़्त करती हैं कि हमारे देश में बड़ी संख्या में श्यामवर्णी लोगों के होने पर भी हम गोरापन पाने के लिए बड़ी राशि लगा देते हैं। इसके अतिरिक्त, दास ने 'सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट' के लिए 'वर्षा जल संग्रहण' के विषय पर ९० सैकेंड की अवधि की सार्वजनिक हित की एक फ़िल्म निर्देशित की है, 'अ ड्रॉप ऑफ़ लाइफ़' नामक जल साक्षरता को बढ़ावा देने वाली एक डॉक्यूमेंट्री में अभिनय किया है और मुंबई की 'आरे कॉलोनी' में वृक्ष की कटाई के विरोध में तीव्र स्वर उठाया है।
एक सफल व्यवसायी और उच्च श्रेणी के मीडिया शख्सियत, रोनी स्क्रूवाला की यूँ तो अनेक उपलब्धियां हैं, पर हम यहाँ प्रशंसा करना चाहते हैं स्वदेस फाउंडेशन की, जिसकी स्थापना उन्होंने अपनी पत्नी ज़रीना के साथ २०१३ में की थी। स्वदेस फाउंडेशन ग्रामीण भारत - ख़ास कर के किसानो - को समर्थ बनाने का प्रयास करती है, वो भी पर्यावरण अनुकूल प्रणालियों एवं आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करते हुए। हर गांव के सम्पूर्ण विकास पर ध्यान देते हुए स्वदेस ने महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में २५०० छोटे गाँवों में बस रहे ५ लाख लोगों के जीवन को बेहतर बनाया है। जैसे उन्हें चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना, स्कूलों और आंगनवाड़ियों को सहारा देना, शौचालयों का निर्माण करना, जल योजनाओं को आर्थिक सहयाता देना, किसानो को सिंचाई की आधुनिक तकनीकों में, धान की खेती में और ऐसे ही अनेक क्षेत्रों में सहयोग देना। हमारे ग्रामीण इलाक़ों को समृद्ध बनाने और विपरीत प्रवसन को बढ़ावा देने को समर्पित हैं रोनी और ज़रीना स्क्रूवाला। इसीलिए इस जोड़ी की हम जितनी प्रशंसा करें, कम है।
अगर अभिनेत्री और राजनेता गुल पनाग कि बिजली से चलने वाली गाड़ी (महिंद्रा E20) और उनके SVA-GRIHA द्वारा प्रमाणित पर्यावरण अनुकूल घर (ग्रीन होम -TERI, यानी "दी इनर्जी एंड रिसर्च इन्स्टिट्यूट", और "नवीन एवं नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय" कि एक पहल) को देखा जाए, तो पता चलता है कि गुल आज के युग के अनुसार एक जागरूक जीवन जीने कि हर सम्भव कोशिश करती है। मुलशी में स्थित गुल का घर कुदरत कि गोद में बनाया गया है। यह देश के चुनिंदा प्रमाणित पर्यावरण अनुकूल घरों में से एक है, जो कि बिजली का इस्तेमाल नहीं करता, बल्कि पूरी तरह से सूर्य ऊर्जा पे निर्भर करता है। इस घर में बारिश का पानी एकत्र करने कि, कुदरती रौशनी एवं गर्माहट का अधिकतम प्रयोग करने कि, और कूड़े से खाद बनाने कि पूरी व्यवस्था है। साथ ही इस में बड़ी-बड़ी दुगनी परत वाली खिड़कियाँ हैं और बेहतरीन वायु-संचालन का प्रबंध है जिसके कारण AC कि आवश्यकता ही नहीं रहती। स्वाभाविक है के ऐसे घर के आँगन में जड़ी-बूटियां और सब्ज़ियां भी उगती ही होंगी।
गुल एक ज़िम्मेदार इंस्टा सेलिब्रिटी तो हैं ही, उनके जीने का जागरूक ढंग हमें एक स्वस्थ भविष्य का मार्ग भी दिखाता है।
