कोई बच्चे का खेल नहीं!
- १२ साल की क्लाइमेट एक्टिविस्ट, रिद्धिमा पांडे अपने अब तक के सफ़र और अनुभव पर हमसे चर्चा करती हैं - यूनाइटेड नेशन्स में ग्रेटा थंबर्ग के साथ याचिका साइन करने से कोरोना के समय में क्लाइमेट सक्रियतावाद तक।
Bhoomi Mistry is a part-time content writer and an avid…
फ़िलहाल हम कोरोना वायरस की भयंकर वास्तविकता से जूझ रहें हैं, पर इसी बीच एक नन्हीं बच्ची, लोगों को अपने चाल-चलन और व्यवहार में बदलाव लाने के लिए निरंतर ही प्रेरित कर रही है। ऐसा इसलिए ताकि हम एक और आगामी समस्या से बच सके - क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन। रिद्धिमा कहती है, "हम सभी जानते है कि कुछ सबसे प्रदूषित नदियाँ साफ़ होने लगी हैं और हवा का प्रदूषण भी कम हो रहा है। पर ऐसा इसलिए क्योंकि इस दहशत का मूल कारण- मनुष्य, अपने घरों में बंद हैं। यह शीघ्र बदलाव हमे बताता है कि इस पृथ्वी को हानि पहुँचाने एवं खतरे में डालने के लिए मनुष्य ही सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं।"
उत्तराखंड की रिद्धिमा पांडे १२ साल की पर्यावरण कार्यकर्ता है। जेनरेशन Z पीढ़ी की रिद्धिमा किसी पर्यावरण योद्धा से कम नहीं। पाँच साल की उम्र में ही रिद्धिमा क्लाइमेट चेंज के अनेक प्रभाव के प्रति जागरूक हो गई थी, जब २०१३ कि भयंकर बाढ़ ने केदारनाथ में तबाही मचा दी थी, एक तीर्थस्थल जो की रिद्धिमा के गृह राज्य में मौजूद है। इसलिए २०१९ में रिद्धिमा ने, ग्रेटा थंबर्ग और अन्य १४ बालकों के साथ यूनाइटेड नेशन्स में, क्लाइमेट चेंज के प्रति शासनों के अभाव के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज की।
शुरुआत
कम उम्र में ही जागृत होने के बाद, रिद्धिमा ने ९ वर्ष की आयु में एक क्लाइमेट कार्यकर्ता के रूप में अपना सफ़र शुरू किया। "मुझे पता चला कि क्लाइमेट चेंज के इस संकट के प्रति हमारे शासन का अभाव, बालकों के अधिकारों का उल्लंघन करना है। यह हमारे भविष्य को खतरे में डालता है और अब तक लिए सारे कदम काफ़ी नहीं हैं," रिद्धिमा इसमें, भारत सरकार द्वारा दी गई आपदा राहत रक़म कि ओर इशारा करती हैं, जो कि केदारनाथ बाढ़ के लिए दी गई थी।
क्लाइमेट चेंज द्वारा उत्पन्न हुआ ख़तरा अब पहले से कहीं ज़्यादा स्पष्ट है। वैज्ञानिक तथ्यों की मौजूदगी के बावजूद, अधिकतर शासन और व्यावसायों ने पर्यावरण के प्रति, अपनी गतिविधियों के प्रभाव पर ग़ौर तक नहीं किया। इस कठोरता और बेपरवाही से तंग आकर रिद्धिमा ने इन मामलों को अपने हाथ में लेने का फ़ैसला किया। "तब मुझे अहसास हुआ कि अपनी पृथ्वी, अपने भविष्य तथा आने वाली पीढ़ी के भविष्य को बचाना मेरी ज़िम्मेदारी है। मैं केवल घर बैठे-बैठे यह नहीं विश्वास कर सकती थी कि कोई और हमारे भविष्य को बचाएगा। अपने माँ और पिता की मदद से मैंने भारत सरकार के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय हरित अधिकरण में याचिका दर्ज की, क्योंकि सरकार इस संकट के समय को गंभीरता से नहीं ले रही"
हालंकि २०१७ में राष्ट्रीय हरित अधिकरण में शिकायत दर्ज करने से कोई सकारात्मक नतीजे नहीं निकले। "उन्होंने मेरी याचिका यह कहकर ख़ारिज कर दी कि सरकार इस विषय के प्रति पर्याप्त कदम ले रही है और इससे अधिक निर्देशों की कोई आवश्यकता नहीं। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और हम उनके जवाब का इंतज़ार कर रहें हैं।"
"मुझे पता चला कि क्लाइमेट चेंज के इस संकट के प्रति हमारे शासन का अभाव, बालकों के अधिकारों का उल्लंघन करना है।"
वह निर्णायक क्षण
