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जनजातीय कार्यकर्ता अर्चना सोरेंग हरितिमा से भरे विश्व के प्रति भारत की एक नई आशा है

जनजातीय कार्यकर्ता अर्चना सोरेंग हरितिमा से भरे विश्व के प्रति भारत की एक नई आशा है

Suchitra
  • एक 24 वर्षीय जनजातीय कार्यकर्ता, जिन्हें हाल ही में 'संयुक्त राष्ट्र' के 'युवा सलाहकार पैनल' के अन्तर्गत नियुक्त किया गया है, कहती हैं कि किस प्रकार आदिवासी और जंगल के निवासी समुदाय जलवायु परिवर्तन के खिलाफ़ नेतृत्व करने की श्रेष्ठ अवस्था में हैं

अभी पिछले दिनों भारतीय प्रकाशन संयुक्त राष्ट्र युवा सलाहकार समूह में एक ओडिशा निवासी युवा जनजाति महिला की नियुक्ति के समाचार से भर गए थे जो जलवायु संकट का सामना करने के लिए समाधान उपलब्ध करवाएगा। ये महिला है 24 वर्षीय 'अर्चना सोरेंग' जिनकी रगों में पर्यावरणीय न्याय रक्त बनकर बहता है। उनका परिवार, जो 'खड़िया जनजाति' का सदस्य है, कई पीढ़ियों से ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में आदिवासियों के वन और भूमि अधिकारों के लिए लड़ता रहा है।

'टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़'(TISS) से 'रेगुलेटरी गवर्नेंस' विषय में मास्टर डिग्री के साथ सोरेंग आदिवासी युवा चेतना मंच, 'ऑल इंडिया कैथोलिक यूनिवर्सिटी फ़ेडरेशन' (AICUF), के जनजातीय कमिशन की राष्ट्रीय संयोजक रह चुकी हैं। वर्तमान में वे ओडिशा में वसुंधरा नामक एक 'एक्शन रिसर्च एंड पॉलिसी एडवोकेसी ऑर्गेनाइजे़शन' में कार्यरत हैं जो प्रकृति संसाधन व्यवस्था, संरक्षण और सस्टेनबल आजीविका पर केन्द्रित है। वहां वे स्वदेशी वन सुरक्षा अभ्यास, आन्दोलन में स्त्रिओं की भूमिका और वन में निवास करने वाले समुदायों और आदिवासियों के अधिकारों के बचाव का दस्तावेज़ीकरण करती रही हैं।

अब वे विश्व के अन्य छह युवा जलवायु कार्यकर्ताओं के साथ सलाहकार पैनल की सदस्या के रूप में शामिल होंगी जहां उन्हें अपने प्राचीन राष्ट्रीय संरक्षण प्रथाओं को सक्रिय रूप से लागू किए जाने और प्रकाश में लाने की आशा है।

Archana was the only representative from India for the 66th Session on CESR on Land.

एथिको के साथ एक साक्षात्कार में अर्चना सोरेंग ने अपने अब तक के कार्य और भविष्य की योजनाओं पर बात की।

संयुक्त राष्ट्र सचिव जनरल -- 'एन्टोनियो गुटेरेस' के द्वारा उनके नए सलाहकार पैनल के लिए नामित किए जाने पर कैसा महसूस होता है?
में खुश और आभारी हूं। यह मेरे जैसे जनजातीय समुदायों के लिए एक बहुत बड़ी बात है। पर्यावरणीय न्याय आदिवासी जीवन का एक आन्तरिक हिस्सा है -- यह हमारी पहचान का हिस्सा है और सदियों से रहा है। प्रायः जनजातीय समुदायों का जीवन प्रकृति के साथ अन्तरसम्बद्ध है कि हमारे पारिवारिक नाम तक इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरणार्थ केरकेत्ता अर्थात पक्षी, कुल्लु अर्थात कछुआ, बिलूम अर्थात नमक और मेरा सरनेम सोरेंग जिसका अर्थ है चट्टान।एक व्यक्ति का नाम उसकी पहचान होती है जबकि हम प्रकृति को अपनी पहचान मानते हैं। इस प्रतिष्ठित समूह के हिस्से के रूप में पहचान बनाना हमें अपनी आवाज़ उठाने और अपना दृष्टिकोण सामने रखने में मदद करेगा।

समूह किस चीज़ पर कार्य करने जा रहा है और इसमें आपकी भूमिका क्या होगी?
युवा सलाहकार समूह यह कार्य करेगा कि जलवायु संकट से लडने हेतु युवाओं को सम्मिलित रूप से कैसे संलग्न किया जाए। एक माध्यम के रूप में हमारा दायित्व होगा कि युवाओं द्वारा किए गए कार्य का विस्तार करें। मैं उन तक पहुंचूंगी और उनसे सीखूंगी तथा हम सब मिलकर एक सामूहिक दृष्टिकोण को सामने लेकर आएंगे। मैं क्षेत्रीय, जिला, विद्यालय और विश्वविद्यालय स्तरों पर एक संवाद प्रारम्भ करना चाहती हूं।

Odisha tribal women sorting Mahua seeds (Dori).

