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प्रकृति के संकट से लड़ें ग्रीन व्यंग्य के साथ

प्रकृति के संकट से लड़ें ग्रीन व्यंग्य के साथ

Sushmita Murthy
  • अपने शब्दों और सूझ-बूझ के माध्यम से इलस्ट्रेटर रोहन चक्रवर्ती वन और वन्य जीवन संरक्षण के मुद्दों पर एक नई चर्चा शुरू कर रहा है।

क्या आप जानते थे कि कोअला भालू पानी कभी-कभी ही पीते हैं क्योंकि वो नमी को उन पत्तों से ले लेते हैं जिनको वो खाते हैं? या ये कि पैराकीट, मैना और उल्लू जैसी चिड़ियाँ ब्रीड करने के लिए कठफोवड़ा के छेद काम में लेती हैं और उनके लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती हैं? या ये कि पुलिकट के मछुआरे कट्टुपल्ली पोर्ट में अडानी के बढ़ने के विरुद्ध लड़ रहे हैं? ये सब किसी एनसाइक्लोपीडिया या न्यूज़फ़ीड में लिखा हुआ ज्ञान नहीं है। ये जानकारी हमने ग्रीन ह्यूमर के इंस्टाग्राम पेज को देखने से हासिल की है। पर्यावरण से सम्बंधित न्यूज़ और जानकारी को एक मज़ेदार रूप में देना हमेशा से कार्टूनिस्ट और वन्य जीवन में रुचि रखने वाले ग्रीन ह्यूमर के रोहन चक्रवर्ती की प्रेरणा थी। सोशल मीडिया पर रोहन के 58,000+ से ज़्यादा फ़ॉलोअर होने से यह पता चल जाता है कि ये मज़ेदार ज़रूर है।

"हम इंटरनेट और सोशल मीडिया पर इतना समय बिताते हैं लेकिन फिर भी हमें अपने आस-पास के वातावरण की समस्याओं के बारे में पता नहीं होता है। मैं इसे बदलना चाहता हूँ," रोहन ने कहा। उसने डेंटिस्ट बनने की ट्रेनिंग पूरी की थी लेकिन अपनी इंटर्नशिप के समय ही मुँह के अंदर देखकर डेंटिस्ट बनने का विचार त्याग दिया। आज रोहन का काम सैंक्चुअरी एशिया, करंट कंज़र्वेशन, सस्टेनुएन्स और नेशनल जियोग्राफ़िक ट्रैवलर जैसे प्रकाशनों में छप चुका है और द हिन्दू, मिड-डे आदि जैसे प्रमुख अखबारों का एक नियमित हिस्सा है। रोहन ने डब्लू .डब्लू .एफ़., द वाइल्डलाइफ़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया, बी.एन.एच.एस., द ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल, द अरुणाचल प्रदेश स्टेट फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट और द कर्णाटक स्टेट फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट के साथ और भी संस्थानों के बहुत सारे संरक्षण मुहिमों के लिए भी काम किया है।

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"हम इंटरनेट और सोशल मीडिया पर इतना समय बिताते हैं लेकिन फिर भी हमें अपने आस-पास के वातावरण की समस्याओं के बारे में पता नहीं होता है। मैं इसे बदलना चाहता हूँ"

