लेज़ी गुड समैरिटन के लिए रीसायकल गाइड
- If you have the heart to donate but not the time for it, here are a few good ideas to turn to.
We’re a team that is unlearning modern-day, convenient living to…
डोनेशन हमेशा से आर्टिकल्स को रियूज़ करने का एक अच्छा तरीका है जिससे वो लम्बे टाइम तक चलते हैं और वेस्ट तो कम होता ही है, साथ में लोगों की लाइफ़ भी पोसिटिवली एफ़ेक्ट होती है। हम मानते हैं कि हम में से अधिकतर लोग कुछ अच्छा करने की चाह रखते हैं — इस चाह से हम अक्सर बिज़ी वर्कडे या किसी किताब या नेटफ़्लिक्स पर कुछ देखने के कारण डिस्ट्रैक्ट हो जाते हैं। स्लैकर कई बार समैरिटन को ओवरशैडो कर लेता है। इसीलिए, हम यहां तीन एन.जी.ओ. लिस्ट कर रहे हैं जो अपने डोर-स्टेप पिक-अप या मल्टीपल ड्रॉप-ऑफ़ पॉइंट्स से आपकी लाइफ़ इज़ी बनाने में हैल्प करेंगे।
ग्रीनसोल
श्रियंस भंडारी और रमेश धाम का स्टार्ट किया हुआ ग्रीनसोल एक इको-फ्रेंडली एंटरप्राइज़ है जो पुराने जूतों को रीसायकल करके बच्चों के लिए कम्फ़र्टेबल फुटवियर बनाती है। क्यूंकि श्रियंस और रमेश खुद एथेलिट्स हैं, दोनों हर साल दोनों 3-4 जोड़ी जूते यूज़ करते हैं। उन्होंने देखा कि कुछ टाइम बाद जूता तो खराब होने लगता है लेकिन सोल वैसा-का-वैसा ही रहता है। इस बात ने उनको ग्रीनसोल स्टार्ट करने के लिए इंस्पायर लिया। एकदम ऐप्ट नाम वाले ग्रीनसोल में अपसायकल किये हुए फुटवियर को सेल भी किया जाता है।
शूज़ को डोनेशन सेंटर में खुद डोनेट करना होता है और हर जोड़ी के लिए 199 रूपए रिफ़र्बिशिंग और लोजिस्टिक्स कॉस्ट के रूप में देने होते हैं।
इनके बारे में यहां पढ़ें:
https://www.greensole.in
शेयर एट डोर स्टेप (एस.ए.डी.एस.)
अनुष्का जैन की शुरू की गयी फ़ॉर प्रॉफ़िट एंटरप्राइज़, एस.ए.डी.एस., डोनर्स के लिए ऐसी सिटी एन.जी.ओ. आयडेंटिफाई करना आसान कर देती है जो उनके डोनेशन को सूट करती है और स्मूथ एक्सचेंज में हेल्प करती है। कुछ लोकेशंस में नॉमिनल फी के साथ पिक-अप भी ऑफर होता है और दूसरी जगह पर्सनली डोनेशन ड्रॉप-ऑफ़ किया जा सकता है (डोनेशन फॉर्म पर पिन कोड भरने से पता चल जायेगा की आपके एरिया में पिक-अप सर्विस है या नहीं)। डोनेशन के आइटम में किताबें, कपड़े, फर्नीचर, टॉयज़, बैग और स्टेशनरी हो सकते हैं।
इनके बारे में यहां पढ़ें:
https://sadsindia.org
विशिंग वैल
विशिंग वैल के लोग भी डोनर और एन.जी.ओ. के बीच का गैप भरते हैं। अगर आप डोनेट करना चाहते हैं, आपको उन्हें अपने डोनेशन की डिटेल्स [email protected] पर मेल करनी है। विशिंग वैल के वालंटियर्स डोनेशन पिक-अप कर लेंगे (जोगेश्वरी से कोलाबा के बीच में), सामान को देख कर अलग-अलग एन.जी.ओ. की ज़रुरत के हिसाब से अच्छे से सॉर्ट आउट करेंगे और डिलीवर करेंगे। एक बार डिलीवरी होने पर आपको एन.जी.ओ. से एकनॉलेजमेन्ट मिल जाएगा। आप खुद भी डोनेशन को ड्रॉप-ऑफ़ कर सकते हैं।
इनके बारे में यहां पढ़ें:
https://www.wishingwellonline.org
गूँज
गूँज इस सेक्टर में एक जाना हुआ नाम है जो अर्बन डिस्कार्ड को गरीबों की डिगनिटी बढ़ाने के टूल के आइडिया के रूप में अलग-अलग रीजन, इकोनॉमीज़ और कंट्रीज़ में ग्रो करना चाहता है। ये वैसे तो इंडिविजुअल घरों से डिस्कार्ड नहीं कलेक्ट करते पर बड़े कॉर्पोरेट्स और इंस्टीटूशन्स को अपने डोनेशन सेंटर में सामान ड्रॉप-ऑफ़ करने के लिए कहते हैं, लेकिन बड़े कंट्रीब्यूशन के लिए पिक-अप ज़रूर देते हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि ये लोग काफ़ी सारी चीज़ें लेते हैं जैसे कपड़े, घर के आइटम, स्टेशनरी, पुराने न्यूज़पेपर, एक साइड यूज़ किये हुए पेपर, फर्नीचर, बेडिंग, एक्सपोर्ट सरप्लस, जेनरेटर, मेडिसिन, ड्राई राशन, ब्लैंकेट आदि। काफ़ी एन.जी.ओ. इंसिस्ट करती हैं कि कपड़े अच्छी कंडीशन में हों, लेकिन गूँज किसी भी तरह के साफ़ कपड़े ले लेती है और उनको बेडशीट, थ्रो आदि में बदल देती है और इसीलिए एथिको में हम लोगों के लिए गूँज स्पेशल है। अगर आपके कोई ख़ास सवाल हैं, आप उनसे हमेशा चेक कर सकते हैं।
इनके बारे में यहां पढ़ें:
https://www.goonj.org
एच &एम और एम & एस पर ड्राप एंड शॉप
2013 से एच & एम अपने स्टोर्स में गारमेंट रीसायकल सर्विस ऑफर करता है। ये प्रोग्राम एक ग्लोबल इनिशिएटिव है जो किसी भी ब्रांड के गारमेंट डोनेशन लेता है (इसमें टॉवल और बेडशीट शामिल हैं) और रिटर्न में ये 15% ऑफ़ का वाउचर देता है जिसे अगली परचेस में यूज़ किया जा सकता है।
मार्क्स & स्पेंसर चेन भी अच्छा करने पर आपको रिवॉर्ड करती है। आपके हर बैच के डोनेशन पर एम & एस आपको 600 रूपए का वाउचर देती है जो आपकी अगली परचेस में यूज़ हो सकता है।
हर रोज़ ये ऑफ़र रहते हैं तो किसी भी दिन की गयी शॉपिंग ट्रिप कुछ अच्छा कर सकती है।
हम आज की आसान जीवनशैली को भूल कर पर्यावरण के अनुकूल, नैतिक जीवन जीने का प्रयास कर रहे लोगों की टीम हैं, और इस प्रक्रिया में जो कुछ हम सीख रहे हैं वह हम अपने पाठकों से साथ बाँट रहे हैं।