एक जनजातीय महिला होते हुए आप पर्यावरणीय न्याय को किस रूप में देखती हैं?
मेरे विचार से स्त्री और पुरुष का अनुभव वनों के विषय में अत्यन्त भिन्न है। आप इसे छोटी से छोटी गतिविधियों के भीतर महसूस कर सकते हैं। उदाहरणार्थ आप देखेंगे कि एक जनजातीय महिला कितने प्रेम और आभार की भावनाओं के साथ एक महुआ का फूल तोड़ती है। ओडिशा के नयागढ़ जिले में महिलाएं रात्रि के समय जंगलों में पहरा देती हैं। और यही महिलाएं ग्रीष्म ऋतु में सूखी पत्तियों को हटाने के लिए दरांती लेकर निकलती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि इनके कारण जंगल में आग लगती है। स्त्रियां वनों को अपने बच्चों की तरह मानती हैं। और समय के साथ महिलाओं द्वारा किए गए परिश्रम के कारण वनों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना संभव हुआ है। यदि आप स्वदेशी लोगों द्वारा किए गए कार्यों का गहराई से अवलोकन करें तो पाएंगे कि महिलाएं एक अत्यन्त सक्रिय, प्रत्यक्ष और बड़ी विशाल भूमिका निभातीं हैं। में समझती हूं कि अब हमें निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिक सक्रिय प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।

आप पर्यावरणीय न्याय के आन्दोलन में किस प्रकार शामिल हुईं? क्या आप हमेशा से स्वयं को यही करते हुए देखना चाहती थीं?
मेरा परिवार तीन पीढ़ियों से जंगल की सुरक्षा में संलग्न रहा है। जनजातीय आबादी हेतु सांविधानिक सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने के लिए मेरे दादा दादी ने स्थानीय स्तर पर पंचायतों के साथ सामुदायिक कार्य प्रारम्भ किया था। इस बीच मेरे पिता 'गंगपुर कॉलेज ऑफ़ सोशल वर्क' के प्राचार्य थे और स्वदेशी स्वास्थ्य सेवा के एक व्यवसायी तथा एक सामुदायिक नेता थे।

Soreng’s father’s death pushed her to fight for her people.

2017 में अपने पिता के निधन के बाद मैंने महसूस किया कि उनके पास जो भी पारंपरिक जानकारी थी वह खो गई है क्योंकि उसका दस्तावेज़ीकरण नहीं हुआ था। पर्यावरणीय विनियमन के विषय में जो कुछ भी मैंने सीखा है वह सब दूसरे लोगों द्वारा लिखा गया था। हम आपने ज्ञान और अपने अनुभवों का दस्तावेज़ीकरण क्यों नहीं कर रहे थे? अपने समुदायों को लंबे समय तक सतत रूप से जुड़ा हुआ समझकर हम प्रत्यक्ष रूप से हितधारकों की तरह संलग्न क्यों नहीं थे? मैंने महसूस किया कि जब तक हमारे युवा इस प्रक्रिया में भाग नहीं लेते, हम इन योजनाओं को प्रभावित करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।
इसलिए आपके प्रश्न का उत्तर यही है कि मेरे स्वयं के प्रत्यक्ष अनुभव, यूथ एडवोकेसी ग्रुप के साथ मेरा संसर्भ, इस क्षेत्र में मेरी शिक्षा, और मेरे बाहरी कार्य और शोधकार्यों ने मुझे इस क्षेत्र में प्रवेश करने और अपने स्वदेशी पूर्वजों की विरासत जारी रखने हेतु प्रेरित किया।

जलवायु परिवर्तन की वर्तमान लड़ाई में आप क्या परिवर्तन चाहती हैं?
स्वदेशी आबादी द्वारा जलवायु परिवर्तन के लिए की गई लड़ाई के विचारों को मुख्य धारा के लोगों तक लाने के लिए अभी और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। स्वदेशी युवाओं को अपने समुदायों से सीखने, उनके तरीकों को लिपिबद्ध करने और जलवायु संकट से लड़ रहे स्वदेशी समुदायों की भूमिका को प्रकाश में लाने के लिए उनके पास लौटने की आवश्यकता है।

