आपका (ई)-वेस्ट आपकी ज़िम्मेदारी है
- अपने प्यारे आईपैड को अलविदा कहने और अगले हेडफ़ोन्स को खरीदने से पहले कौन सी बातें ध्यान में रखनी चाहिए, और अपने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बारे में क्या जानना चाहिए, इलक्सिओन प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और संचालक डॉ. उत्तम दोरास्वामी हमें बताते हैं।
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प्लास्टिक और औद्योगिक वेस्ट पर्यावरण से संबंधित मुख्य चिंता का विषय है, एक कम जाना गया पर शायद ज़्यादा हानि पहुँचाने वाला, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट हमारे अंतःकरण पर अपनी छाँप नहीं छोड़ पाया है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर २०१७ के मुताबिक, भारत हर साल लगभग २ मिलियन टन्स ई-वेस्ट उतपन्न करता है और सबसे ज़्यादा ई-वेस्ट उत्पन्न करने वाले देशों की सूची में भारत पाँचवें स्थान पर है। इस सूची में सबसे ऊपर अमरीका, चीन, जापान और जर्मनी हैं। 'संसाधित वेस्ट' की मात्रा बहुत कम है, पर हमने इस ई-वेस्ट को कम करने का काम शुरू कर दिया है, ऐसा इलक्सिओन प्राइवेट लिमिटेड (Elxion Private Limited)के डॉ. उत्तम दोरास्वामी का कहना है। इलक्सिओन एक ऐसी संस्था है जो ई-स्क्रैप यानी ई-वेस्ट को डिस्पोज़ करने के लिए तकनीकी विज्ञान पर आधारित सुझावों को बढ़ावा देती है। डॉ. दोरास्वामी ने इम्पीरियल कॉलेज, लंदन से केमीकल इंजीनियरिंग में पी.एच.डि की डिग्री हासिल की है।
१. ज़िम्मेदार तौर-तरीकों से ई-वेस्ट को डिस्कार्ड यानी उन्हें वेस्ट में डालना कितना ज़रूरी है?
भारत का नागरिक और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का उपभोक्ता होने के नाते, ई-कचरा प्रबंधन नियम, २०१६, जो की २०१८ में संशोधित किये गए, के तहत हम ई-वेस्ट केवल अधिकृत रिसाईकलर्स को देकर ही डिस्पोज़ कर सकते हैं। तो ये हमारा कानूनी और नैतिक दायित्व दोनों है।
२. क्या ई-वेस्ट सही से रिसाईकल किया जा सकता है?
इलेक्ट्रॉनिक्स की विविधता अत्यधिक रूप में मौजूद है। अधिकतम इलेक्ट्रॉनिक्स को मूल अवयव में खण्डित किया जा सकता है जैसे कि- धातु या फिर मिश्रित धातु, प्लास्टिक, मोटी एवं पतली तार, बैट्री, प्रिन्टेड सर्किट बोर्ड यानी मुद्रित सर्किट बोर्ड। इनके कुछ भाग पूरी तरह रीसाईकल किए जा सकते हैं। पर हर वेस्ट की तरह ई-वेस्ट का भी एक छोटा हिस्सा है जो आर्थिक या फिर अंतर्निहित थर्मो फिज़िकल गुणों की वजह से रिसाईकल नहीं किया जा सकता। पर यह बहुत छोटा हिस्सा है।
३. क्या आप भारत की ई-वेस्ट की भारी समस्या पर विस्तार से चर्चा कर सकते हैं?
और कचरा उठाने वाला या वाली। जब इलेक्ट्रॉनिक-वेस्ट को रद्दी माल की तरह बेचा जाता है तब ज़्यादातर उपभोक्ता उसे केवल आमदनी के स्रोत की तरह देखते हैं। यह ग़ैर ज़िम्मेदाराना तरीके से डिस्पोज़ करने के व्यवहार को बढ़ावा देता है जो कि एक भ्रष्ट चक्र की तरह है। इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को जो हानि पहुँचती है उसका कोई ध्यान नहीं रखता और यह ग़ैर कानूनी संसाधन केंद्रों को भी बढ़ावा देता है। हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने ई-वेस्ट की ग़ैर कानूनी तरीके से संसाधन करने की प्रक्रिया को मिट्टी, पानी और हवा के प्रदूषण का एक मुख्य कारण माना है। यही नहीं, इन ग़ैर कानूनी केंद्रों से बचा हुआ कचरा गंगा में फेंका जाता है, जो की ज़हरीले पदार्थों से भरपूर होता है और यह गंगा के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण है।
वहीं हम हज़ारों-करोड़ों रुपये गंगा की सफ़ाई पर खर्च करते हैं! इसी तरह ग़ैर कानूनी तरीके से जलाया गया ई-वेस्ट आज दिल्ली के घटती वायु गुणवत्ता और बढ़ते प्रदूषण का कारण है।
४. आजकल टेक्नोलॉजी बहुत जल्द ही अप्रयुक्त एवं बेकार हो जाती है। एक आम फ़ोन या लैपटॉप ४ या ५ साल से ज़्यादा प्रचलित नहीं रह पाता क्योंकि उसकी जगह कोई बेहतर एवं सस्ता यंत्र ले लेता है। क्या बड़े व्यापार एवं संस्थाएँ इस समस्या को बढ़ावा दे रही हैं?
