देहिंग पटकई से आत्मीयता स्थापित करें
- भारत के वर्षावनों के अंतिम अस्तित्व के रूप में बचा एक वर्षा वन संकट में है। एक सक्रिय कार्यकर्ता बता रहे हैं कि घर में आराम से बैठे हुए भी आप कला सृजन से लेकर ट्विटर पर ज़ोरदार आवाज़ उठाने जैसे माध्यमों से किस प्रकार इस वन को विनाश से बचा सकते हैं।
Nishant Bangera is the founder of Muse Foundation, a youth…
"क्या हम देहिंग पटकई के बचाव के लिए कार्य कर सकते हैं?" इस वर्ष के प्रारंभ में मेरी टीम के एक सदस्य ने पूछा। उस समय मुंबई में बैठे हुए मुझे इस लड़ाई के विषय में बहुत कम जानकारी थी। हमारे पास अपर्याप्त सूचनाएं थी इसलिए मैं इस सोच विचार में था कि आगे क्या किया जा सकता है। असम के पुराने अनुभवी लोगों तक पहुंचना निश्चित रूप से किया जाने वाला पहला कार्य था। किन्तु सूचनाएं एकत्रित करना इतना चुनौतीपूर्ण नहीं था जितना कि उसका प्रसार पूरे भारत में करना चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उस समय तक लोगों का दृष्टिकोण यह था कि उत्तर पूर्वीय क्षेत्र की समस्या केवल उन्हीं की समस्या है। यह एक कटु सत्य है कि भारत के उत्तरपूर्व के प्रति बखूबी पक्षपात किया जाता है।
इस पक्षपात के कारण उत्तरपूर्व के वासियों की देश के दूसरे भागों में रहने वाले लोगों के वृहद समुदाय का ध्यान आकर्षित करने की लड़ाई कठिन हो जाती है। परन्तु अभी उम्मीद की किरण शेष है क्योंकि आज के युवाओं द्वारा इन पारंपरिक जनसांख्यिकीय और कथात्मक चीज़ों को विगत इतिहास बनाया जा रहा है। 'आरे आन्दोलन' में अपना विनम्र सहयोग देने के पश्चात मुझे ज्ञात था कि हम देहिंग के मुद्दों को मुंबई और दिल्ली जैसे देश के दूसरे भागों, जहां तथाकथित निर्णयकर्ता विराजमान हैं, वहां प्रकाश में ला सकते हैं।
वास्तविक समस्या
देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व 937 वर्ग किलोमीटर के घने वनस्पतियों से ढके एक विस्तृत भूखण्ड में स्थित है। यह एक प्रचुर हरितिमा से युक्त तराई वाला वर्षा वन है जिसे प्रायः पूर्व के अमेज़न के नाम से जाना जाता है। वन्य जीवन से भरपूर यह रिज़र्व 'बाघ' जैसी विलुप्ति के खतरे में पड़ी और प्रथम सूची की प्रजातियों का तथा 'मार्बल्ड कैट', 'एशियाटिक गोल्डन कैट', और 'क्लाउडेड लेपर्ड' जैसे दुर्लभ और भेद्य मांसाहारी पशुओं का निवास है। 'आईयूसीएन' की लाल सूची में शामिल खतरे में पड़ी एक भालू प्रजाती, 'मलायन सन बियर' भी देहिंग पटकईमें पाई जाती है। इसके अतिरिक्त 'देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व', 'द होलोंग' और 'फॉक्स टेल ऑर्किड' जैसे क्रमशः असम के राज्यीय वृक्ष और राज्यीय पुष्प से लेकर 'व्हाइट विंग्ड डक' जैसे राज्यीय पक्षी जैसी प्रजातियों का निवास है जिनका असम के निवासियों के लिए वृहद सांस्कृतिक महत्व है।