आमतौर पर पर्यावरणीय न्याय की लड़ाई से स्वदेशी लोगों को बाहर कर दिया जाता है यद्यपि वे जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित हैं। इन समुदायों को केवल दर्शक नहीं बल्कि नेताओं के रूप में इस लड़ाई में कैसे शामिल किया जा सकता है?
मैं समझती हूं कि सबसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि स्वदेशी लोगों के पास इन प्रश्नों के उत्तर हैं। यदि एक बार स्वीकार कर लेते हैं तो आपको इन्हें लिपिबद्ध करने की आवश्यकता है। इनके कार्य में इनकी सहायता करने के लिए आपको उनकी आजीविका और उनके वन और भूमि के अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना होगा। अंततः आदिवासी और वन के निवासी समुदायों में युवा भागीदारी को सक्षम बनाने की आवश्यकता है।

Soreng documenting and researching indigenous practices.

सस्टेनबल विकास पर क्रमिक सरकारों ने ध्यान केन्द्रित नहीं किया ; इस विषय पर आपका क्या विचार है और क्या आप बता सकती हैं कि यह करने का स्वदेशी तरीका क्या है?
जनजातीय महिलाएं अनजाने ही पांचवे, आठवें और बारहवें सतत् विकास लक्ष्य - लैंगिक समानता, उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि, संवहनीय उपभोग और उत्‍पादन, को प्राप्त करने में क्रमशः अपना सहयोग देती आयी हैं।हम सियाली की पत्तियां प्लेट्स बनाने के लिए प्रयोग करते हैं, जिनमें से कुछ का खुद उपयोग करते हैं और कुछ बेच देते हैं। उपभोग के पश्चात ये प्लेटें या तो मवेशियों द्वारा खा ली जाती हैं या उनकी खाद बनती है। यह एक श्रेष्ठ प्रकार का कूड़ा प्रबन्ध है। हम सस्टेनबल तरीके से इन पत्तियों को तोड़ते हैं, आय अर्जित करते हैं और साथ ही कूड़ा प्रबन्ध भी करते हैं। लोग इतना भी नहीं जानते कि पार्टियों में हज़ारों थर्मोकॉल प्लेट्स प्रयोग करना उनके लिए एक दुश्चक्र के समान है। यह आपकी भूमि और आपका जीवन है, तो आप इसकी रक्षा क्यों नहीं करना चाहेंगे? सरकार लोगों को यह नहीं बताती की यह कितना आवश्यक है। कोविड-19 ने हम आदिवासियों को यह समझाया है कि हमारे जंगल और धरती हमारे लिए सबकुछ हैं। जब हमारे गांव से अनेक प्रवासी कष्ट में थे, हमारी देखभाल करने और हमारे भोजन की व्यवस्था करने के लिए हमारे जंगल थे।

शहरी आबादी किस प्रकार इन स्वदेशी जनजातियों की लड़ाई में बेहतर रूप से सहयोग कर सकती है?
सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह पहचानना है कि स्वदेशी जनजातियों के पास जलवायु परिवर्तन के समाधान हैं। दूसरा, जलवायु सक्रियता बातचीत में स्वदेशी लोगों की भागीदारी को सक्रिय और सार्थक बनाना और उन्हें उनके दृष्टिकोण और कहानियों को दूसरों के साथ बांटने का अवसर प्रदान करना है। तीसरी चीज़ स्वदेशी समुदायों के ज्ञान और अभ्यास को अपनाना होगा।

क्या आपका कोई पसंदीदा गीत है? वह कौनसा है और क्यों?
'खेड़ी ओडो' अर्थात प्रकृति, नामक एक खड़िया गीत है जिसमें खेती के कार्य में विभिन्न पशुओं के योगदान और कैसे जनजातियों के कृषि कार्यों में प्रकृति घुली मिली हुई है, दिखाया गया है।

इस गीत के बोल इस प्रकार हैं:
"गरहा धोड़ा अंकल ते, राय चुनी बा: रे
(राय चुनी बा: रे साइलो सोइरे )*2
खनखड़ा रे अंकल सी थे रे
धमना रे पता तरते
डुंडलू रे बिहदा तेर ते रे
बकुला रे रोवा ओन्टे रे
गुडनू रे झूमर कुइचता"

इसका अनुवाद है;
चावल के खेतों में ऊपर और नीचे, हवा के साथ चावल लहराते हैं
केकड़ा खेत जोतता है, वहीं चूहे सांप इसे समतल करते हैं
छोटा मेंढक अन्तः खेती करता हुआ चारों ओर कूदता है जब बगुले चावल के अंकुर को प्रत्यारोपित करते हैं
छोटी मछली पानी से भरे खेत में चारों तरफ़ नाच करती है।

मेरे विचार से यह गीत हमारी जनजातियों का प्रकृति के साथ सहजीवी सम्बन्ध की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।

Image Courtesy: Archana Soreng

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