प्लांट्स पर आधारित डाइट के शानदार फ़ायदे
- तीन साल पहले, मैंने एकाएक ही प्लांट्स पर आधारित डाइट का पालन करने का निर्णय लिया। और मैंने खुद को इससे ज़्यादा स्वस्थ्य और प्रबल कभी नहीं पाया।
Animesh Sharma is a lawyer by profession, practicing in the…
पिछले तीन साल से, मैं प्लांट्स पर आधारित डाइट का ही सेवन कर रहा हूँ। 'पौधौं पर आधारित डाइट' (प्लांट्स पर आधारित डाइट) का अर्थ यह हैं कि आपके खान पान का हिस्सा केवल सब्ज़ियाँ, पौधें, फल, नट्स, दाल, अनाज जैसे खाद्य उत्पाद ही हो, पशु या पशुओं से लिया जाने वाला खाद्य उत्पाद (मांस, मछली, अंडें और दुग्ध उत्पाद) आपके खान पान का हिस्सा ना हो। दूसरी ओर, 'वीगनवाद' की परिभाषा इससे बड़े पैमाने पर है। 'वीगंस' किसी भी पशु उत्पाद के उपयोग का पुरी तरह बहिष्कार करते है, यह केवल खाद्य उत्पादों तक सीमित नहीं बल्कि अन्य उत्पाद जैसे- चमड़ा, ऊन, रेशम यानी सिल्क, पशुओं से उत्पन्न किए गए या उनपर परीक्षित किए गए उत्पाद भी इसमें शामिल हैं।
अपने खान पान को 'वीगन' या पौधों पर आधारित डाइट में बदलने के कई नैतिक, दार्शनिक या पर्यावरण से संबंधित कारण हो सकते हैं। मेरे सफ़र की शुरुआत मेरे स्वास्थ्य से हुई। समय के साथ, मुझे पशुओं से उत्पन्न किए गए उत्पादों का सेवन छोड़ देने के अत्यधिक फ़ायदे महसूस हुए। अपने मन मुताबिक, मैं पहले से ही शाकाहारी था। मैं पालतू पशुओं (डॉग्स एवं एक बिल्ली) के साथ बड़ा हुआ, कुछ पशुओँ को अपने परिवार की तरह प्यार करना, दूसरी ओर कुछ पशुओं का केवल स्वाद के लिए सेवन करना, इन दोनों का फ़र्क मैं कभी समझ नहीं पाया। पर दूध, पनीर, दही, मक्खन, चीज़, और अन्य दुग्ध उत्पाद केवल मेरे खान पान का ही हिस्सा नहीं थे, बल्कि पूरे भारत के रोज़मर्रा के खान-पान का हिस्सा हैं। हमारे समाज एवं संस्कृति में एक मज़बूत धारणा है कि दूध एवं दुग्ध उत्पाद अच्छी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी हैं, इसलिए, आपकी सेहत पर इसके प्रभाव क्या हैं, इस सवाल का आपको ख़्याल तक नहीं आता।
शुरू से ही, मेरा खेल और स्वास्थ्य में उत्साह रहा हैं। मैं कॉलेज के दिनों से ही रोज़ जिम जाता हूँ और सप्ताह के अंत में कोई खेल ज़रूर खेलता हूँ। जैसे ही मैंने तीस की आयु पार की, इस आयु वर्ग में शामिल अन्य लोगों की तरह, मुझे अपना उत्साह और ताक़त कम होते महसूस हुए। मेरा वज़न भी बढ़ गया था और मैंने खुद को अक्सर बीमार या आहत पाया। मुझे एहसास हुआ कि मैं भी अब बढ़ती उम्र का मरीज़ बनता जा रहा था।