अप्रैल 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच 'नेशनल बोर्ड फ़ॉर वाइल्डलाइफ़' ने 'कोल इंडिया लिमिटेड' को एलिफेंट रिज़र्व के एक भाग में कोयला खदान उपक्रम को प्रारम्भ करने की अनुमति दे दी। बाद में 'आर.टी.आई' से यह सच सामने आया कि 'सी.आई.एल' इस क्षेत्र में सन् 2000 के प्रारम्भ से गैर कानूनी रूप से खनन का कार्य कर रही थी। और अब 'एन.बी.डब्लू.एल' की हरी झंडी मिलने के बाद यह अद्भुत जीव जगत और शताब्दियों पुराने वृक्षों से भरा क्षेत्र गैरकानूनी खननकारों को परोस दिया गया है।
अभियान की तैयारी
जलवायु परिवर्तन की इस पृष्ठभूमि में यह हमारा कर्तव्य है कि हम वनों के विनाश के विरोध में डटकर खड़े हो जाएं चाहते हम विश्व के किसी भी भाग में निवास करते हैं। असम में हमारे साथियों द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन में हम सहभागी होना चाहते थे।
सर्वप्रथम हमें मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में देहिंग पटकई के विषय में एक संवाद की शुरुआत सुनिश्चित करना था क्योंकि लोगों से ऐसी किसी वस्तु के विषय में बात करना मुश्किल है जिसे उन्होंने अपने राष्ट्र की संकल्पना में शामिल ही ना किया हो। असम के इस स्वच्छ और निर्मल वन पर बढ़ते संकट के विषय में सजगता को बढ़ाने के लिए हमने इस कार्य का प्रारंभ वेबिनार्स के आयोजन के माध्यम से किया क्योंकि महामारी के चलते सामूहिक रूप से एकत्रित होना सम्भव नहीं था।
वेबिनार्स के आयोजन के शीघ्र पश्चात हमें देश भर से इस कार्य में सहयोग देने के लिए स्वयंसेवकों के आवेदन प्राप्त हुए। यही हमारा प्रथम चरण था। यह सभी स्वयं सेवक वे लोग थे जो संरक्षण के प्रति संवेदनशील थे। देहिंग के प्रति आत्मीयता जगाने हेतु हमें तटस्थ लोगों को लड़ाई में शामिल करने की आवश्यकता थी। हमने उन्हें संकोच से बाहर निकालने के लिए उनके बड़े प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया कि ३००० किलोमीटर की दूरी से अपने घर की भीतर रहते हुए क्या किया जा सकता है।
और इस प्रश्न का उत्तर देना इतना कठिन नहीं था। इंटरनेट के युग में आपस में जुड़ने और परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के असंख्य मार्ग हैं। घरों में आराम से बैठे हुए भी 'परिचर्चाएं', 'पोस्टर्स', 'सन्देश', 'वीडियो', 'कविताएं', 'रैप गीत', 'ट्विटर सन्देश' जैसे बहुत से तरीकों का सृजन किया जा सकता है। आप कला का सृजन कर सकते हैं। और इसे इंस्टाग्राम के '#एक्टिविज़्मफ़ॉरदेहिंग' हैशटैग के साथ पोस्ट कर सकते हैं। अगर आप इससे भी आगे एक कदम बढ़ाना चाहते हैं तो आप समान सोच वाले दूसरे लोगों के साथ जुड़ सकते हैं और एक ऑफ़लाइन विरोध के आयोजन का प्रयास कर सकते हैं (मास्क और भौतिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए)।
आगे क्या?