रोहन का काम उसकी दो सबसे पसंदीदा चीज़ों को साथ में लाता है - डूडल बनाना और वन्य जीवन। इसकी प्रेरणा भी बहुत है और इसका प्रभाव, भले ही छोटे स्तर पर हो, लेकिन फिर भी काफ़ी है। रोहन अपने पढ़नेवालों के जीवन पर प्रभाव ला कर खुश है। "खासकर उन लोगों से जो एक सस्टेनेबल बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। बहुत सारी महिलाओं ने मुझे लिखा कि उन्होंने मेरे काम को पढ़ने के बाद कैसे सस्टेनेबल मेंस्ट्रुअल हाइजीन प्रोडक्ट अपनाए। एक फ़्रांस के रीडर ने मुझे लिखा कि उसे नहीं पता था कि सीविट कॉफ़ी बनाने के लिए जिन सीविट कैट्स को पाला जाता है उनके साथ कैसा अत्याचार होता है। "एक दूसरे उदहारण में एक पेरू के पाठक ने पालतू एमेज़ोनियन बन्दर खरीदने के विचार को त्याग दिया जब उसने ग्रीन ह्यूमर में एमेज़ोन में हो रहे पालतू जानवरों के ग़ैरकानूनी व्यापार के बारे में पढ़ा।

"मुझे अपने अखबार की कार्टून स्ट्रिप के कारण नेगेटिव कमेंट और धमकियाँ हर जगह मिलते हैं... ट्विटर, इंस्टाग्राम या ईमेल पर भी।"

हमारी जिज्ञासा के लिए ज़रूर रोचक होंगे लेकिन ग्रीन ह्यूमर के कई इलस्ट्रेशन व्यवस्था या उस अधिकारी वर्ग को नहीं पचते हैं जिनकी रोहन सीधे तरह से निंदा करता है। एनवायरनमेंट मिनिस्ट्री का उन ऑइल और गैस की कंपनियों को छूट देना जो खोजपूर्ण ड्रिलिंग करना चाहती हैं, या एनवायरनमेंटल क्लीयरेंस से बचना चाहती हैं या ब्राज़ील के विवादास्पद राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को गणतंत्र दिवस की परेड के लिए न्यौता देने की ग्रीन ह्यूमर पर बहुत आलोचनात्मक टिपण्णी हुई। इसके कारण रोहन को बहुत ट्रोल्स भी सहने पड़े लेकिन इस बात को वो अच्छी तरह ही लेता है। "मुझे अपने अखबार की कार्टून स्ट्रिप के कारण नेगेटिव कमेंट और धमकियाँ हर जगह मिलते हैं... ट्विटर, इंस्टाग्राम या ईमेल पर भी। मैं समझता हूँ कि यह एक तरह से अच्छी बात भी है कि आपका काम किसी को इतना प्रभावित कर सकता है," रोहन ने कहा।

तीन विषय जिन पर हम सब को चिंता करना शुरू कर देना चाहिए - हमारे देश की सरकार और वैज्ञानिक संस्थाओं में दूरी, हमारे देश की अत्यधिक आबादी और फॉसिल फ्यूल यानी जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता।

रोहन ट्रोल्स तो झेल सकता है लेकिन वो उस दबाव को नहीं लेता कि एक कार्टूनिस्ट को मज़ाकिया ही होना चाहिए। "मैं अंदर से एक बोरिंग, चिड़चिड़ा बूढ़ा आदमी हूँ।मेरे दोस्त भी इस बात से सहमत हैं," ३२ साल के रोहन का कहना है।लेकिन तीन विषय हैं जिन पर रोहन चाहते हैं कि हम सब को चिंता करना शुरू कर देना चाहिए -  हमारे देश की सरकार और वैज्ञानिक संस्थाओं में दूरी, हमारे देश की अत्यधिक आबादी और फॉसिल फ्यूल यानी जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता। इन बातों पर हमें जल्द-से-जल्द चर्चा करनी चाहिए और फैसले लेने चाहिए। रोहन ने करीब दस सालों में अनेक माध्यमों के साथ काम किया है, जैसे किताबों के लिए इलसट्रेशन, टाइगर रिज़र्व, तटवर्ती शहरों के लिए मानचित्र यानी नक़्शे आदि। लेकिन वो मानते हैं कि यह सिर्फ शुरुआत है। अब आगे वो बच्चों के साहित्य पर ज़्यादा काम करना चाहते हैं ताकि बच्चे कम उम्र से ही वन्य जीवन में रूचि लेने लग जाएँ।

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