पर २०१७ की शुरुआत में मुझे क्रिस्टोफ़र मैक्डूगल की अद्भुत किताब 'बॉर्न टू रन' के बारे में पता चला। यह किताब अल्ट्रामैराथॉर्नरज़ पर लिखी गई हैं, जो नियमित १५० कि.मी से भी ज़्यादा का सफ़र, कुछ सबसे मुश्किल और जंगली इलाकों में, दौड़ के रूप में तय करते हैं। यह शायद दुनिया की सबसे श्रेष्ठ दौड़ है। साथ ही मुझे स्कॉट ज्यूरिक के बारे में पता चला, जो शायद इस समय के सबसे श्रेष्ठअल्ट्रा मैराथॉर्नर हैं, इसी के साथ मुझे उनके सफ़लता के पीछे के कारण का भी पता चला- प्लांट्स पर आधारित डाइट।
इस खान पान एवं डाइट से जुड़े जीवनचर्या को जानने के लिए, मैंने जल्द ही अपने एक वीगन दोस्त से संपर्क किया। मुझे कभी लगा नहीं था कि मैं दूध और उससे संबंधित खान-पान छोड़ पाऊंगा, ना तो मुझे यह विश्वास था कि मैं प्लांट्स पर आधारित डाइट को अपना पाऊंगा। पर इस डाइट और जीवन को अपना चुके अन्य लोगों ने मेरा दिल खोल कर स्वागत किया, करुणा और प्रेम इस समाज की अहम विशेषता हैं। मुझे ब्रेकफ़ास्ट पर बुलाया गया जहाँ हमने स्मूदीज़ पीए, जो हरी भरी सब्ज़ियों, चुकुंदर, फल और खजूर से भरपूर थे। इसके साथ एक स्वादिष्ट सैंडविच भी खाया। इसके बावजूद मेरे मन में अभी भी कई सवाल और पूर्व धारणाएं थी - क्या दूध हमारे स्वास्थ्य के लिए एक ज़रूरी पौष्टिक स्रोत नहीं हैं? क्या प्लांट्स पर आधारित डाइट में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों की कमी नहीं होगी? क्या इसे अपनाने के बाद मैं बाहर का खाना खा सकूँगा? दुनिया का सफ़र करते समय यह मेरे लिए बाधा तो नहीं बनेगा? उन दिनों का क्या जब मुझे यह सब खाने की इच्छा न हो ? ऐसे कई सवाल थे मेरे मन में।
सलाह ज्यों की त्यों अपना लेने के बजाय मेरे दोस्त ने इस विषय पर मौजूद विशेष साधनों से मुझे वाकिफ़ कराया। मैंने डॉ. माइकल ग्रेगर, डॉ. जोइल फुहरमन, डॉ. टी. कॉलिन कैम्पबेल तथा अन्य लेखकों की किताबें पढ़ी। इससे मुझे मांस-दुग्ध उत्पाद और कर्क रोग जैसी बीमारियों के बीच के संबंध के बारे में पता चला। मैंने स्कॉट ज्यूरिक, रिच रोल और ब्रेंडन ब्रेज़र के अनुभव के बारे में पढ़ा, जिन्होंने प्लांट्स पर आधारित डाइट अपना कर अपनी ज़िंदगी एक बड़े पैमाने पर बदली। मुझे पता चला कि विराट कोहली, नोवाक जोकोविच, वीनस विलियम्स और लूइस हैमिल्टन जैसे अव्वल खिलाड़ियों ने भी यह खान पान अपना कर, अपने अंदर कई सकारात्मक बदलाव महसूस किए।
अब मेरे पास विज्ञान द्वारा समर्थित जानकारी थी और मैं विश्वसनीय अनुभव से वाक़िफ़ था। शुरुआत में मेरे दोस्त ने मुझे एक योजना बनाकर दी। हालांकि इस कदम से मेरे कई परिवार वाले भौंचक्के रह गए थे, समय के साथ उन्होंने मेरा समर्थन किया और मेरी मदद भी। २०१७ की जुलाई में मैंने दुग्ध उत्पादों का सेवन छोड़, प्लांट्स पर आधारित डाइट को एक अवसर दिया।