१९९० के बाद के वर्षों में 'देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व' के संरक्षण की इस लड़ाई ने ज़ोर पकड़ लिया। शेष भारत के लोगों के इसमें शामिल हो जाने के कारण असम के मुख्यमंत्री राज्य के भीतर और बाहर बढ़ते हुए रोष के प्रति हस्तक्षेप करने के लिए अग्रसर हुए। विगत माह उन्होंने घोषणा की कि सरकार 'देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व' के १११.१९ वर्ग किलोमीटर के विस्तार को, जिसे 'देहिंग पटकई वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुअरी' के नाम से जाना जाता था, अब एक नेशनल पार्कके रूप में जाना जायेगा। निश्चित रूप से यह स्वागत योग्य निर्णय था। परन्तु अब प्रश्न यह है कि शेष ८६२ वर्ग किलोमीटर का क्या।
देहिंग पटकई के भीतर जेपोर रिज़र्व फ़ॉरेस्ट, अप्पर देहिंग(वेस्ट) रिज़र्व फ़ॉरेस्ट, अप्पर देहिंग (ईस्ट) रिज़र्व फ़ॉरेस्ट, दिरक प्रथम डिवीजन, दिल्ली रिज़र्व फ़ॉरेस्ट और काकोजान रिज़र्व फ़ॉरेस्ट शामिल हैं और इन सब की सीमाएं एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। जानवर हमारी बनाई हुई सरहदबंदी को नहीं समझ सकते और इन सभी जगहों पर नेशनल पार्क की अपेक्षा सुरक्षा प्रबंध कम होते हैं।
इसलिए देश भर से वैज्ञानिकों, फिल्म निर्माताओं, कलाकारों, विद्वानों, विद्यार्थियों, सम्बद्ध पेशेवरों तथा चिंतनशील नागरिकों ने असम के मुख्यमंत्री को 'देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व' के सम्पूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन की मांग करते हुए एक पत्र भेजा। यह पत्र 'फ्राइडेज़ फ़ॉर फ्यूचर'(गुवाहाटी), 'ग्रीन बड सोसायटी' तथा 'ग्रीन सब सोसायटी' के प्रतिनिधियों द्वारा मुख्यमंत्री के कार्यालय को ईमेल द्वारा भेजा गया।
गैर कानूनी वनोनमूलन, चाय की गैर कानूनी खेती, गैर कानूनी कोयला खदानों तथा रेत और कंकड़ की खदानों से 'देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व' को निरन्तर रूप से खतरा बना हुआ है। यदि हम अपने घरों और अपने सामाजिक दायरों में देहिंग पटकई संवाद शुरू नहीं करते तो यह खतरा जारी रहेगा। बेशक यह वन असम में स्थित है परन्तु उसका सम्बन्ध पूरे भारत से है। इस विषय में उठने वाली सभी आवाज़ों में युवा समूहों की आवाज़ें जैसे कॉलेज, स्टूडेंट यूनियन, पर्यावरणीय संस्थाओं की आवाज़ सबसे तीव्र आवाज़ें हैं। उन्हें समर्थन की आवश्यकता है। इसके जानवरों और पर्यावरण के संरक्षण की दृष्टि से हम सभी समान रूप से इसकी रक्षा के कर्तव्य से बंधे हैं। हमें यह विजय तभी मिलेगी जब इस देश की प्रत्येक घर में देहिंग का नाम गूंजेगा।
देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व के बचाव के प्रति स्वयं सेवा के अवसर खोजने के लिए हमें [email protected] पर लिखें। आप इस प्रारूपके अनुसार एक पत्र असम के मुख्यमंत्री ([email protected]) को भी लिख सकते हैं। सहयोग के अन्य मार्गों के लिए इंस्टाग्राम या फेसबुकर 'आई एम देहिंग पटकई' अभियान से जुड़ें। प्रत्येक स्वर का महत्व है।
निशांत बंगेरा 'म्यूज़ फाउंडेशन' नामक एक युवा संगठन के संस्थापक हैं जो 'मासिक धर्म स्वच्छता' से लेकर 'ध्वनि प्रदूषण' जैसे विषयों पर आवाज़ उठाने वाले अभियानों की अगुवाई करता है। निशांत और उनकी टीम नागरिक और वकालत से जुडे़ मुद्दों पर भी कार्य करते हैं।