स्वच्छ भारत के सर्वप्रथम समर्थकों में से एक, पद्म श्री सुधा मूर्ति जी ने भारत के ग्रामीण इलाकों में १६,००० शौचालय बनवाने में योगदान दिया है। वे ग्रामीण भारत की महिलाओं की दशा देख कर बेहद परेशान हुई, जिन्हे प्रसाधन के लिए झाड़ियों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता था - एक ऐसा स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ा हुआ जोखिम जो आज भी हज़ारों-लाखों गाँवों की हकीकत है। सब से पहले सुधा मूर्ति जी का इस स्वच्छता-सम्बन्धी समस्या से सामना १९६० के दशक में हुबली में अपने इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों में हुआ, जहाँ महिलाओं के लिए कोई शौचालय ही नहीं था। लेकिन जब से उन्होंने १९९० के दशक में इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष का कार्यभार संभाला, तब से इस लेखिका और समाजसेविका ने स्वच्छता को अपनी समाज सेवा का एक अभिन्न अंग बना के रखा। साथ ही वे शिक्षा और संस्कृति पे भी विशेष ध्यान देती हैं। और हाँ, उनका लेखन भी हमें बेहद पसन्द है।
दस साल में पहली बार एक ऐसा वर्ष आया जिस में महाराष्ट्र के दिपेवडगांव के किसी भी परिवार को सूखे या बेरोज़गारी की वजह से अपना गाँव छोड़ कर नहीं जाना पड़ा। २०१९ में ऐसी और भी कई ख़ुशी भरी उपलब्धियाँ मिली हैं राज्य के कई आन्तरिक गाँवों को, जहाँ आमिर खान और किरण राव द्वारा चलाई जा रही पानी फाउंडेशन ने अपना असर दिखाया है। पानी फाउंडेशन की स्थापना २०१६ में तीन तहसीलों में की गई थी, और आज इसका दायरा बढ़ कर महाराष्ट्र के ४००० गाँवों में फैल गया है। पानी फाउंडेशन की सहायता से इन गाँवों में बाँध और खाई तैयार किये गए जिनकी कुल संचयन क्षमता १०००० करोड़ लीटर से भी अधिक है। आमिर के प्रसिद्घ टीवी कार्यक्रम सत्यमेव जयते की विचारधारा को एक वास्तविक रूप प्रदान करने के भाव से ये फाउंडेशन सभी गाँवों के बीच एक प्रतियोगिता का आयोजन करती है। सत्यमेव जयते वाटर कप उस गाँव को मिलता है जिसकी जल संरक्षण की कोशिश सबसे प्रशंसनीय हो। और कप से भी बढ़कर तोहफ़ा तो गाँव स्वयं ही खुद को देते हैं - पानी की तरंगों से भरे हुए तालाब और कुएँ।
हमें इंस्टाग्राम पर तनीषा मुखर्जी की ग्रीन मुहीम को ट्रैक करना बहुत पसंद है। अपनी माँ और जानी-मानी अभिनेता तनुजा के साथ स्टाम्प एन.जी.ओ.की को-फ़ाउंडर के रूप में तनीषा 2016 से अपने पर्यावरण के लिए प्रयासों के अंतर्गत पौधे रोप रही हैं। "हम सबको पेड़ उगाकर इस धरती पर अपना स्टाम्प लगाने के लिए कहते हैं, ये पेड़ उनके चिह्न होंगे। इससे हमें आशा है कि आने वाली पीढ़ियाँ पर्यावरण से उसी तरह जुड़ सकेंगी जिस तरह वो अपने आईफ़ोन से जुड़ी रहती हैं," तनीषा आज की स्थति पर चुटकी लेते हुए कैपशन में लिखती हैं।
वर्सोवा बीच क्लीन-अप के 2017 से नियमित वालंटियर रणदीप हूडा वही करते हैं जो कहते हैं। आप उनके सोशल मीडिया आकउंट को देखें तो आप उन्हें प्लास्टिक के कचरे में खड़े हुए हमारे तटों की दुखी स्थति को ठीक करने के लिए अपना योगदान देते हुए देखेंगे और साथ ही प्लास्टिक के प्रदूषण के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हुए पाएंगे। स्ट्रे डॉग्स को अपनी पैट फैमिली में अडॉप्ट करने से लेकर, प्लास्टिक फ़्री होने के लिए बैम्बू के टूथब्रश को चुनने और वाइल्डलाइफ़ कंज़र्वेशन को डॉक्यूमेंट करने और उसके प्रचार के लिए पी.आर.ओ.डब्लू.एल.,टाइगर कंज़र्वेशन की एन.जी.ओ. के साथ जुड़ने तक, रणदीप हमारे ईको-रडार पर बहुत आगे आते हैं।
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