शुरुआत में ही रिद्धिमा कुछ परखों से आगाह हो गई थी, वह हमें बताती हैं, "भारत सरकार के साथ दिक्कत यह है कि वे कागज़ी काम ज़्यादा करते हैं और ज़मीनी काम कम। कई सालों के अध्ययन के बाद, रिपोर्ट्स अनुमान लगाती हैं कि क्लाइमेट चेंज के प्रभाव का ख़तरा भारत को ज़्यादा है क्योंकि विकासशील देश होने के कारण, सरकार प्राकृतिक संपत्ति और साधनों का शोषण करती है और इस 'विकास' की असली क़ीमत क्या है, यह नहीं समझती। दिबांग घाटी में जंगलों का सफ़ाया करना हो या फिर असम में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड द्वारा दी गई कोयला ख़ुदाई की मंज़ूरी - इन सभी का आने वाली पीढ़ियों पर बहुत हानिकारक प्रभाव होगा।
क्लाइमेट चेंज का यह संकटकाल एक ऐसी समस्या है जिसका हल निजी और सामूहिक स्तर पर निकालना होगा। रिद्धिमा के मुताबिक हमे अपना कर्तव्य निरंतर ही पूरा करते रहना चाहिए, हालांकि इसका हल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा वैज्ञानिक पद्धतियों की स्वीकृति पर बहुत ही विशाल ढंग से निर्भर है
एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण, जिसमे रिद्धिमा सभी के लिए एक उदाहरण बनते नज़र आई, तब साकार हुआ जब उन्होंने यूनाइटेड नेशन्स कमिटी में ग्रेटा थंबर्ग और अन्य १४ बालकों के साथ एक शिकायत दर्ज की। ताकि विश्व में मौजूद नेता, एनवायर्नमेंटल प्रोटोकॉल्स यानी पर्यावरण के हित के लिए महत्वपूर्ण निर्देशों को स्वीकार कर ज़रुरी कदम उठाए। रिद्धिमा कहती है, "जब मैंने राष्ट्रीय हरित अधिकरण में याचिका दर्ज की तो उत्तर सकारात्मक नहीं था। .पर यूनाइटेड नेशन्स में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने हमारी याचिका स्वीकार की और उसमें ज़िक्र किए गए देशों को अपने उत्तर पेश करने का आदेश दिया। पाँचों देशों ने उत्तर दिया," जो कि ब्राज़ील, अर्जेंटीना, फ़्रांस, जर्मनी और टर्की हैं - कुछ ऐसे देश जिनके कार्बन एमिसिशन्स यानी उत्सर्जन पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा हैं। रिद्धिमा का योगदान कई लोगों द्वारा पहचाना गया और समान्नित किया गया। उन्हें कई बार भारत की ग्रेटा थंबर्ग भी कहा गया है। इसपर रिद्धिमा कहती है, "लोगों ने मेरे काम को पहचाना, सराहा और मुझे भारत की ग्रेटा कहा, मैं इसके लिए बहुत ही आभारी हूँ। पर मेरा और ग्रेटा का स्वभाव बहुत अलग और मुझे अच्छा लगेगा अगर लोग मुझे रिद्धिमा पांडे के नाम से ही पहचाने बजाय की भारत की ग्रेटा।"
"मुझे अच्छा लगेगा अगर लोग मुझे रिद्धिमा पांडे के नाम से ही पहचाने बजाय की भारत की ग्रेटा।"
डिजिटल सक्रियतावाद
पृथ्वी को बचाने का लक्ष्य लिए, यूनाइटेड नेशन्स में रिद्धिमा ने पूरे विश्व से आए और उन्हीं जैसी सोच रखने वाले लोगों से मुलाक़ात की। "वह मेरे लिए एक बहुत ही श्रेष्ठ अनुभव था। उस सम्मेलन में मैंने लोगों की समस्याओं के बारे में खूब सारी बातें जानी, वे समस्याएँ जो ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से उत्पन्न हुई हैं। क्लाइमेट कार्यकर्ताओं द्वारा झेली गई मुश्किलें और शासन उनके विरोध पर क्या प्रतिक्रिया करती है, इसके बारे में भी जाना। मैंने नए दोस्त भी बनाए जिनसे मैं आज भी सोशल मीडिया के ज़रिये बात करती हूँ।"
