आप को कम्पोस्ट आज से ही क्यों शुरू करना चाहिए
- हम इंसान वह इकलौती प्रजाति हैं जो ऐसा वेस्ट बनाते हैं जो प्रकृतिक रूप से डिकम्पोज़ नहीं हो सकता है जिसके कारण कॉम्पोस्ट करना शहरी जीवन का न सिर्फ़ महत्वपूर्ण बल्कि बहुत ज़रूरी हिस्सा बन गया है।
We’re a team that is unlearning modern-day, convenient living to…
अपनी किताब ‘वेस्ट औफ़ अ नेशन - गार्बिज एंड ग्रोथ इन इंडिया'में लेखकगण अस्सा डोरोन और रॉबिन जेफ़्री ने लिखा है कि हर साल इंडिया में 65 मिलियन टन वेस्ट बनता है। पाठक के इस संख्या को समझने के लिए मानें कि जो 38 मिलियन टोयोटा कारों को एक के ऊपर एक रखने पर दिखेगा, उतनी मात्रा में यह वेस्ट है। दिल्ली के लैंडफ़िल तो 10 साल पहले ही अपनी चरम सीमा तक पहुँच गए थे और मुंबई का देवनार लैंडफ़िल अपनेआप में एक विस्फोटक जगह बन रही है जहाँ दो बार आग लग चुकी है जिसके कारण वह पूरी जगह बहुत दिनों तक टॉक्सिक धुँध में घिरी रही।
हम अपने ही बनाए हुए वेस्ट में डूब रहे हैं और उससे हमारा दम घुट रहा है। इस वेस्ट का 50% हिस्सा या तो ऑर्गैनिक तत्व है या फिर बायोडिग्रेडेबल चीज़ों से बना हुआ है जिसका एक बड़ा हिस्सा हमारे किचन का वेस्ट है। ये संख्या ज़रूर बहुत बड़ी है लेकिन आप ये सोचने के पहले कि आप कैसे मदद कर सकते हैं, ये सोचें कि एक साधारण शहरी इंडियन हर दिन कम से कम 700 ग्राम सॉलिड वेस्ट बनाता है, जो पूरे साल में क़रीब 250 किलो हो जाता है। इसमें से 125 किलो से ज़्यादा गीला वेस्ट है।
इसका यह मतलब है कि एक जना खुद 100 किलो से ज़्यादा वेस्ट को लैंडफ़िल में जाने से रोक सकता है। और एक औसत परिवार के रूप में आप 400 किलो से ज़्यादा वेस्ट कम कर सकते हैं! ये परेशानी बहुत बड़ी है लेकिन अच्छी बात ये है कि हमारा योगदान इसको सुलझाने में काफ़ी मदद कर सकता है। अगर आपके लिए काम्पोस्ट करना नया है, आप इसके बारे में यहाँ जान सकते हैं।
1. काम्पोस्टिंग क्या है?
काम्पोस्टिंग वेस्ट की व्यवस्था और खाद बनाने का एक प्राकृतिक तरीक़ा है। ऑर्गैनिक तत्व जब प्राकृतिक रूप से मिट्टी में पनप रहे बैक्टीरीया, फंगस , कीड़े और मकोड़ों के माध्यम से ब्रेकडाउन होते हैं तो कम्पोस्ट बनता है। एक बार बनने के बाद उसे खाद के रूप में काम में लिया जा सकता है जिससे मिट्टी के गुण बरक़रार रखते हुए उसे और बेहतर बनाया जा सकता है। अगर आप प्रकृति में देखें तो हरी और सूखी पत्तियां, शाखाएं, टहनियां, जानवरों का वेस्ट, सब्ज़ियों का वेस्ट - ये सब मिट्टी के जीवाणुओं की मदद से अच्छी खाद में बदला जाता है। कम्पोस्टिंग वेस्ट को एक नियंत्रित माहौल में प्रोसेस करने के लिए प्रकृति की क्षमता को काम में लेता हुआ एक तरीका है।
2. कम्पोस्टिंग के क्या प्रकार हैं?