बहुत जल्द ही मैंने इसके परिणाम देखे। मेरी ताकत और ऊर्जा बहुत तेज़ी से बढ़ी और मेरे क्रॉस फ़िट व्यायाम में बेहतरीन बदलाव आया। मैं टेनिस में भी आगे बढ़ा और ज़ख्मों से खुद को बहुत जल्द ही उभरता हुआ पाया। मैं जल्द ही वज़न घटा पाया, मेरी नींद बेहतर हुई और मैं पहले से कई ज़्यादा चुस्त महसूस करने लगा। मेरा प्री हाइपरटेंशन यानी ब्लड प्रेशर बिना दवाइयों के ही काबू में आ गया। प्लांट्स पर आधारित डाइट अपनाने से पहले, मुझे सम्पूर्ण ब्लड प्रोफाइलिंग यानी भिन्न प्रकार के ब्लड टेस्ट्स कराने की सलाह दी गई। इस डाइट का पालन करने के एक महीने बाद मैंने दोबारा ब्लड प्रोफाइलिंग कराई ,और दोनों रिपोर्ट्स की तुलना की। परिणाम चौंका देने वाले थे, हर एक क्षेत्र में स्पष्ट सुधार था। पहली बार मैं रसोई में जाकर, अपने खाने में रुचि लेने लगा। अपने पूरे परिवार के लिए, मैंने भी हरी-भरी स्मूदीज़ बनाना शुरू की। पिछले तीन साल में, मैं शायद ही कभी बीमार पड़ा या फिर कोई दवाई ली हो, इसका श्रेय इस डाइट को ही जाता हैं। मेरे लिए, इसके फ़ायदें ठोस, स्थायी और अचल रहे।
मैं पशु प्रेमियों से भी जुड़ा और कई ऐसे दलों का हिस्सा बना जो वीगनवाद, आर्गेनिक और सस्टेनेबल खेती को बढ़ावा देते हैं। नेकी और करुणा इन सभी दलों का एक बहुत ही अहम हिस्सा है। वीगनवाद और प्लांट्स पर आधारित डाइट अपनाने का और लोगों का क्या कारण हैं, मैं यह जानने पर मजबूर हुआ। इन्टरनेट पर आपको कई सच्चे और विश्वसनीय स्रोत मिल जाएंगे जहाँ से आपको दुग्ध उत्पादों और पशुधन उद्योगों की क्रूरता के बारे में पता चलेगा, और हाँ, इसके लिए हिम्मत ज़रूर चाहिए। मैं काऊस्पीरसी (Cowspiracy), अर्थलिंग्स (Earthlings), ईटिंग एनिमल्स (Eating Animals) और गेम चेंजर्स (Game Changers) जैसी डॉक्यमिन्टरीज़ देखने की सलाह देता हूँ, जो हमे अपने कर्मो एवं चाल-चलन की क्रूरता से आगाह कराते हैं, जो हमसे अब तक छीपायी गई हैं।
इसका एक पर्यावरण से जुड़ा पहलू भी हैं, हर मुख्य संस्था जो बदलते पर्यावरण यानी क्लाइमेट चेंज पर काम कर रही हैं, इसमें यूनाइटेड नेशन्स का इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज भी शामिल हैं, सलाह देती हैं कि प्लांट्स पर आधारित डाइट को चुनने से हम क्लाइमेट चेंज से लड़ सकते हैं, और यह हर एक व्यक्ति द्वारा दिया गया सबसे बड़ा योगदान साबित हो सकता हैं। आधुनिक दर्शनवाद भविष्य की पीढ़ियों से जुड़े इस सवाल से जूझता है कि, वे भी शायद इस समय में पशुओं पर हो रही क्रूरता को भयभीत नज़रों से देखेंगे जिस तरह हम लोग ग़ुलामी यानी स्लेवरी को देखते हैं।