पृथ्वी के ये मित्र मुश्किल समय में भी बदलाव लाने से कतराते नहीं। ये समझते हैं कि निष्क्रियता परिस्थितियों को और खराब कर सकती हैं। रिद्धिमा समझाती है कि, "हमने क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को अनुभव करना शुरू कर दिया है और अगर हमने अभी कोई कदम नहीं उठाया, तो हमे सूखा, बाढ़, अनपेक्षित वर्षण, जैसी समस्याओं को उनकी चरमसीमा पर झेलना पड़ेगा। २१०० तक समुद्र का स्तर १ से ४ फ़ीट बढ़ जाएगा और आर्कटिक बर्फ़ एवं ग्लेशीयर्स से मुक्त होगा।" "कोरोना वायरस ने क्लाइमेट सक्रियतावाद का नक़्शा बदल दिया है। अब हम बाहर जाकर विरोध नहीं कर सकते ना ही कोई कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। हम ऐसे कार्यक्रम अब ऑनलाइन आयोजित कर रहें हैं। २५ अप्रैल को हम एक वैश्विक क्लाइमेट विरोध आयोजित करने वाले थे पर इसे सड़कों पर लाना मुमकिन नहीं हो पाया, इसलिए हमने इसे ऑनलाइन आयोजित किया। लोगों ने इसका खूब समर्थन किया। लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए, मैंने एक वेबिनार में हिस्सा लिया जिसमें वीडियो शूट करना था, लोगों को यह याद दिलाने के लिए कि जहाँ चाह, वहाँ राह।"
"हमने क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को अनुभव करना शुरू कर दिया है और अगर हमने अभी कोई कदम नहीं उठाया, तो हमे सूखा, बाढ़, अनपेक्षित वर्षण, जैसी समस्याओं को उनकी चरमसीमा पर झेलना पड़ेगा।"
आगे की राह
हाल ही के समय में हमने अनुभव किया है कि प्रकृति बहुत ही सरलता से संपूर्ण मानवजाति को घुटनों पर झुका सकती हैं। हमे अपने सेवन पर विचार करने की ज़रूरत है एवं सस्टेनेबिलिटी को रोज़मर्रा की बातचीत का हिस्सा बनना है, और अब तो पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा। रिद्धिमा कहती है, "सस्टेनेबल जीवन आज के समय की ज़रूरत है। अगर हमें अपना भविष्य बचाना है, तो हमे सस्टेनेबल विकास को बढ़ावा देना होगा। यह तभी संभव होगा जब यह हमारी शिक्षा का हिस्सा बने।" रिद्धिमा का कहना है, "एक इंसान सस्टेनेबल बनने के लिए बिजली, पानी, पेपर की बचत ; रीड्यूस, रीयूज़, रीसाईकल का पालन ; धातु से बनी पानी की बोतल का इस्तेमाल ; छोटे फ़ासलों के लिए साईकल का इस्तेमाल ; और कपड़ों को दान कर सकता है।"
अपने खान-पान पर भी ज़रूर विचार करें। "पशु कृषि का एनवायरनमेंटल फ़ुटप्रिंट बहुत विशाल है, यानी प्राकृतिक संपत्ति और साधनों का उपयोग बहुत ही अधिक मात्रा में होता हैं। यह भूमि और जल अवक्रमण, जैव विविधता में नाश, एसिड रेन यानी अम्ल वर्षा, कोरल रीफ़ यानी प्रवाल-भित्ति अवक्रमण और वन के नाश को भी बढ़ावा देता हैं। पूरे विश्व में मानवजाति द्वारा किए गए १८% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का कारण पशु कृषि ही है। शाकाहारी होना मेरा खुद का निर्णय है पर मुझे लगता है केवल पर्यावरण के लिए काम कर रहे लोगों को ही नहीं बल्कि सबको शाकाहार को एक अवसर देना चाहिए।"
"सस्टेनेबल जीवन आज के समय की ज़रूरत है। अगर हमें अपना भविष्य बचाना है, तो हमे सस्टेनेबल विकास को बढ़ावा देना होगा।"
पर केवल १२ साल की एक बच्ची इतना अद्भुत और प्रेरणा देने वाला सफ़र कैसे तय कर सकती है? रिद्धिमा का मानना है कि कोई भी शुरुआत करने के लिए ना तो कभी जल्दी होती है और ना ही कभी देर। "मेरा यह मानना है कि किसी भी व्यक्ति की आयु केवल एक अंक है और अगर आप ध्यान दें तो अधिकतम लोग यही कहते है पर वे खुद इस बात को मानते नहीं। किसी की आयु, जाति, धर्म या लिंग के आधार पर धारणाएँ नहीं बनानी चाहिए ना ही भेद-भाव करना चाहिए बल्कि उनके काम और व्यक्तित्व पर ध्यान देना चाहिए।"
भूमि मिस्री मुंबई में रहनेवाली एक पार्ट टाइम लेखिका है और एक कला उत्सुक भी। जब वह समय पर काम पूरा करने में व्यस्त ना हो, तब आप उन्हें उनके घर के नन्हें से बागीचे में, फ्रैंक ओशन के गानों पर चित्रकारी करते हुए पाएँगे।