कम्पोस्टिंग के तीन प्रकार ज़्यादा काम में लिए जाते हैं:
ए. एरोबिक कम्पोस्टिंग:
ये प्रकार शहरी घरों में रहने वाले काम में लेते हैं। एरोबिक, जैसा कि नाम से पता चलता है, में ऑर्गेनिक तत्वों को ब्रेकडाउन करने के लिए हवा का सर्क्युलेशन काम में आता है। ऑर्गेनिक मैटर में गीला किचन का वेस्ट, सूखी पत्तियां, घास, ब्राउन पेपर, कार्टन, कोकोनट फाइबर आदि हो सकते हैं। इस तरह की कम्पोस्टिंग किसी भी कंटेनर में हवा और ऑक्सीजन के संचार के लिए छेद करके ही जा सकती है। ऑर्गेनिक वेस्ट और माइक्रोब (सेल्यूलोलाइटिक और लिग्नोलाइटिक के माइक्रोऑर्गैनिज़्म का कल्चर) का मिक्सचर माइक्रोबियल एक्टिविटी को बढ़ाता है जिससे कम्पोस्ट को 30-40 दिनों में तैयार होने के लिए मदद मिलती है। ये कम्पोस्टिंग का तरीका अनएरोबिक कम्पोस्टिंग से ज़्यादा जल्दी काम करता है। शुरुआत के लिए एरोबिक कम्पोस्टिंग अपनाना ज़्यादा अच्छा रहता है।
बी. अनएरोबिक कम्पोस्टिंग:
ये तरीका एरोबिक कम्पोस्टिंग का उल्टा है। अनएरोबिक कम्पोस्टिंग में एकदम अलग तरह के माइक्रोऑर्गेनिज़्म चाहिए होते हैं जिनको रहने के लिए हवा या ऑक्सीजन की ज़रुरत नहीं होती है। तो इसमें आप अपने गीले वेस्ट को एक ऐसे कंटेनर में डालते हैं जिसमें छेद नहीं होते हैं और एक एयरटाइट ढक्कन होता है। ये तरीका वेस्ट प्रोसेस करने वाले कारखानों में बड़ी मात्रा में म्युनिसिपैलिटी और थोक में बनने वाले वेस्ट को ट्रीट करने में काम आता है। ये तरीका गावों के बायो गैस/गोबर गैस सिस्टम में काफ़ी अच्छा साबित होता है जहां बनी हुई मीथेन को खाना बनाने में, गरम करने में और बिजली बनाने में काम में लिया जाता है। अगर आपके पास जगह की कमी हो तो ये छोटे स्केल पर घर में भी काम में ली जा सकती है। एक साधारण अनएरोबिक होम कम्पोस्टर रख-रखाव के हिसाब से 45-60 दिन लेता है।
सी. वर्मी कम्पोस्टिंग:
वर्मी कम्पोस्टिंग ऑर्गेनिक मलबे को कम्पोस्टिंग वर्म और लाल वर्म की मदद से वर्म कास्टिंग में बदलने का प्रोसेस है। मिट्टी को उपजाऊ बनाये रखने के लिए वर्म कास्टिंग बहुत ज़रूरी हैं और इनमें वातन, सरंध्रता, संरचना, जलनिकास और नमी को रखने की अच्छी क्षमता है। ये तरीका बड़ी और खुली जगहों में कम्पोस्टिंग के लिए ज़्यादा अच्छा है।
3. बिन में किस तरह का वेस्ट जा सकता है और किस तरह का नहीं जाना चाहिए?
फल और सब्ज़ियों के छिलके, चाय पत्ती या कॉफ़ी, गार्डन का वेस्ट, पेपर के चीज़ें, अण्डों के छिलके वगैरह बिन में जा सकते हैं। प्लास्टिक, कांच, मेटल, अल्युमिनियम फॉइल, शराब, इ-वेस्ट और बायो-मेडिकल वेस्ट नहीं जाने चाहिए।
कम्पोस्टिंग के बारे में गलत धारणाओं को दूर करें।
ये सबसे बड़ी गलत धारणा है कि कम्पोस्टिंग में बहुत काम करना होता है। वर्म और माइक्रोब अधिकतर काम कर देते हैं। दूसरी गलत धारणा है कि उससे बदबू आती है। सच में नहीं आती, बल्कि एक अच्छे से हवादार जगह में रखे हुए कम्पोस्ट बिन में से मिट्टी जैसी महक आती है। तीसरी गलत बात ये है कि कम्पोस्टिंग बहुत जगह घेरती है। आप अपने वेस्ट बनने और जगह की ज़रूरतों के हिसाब से बिन चुन सकते हैं।
5. कम्पोस्ट क्यों करना चाहिए?
आप अगर ये सोचते हैं कि कम्पोस्टिंग से हमारे प्लैनेट पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, आप फिर से सोचिये। मुंबई जैसे शहर में हम रोज़ 70% ऑर्गेनिक वेस्ट, जो कम्पोस्ट हो सकता है, लैंडफिल में डाल रहे हैं। जो ऑर्गेनिक तत्व हम ट्रैश कर देते हैं वो क्लाइमेट चेंज पर प्रभाव डालते हैं। वेस्ट डिस्पोज़ल के तरीके (जला देना, वॉटर बॉडीज़ या लैंडफिल में डाल देना) बहुत ज़्यादा प्रदूषण फैलाते हैं जिससे बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसें निकलती हैं। डिसेंट्रलाइज़्ड तरीके से वेस्ट को रिसाइकिल करने से हमारे लैंडफिल पर दबाव कम होगा और इस प्रोसेस में अच्छी खाद बनेगी जो आपके गार्डन के पौधों को और अच्छा बनाएगी। इसके सिवा कुछ म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन खाद बनाने के लिए इन्सेंटिव भी देते हैं। जैसे मुंबई की हाउसिंग सोसाइटीज़ 15% प्रॉपर्टी टैक्स रिबेट पा सकती हैं अगर वे कचरे को अलग करने के तरीके फॉलो करती हैं, गीले वेस्ट की कम्पोस्टिंग करती हैं, सूखे वेस्ट को रियूज़ करती हैं और ग्रे वॉटर (टॉयलेट वेस्ट के शिव कोई भी पानी जो घरों से ड्रेन होता है उसे ग्रे वॉटर कहते हैं जैसे, बर्तन या कपड़े धोने या नहाने में काम आया हुआ पानी ) को रिसाइकिल करती हैं।
राजेश्वरी होम और कम्युनिटी कम्पोस्टिंग सोल्यूशन के लिए कंसलटेंट है
हम आज की आसान जीवनशैली को भूल कर पर्यावरण के अनुकूल, नैतिक जीवन जीने का प्रयास कर रहे लोगों की टीम हैं, और इस प्रक्रिया में जो कुछ हम सीख रहे हैं वह हम अपने पाठकों से साथ बाँट रहे हैं।