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हमें जापानीयों जैसी सोच क्यों रखनी चाहिए

हमें जापानीयों जैसी सोच क्यों रखनी चाहिए

Team Ethico
  • परंपरा में बसी हुई मॉडर्न सोच वाला जापान अतीत से सीख लेते हुए भविष्य की ओर बढ़ रहा है। हमें भी वही करना चाहिए।

दुनिया के सबसे लुभावने कल्चरज़ में से एक, जापान जितना विकसित है उतना ही प्राचीन भी है और आसानी से दोनों में बैलेंस बनाए रखता है। जापान के रहन-सहन से मिली कालातीत शिक्षा आज के समय में और भी ज़्यादा प्रासंगिक है, और यदि हम इस शिक्षा का अपने दैनिक जीवन में उपयोग करें तो हम एक ज़्यादा सस्टेनबल और जागरूक दुनिया बना सकते हैं।

इमेज सोर्स: अनस्प्लैश

वाबी-साबी - अपूर्णता खुबसूरत होती है  

जापानी चाय की सेरेमनी इस फ़िलोसोफ़ी को दर्शाती हैं जहां हल्के से टूटे कपों में चाय सर्व करते हैं या उसे डिस्कलर्ड पॉट से पोर किया जाता है। वाबी-साबी एक एंशिएंट जापानी फ़िलोसोफ़ी है जो लाइफ़ के इम्परफ़ेक्ट और ट्रांसिएंट नेचर को मानती है। बौद्ध धर्म से प्रभावित वाबी-साबी इम्परफ़ेक्ट, इन्कम्प्लीट और इम्पर्मनेंट रूपों में ब्यूटी देखने के लिए एनकरेज करती है और इसके कारण रंग-रूप खोने के बाद भी यह बिलीफ़ उस चीज़ को डिज़ाईरेबेल मानती है। यदि आप उनमें से हैं जो हमेशा चीज़ों को बदलते रहते हैं या उनकी फ़ंक्शनैलिटी के बावजूद उन्हें डिसकार्ड करते हैं तो ये फ़िलोसोफ़ी आपके लिए है। ये आपको एक क्रैक या चिप को किसी चीज़ की सर्विस का सिम्बल मान कर उसे चेरिश करना सिखाती है। वाबी साबी को दर्शाती जगहों में नेचुरल एलिमेंट्स जैसे रफ़ एज वाले वुड और स्टोन, टेढ़े डिज़ाइन आदि दिखायी देते हैं।

वाबी-साबी एक एंशिएंट जापानी फ़िलोसोफ़ी है जो लाइफ़ के इम्परफ़ेक्ट और ट्रांसिएंट नेचर को मानती है

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मोतायनाय — वेस्ट ना करें

सस्टेनेबल वर्ल्ड के फ़ेवरेट मोतायनाय का मतलब है एक तरह की चिंता या अफ़सोस जब किसी चीज़ की इन्ट्रिंसिक वैल्यू अप्रिशीयेट नहीं की जाती या उसे वेस्ट किया जाता है। दूसरे शब्दों में ये रिफ्यूज़, रिड्यूस और रीसायकल करने के लिए प्रेरित करना है। ये टर्म 80 की दशक में जापान में पुराना और इर्रेलेवैंट माना जाने लगा जब कन्ज़्यूमरिस्ट वेव में जापान बह गया था पर अब पिछली दो दशकों में ये टर्म काफी रेलेवेंट होता जा रहा है। जबसे केन्या के एन्वायरनमेंटलिस्ट वंगारी माथाई ने यूनाइटेड नेशन्स कमीशन को 'मोतायनाय' लिखे टी-शर्ट को होल्ड करते हुए एड्रेस किया, ये वर्ड जापान में फिर से प्रोमिनेन्ट हो गया। 2000 की दशक की शुरआत में रिपेयर शॉप्स और रीसाइक्लिंग सेंटर के वापस आने और वेस्ट-रिड्यूसिंग माइंडसेट के शुरू होने को जापान की कलेक्टिव कॉनशियेन्स में 'मोतायनाय' की वापसी मना जाता है।

 2000 की दशक की शुरआत में रिपेयर शॉप्स और रीसाइक्लिंग सेंटर के वापस आने और वेस्ट-रिड्यूसिंग माइंडसेट के शुरू होने को जापान की कलेक्टिव कॉनशियेन्स में 'मोतायनाय' की वापसी माना जाता है

इमेज सोर्स: अनस्प्लैश

मिनिमलिज़म — थोड़ा ही काफी है

कपड़ों की अलमारी में बस चार शर्ट, दो जोड़ी मोज़े और दो जोड़ी पैंट का होना कुछ लोगों के लिए काफ़ी मुश्किल थॉट होगा लेकिन ये ही बात मिनिमलिस्ट लोगों के लिए सुकूनदायक है। ज़ेन बुद्धिज़म में बसा मिलिमलिज़म सिम्प्लीसिटी में ब्यूटी देखता है और एक अनक्लटर्ड क्लोसेट को एक एमपावर्ड माइंड का मेटाफ़र मानता है। पश्चिम की कंस्यूमेरिस्ट इकोनॉमी से दूर ये जापान की एक डिफ़ायनिंग फ़िलोसोफ़ी है। इसको मानने का ये मतलब नहीं है कि अपने घर या स्पेस से अपनी पसंदीदा चीज़े हटा दें पर ये है की आप उन चीज़ों को रखें जो आपकी 'नीड' है और वो नहीं जो आपकी 'वॉन्ट' हैं।

ज़ेन बुद्धिज़म में बसा मिलिमलिज़म सिम्प्लीसिटी में ब्यूटी देखता है और एक अनक्लटर्ड क्लोसेट को एक एमपावर्ड माइंड का मेटाफ़र मानता है

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