जो भी त्याग मुझे इस डाइट को अपनाने के बाद करने पड़े वे बहुत ही छोटे हैं और इसके फ़ायदें हमेशा से ही ज़्यादा रहे। केवल चंद हफ़्तों के बाद मुझे अपनी डाइट में किसी भी दुग्ध उत्पाद की कमी महसूस नहीं हुई और ना ही अनियत चीट डेज़ पर वापिस जाने का मन किया। दुग्ध उत्पादों के स्थान पर कई अलग उत्पाद इंडिया में मौजूद हैं, जो आसानी से मिल जाते हैं। बाहर खाना खाने में भी कोई बड़ी समस्या नहीं आई क्योंकि कई रेस्टोरेंट्स ने अपने मेन्यू में इस डाइट में मौजूद खाने को शामिल कर लिया हैं या आसानी से कर सकते हैं। वीगन खाद्य उद्योग भी तेज़ी से बढ़ रहा हैं। पिछले तीन साल में, मैं ६ देशों में घूमा जहाँ मुझे प्लांट्स पर आधारित डाइट में शामिल खान-पान, आसानी से मिल गए। ऐसा भी हुआ है कि मुझे अपनी पसंद का खाना ना मिला हो, पर जबतक मैं अधिकतर समय इस डाइट का पालन करता रहूँ, यह कोई बड़ी समस्या नहीं।
कई और विचारधाराओं की तरह जो समाज में बदलाव लाना चाहती हैं, इस विचारधारा में भी कुछ समस्याएं हैं। वीगनवाद में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी विचारधारा को दूसरों पर हावी करने की कोशिश करते हैं। जैसे - जैसे वीगनवाद और लोगो द्वारा अपनाया जा रहा है, वैसे-वैसे पूंजीवाद ने इससे ढेर सारा पैसा कमाने के भी रास्ते निकाल लिए हैं। प्लांट्स पर आधारित उद्योगों को खुद पर्यावरण से संबंधित कई सवालों से जूझना हैं। यह ऐसे ठोस सवाल हैं, जिनके जवाब हमे जल्द से जल्द ढूंढने हैं। पर इन सबके बावजूद, मेरे लिए इसके नैतिक मूल्य और पर्यावरण एवं स्वास्थ्य से संबंधित फ़ायदे हमेशा आगे रहेंगे।
शायद कोविड-१९ महामारी का एक फ़ायदा यही है कि, इसने हमे अपने खान पान पर सोचने पर मजबूर कर दिया है, ख़ासकर इसलिए क्योंकि इसका स्रोत वुहान के पशु-हत्या मार्केट्स से जोड़ा गया। हमारे खान पान का प्रभाव केवल हमारे स्वास्थ्य पर ही नहीं पर पूरी मानव जाति और पृथ्वी पर मौजूद बाकी जंतुओं पर भी होता है।
मैंने प्लांट्स पर आधारित जीवनचर्या अपने स्वास्थ्य की वजह से अपनाई, पर इस रास्ते पर कायम रहने के और कारण जुड़ते रहे। मैं अपने डॉग से एक साफ़ दिल और ज़मीर के साथ आँखें मिला सकता हूँ, उससे जुड़ सकता हूँ। यह मेरे लिए काफ़ी है।
अनिमेष शर्मा एक वक़ील हैं जो पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे है, लोग कहते हैं यह बहस करते कभी थकते नहीं। अनिमेष पालतु डॉग्स, खेल-कूद और किताबों के बीच बड़े हुए। हमेशा से ही इन सबके प्रति उनका जज़्बा कायम रहा है। वह शहरों से बाहर निकल पहाड़ों पर ट्रेक करने का मौका कभी छोड़ते नहीं। उनका मानना है कि दुनिया में केवल एक भगवान है जिनका नाम है रॉजर फेडरर, मशहूर टेनिस खिलाड़ी। संपर्क करे [email protected]
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