जी हाँ! जैसे-जैसे बाज़ार में नए उत्पाद आते रहते है, वैसे-वैसे बाज़ार अपनी चरम सीमा पर पहुँचने लगता है। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद इस बात का ध्यान रखते है कि उपभोक्ता अपने पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स को डिपोज़ करते रहें। यह सब ताकि वह अपने बिक्री के लक्ष्य को पूरा कर पाए। डिज़ाइन में बदलाव मरम्मत को ज़्यादा महँगा और कठिन बना देता हैं। उदाहरण के लिए सील की गई बैट्री, कम समय के लिए वारंटी और इलेक्ट्रॉनिक्स बेचने पर कम दाम मिलना। यही नहीं, युरोपियन यूनियन एक ऐसा कानून ला रहा है जो इस बात का ध्यान रखे कि इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादक लंबे समय की वारंटी दे और उस इलेक्ट्रॉनिक वस्तु के हिस्सों को कम से कम १० साल तक बाज़ार में उपस्थित रखें। ये सब ताकि उसकी मरम्मत आसानी से हो सके और वह समान ज़्यादा वर्षों के लिए उपयोग किया जा सके।
५. लोगों को ई-वेस्ट के बारे में ज़्यादा जानकारी क्यों नहीं हैं??
सागर को प्रदूषित करने वाले प्लास्टिक के चित्रों का हमपर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा है। और कई चीज़ें केवल एक बार इस्तेमाल करने के लिए बनी हैं जो समस्या को और बढ़ावा देता है। वही दूसरी ओर ई-वेस्ट और इससे उत्पन हुए ज़हरीलें पदर्थों के डिस्पोज़ल और मनुष्य पर इसके प्रभाव के बीच फ़र्क थोड़ा ज़्यादा है। इस फ़र्क की वजह से यह हमे एक छोटा ख़तरा लगता है और हमारे नज़रिये को धुँधला कर देता है। पर चीज़ें बदल रही हैं।
६. क्या कोई ईको-फ्रेंडली यानी पर्यावरण हितैषी इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल डिवाइस मौजूद है?
डिजिटल उत्पादों का उपयोग ना करना या कम करना बहुत ही कठिन है। मेरी राय में, डिजिटल सामान खरीदते वक़्त हमे अपनी इच्छा और ज़रूरत में संतुलन लाना होगा। उस सामान का कितने साल तक उपयोग किया जा सकता हैं, वारंटी और आसान मरम्मत का ध्यान रखें। इसके अलावा, यह भी देखिए कि उत्पादक खरीदे गए सामान को वापिस लेने या किसी और सामान से बदलने की व्यवस्था प्रदान करता है कि नहीं, यह आसान और सुरक्षित डिस्पोज़ल निश्चित करता है।
क्या आप ई-वेस्ट डिस्पोज़ करना चाहते हैं? यह रहे कुछ विकल्प :
१. अधिकतम टाटा क्रोमा की दुकांनें ई-वेस्ट स्वीकार करती हैं।
२. हर राज्य अपने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर अधिकृत ई-वेस्ट रिसाईकलर्स की एक सूची जारी करता है, जो कि "वेस्ट मैनेजमेंट" टैब पर जाकर आप हासिल कर सकते हैं।
३. ई-परिसरा प्राइवेट लिमिटेड, बेंगलुरु (https://ewasteindia.com)
४. टेस-अम्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (http://tes-amm.net)
५. ग्रीनस्केप (http://greenscape-eco.com)
६. साहस (https://saahas.org)
Bhavini is trying to learn living simply. She loves cats, grandparents and inkpens of all kinds.
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