पंखुड़ी ऊर्जा: पुष्पों के अवशिष्ट को सुगन्धित अगरबत्तियों में परिवर्तित करना
- आइए मिलें उन दो उद्यमियों से जो समूचे हैदराबाद शहर के फूलों को पर्यावरण हितैषी उत्पादों में बदलने तथा स्थानीय स्त्रियों के सशक्तीकरण के हेतु एकत्र करते हैं।
Krutika Behrawala is a journalist who enjoys writing about food,…
यह कार्य उनके पूजा घर के फूलों, मित्रों और परिवार की सहायता तथा एक यू ट्यूब की वीडियो से प्रारम्भ हुआ।
एक वर्ष पूर्व हैदराबाद निवासी मित्र 'माया विवेक' और 'मीनल डालमिया' को एक यू ट्यूब वीडियो के माध्यम से उत्तरी भारत के एक उद्यम के विषय में जानकारी मिली जहां फूलों का पुनर्चक्रण किया जाता है। जिज्ञासावश उन्होंने फूलों, उनके प्रयोगों और पुनर्चक्रण के तरीकों के विषय में और अधिक ऑनलाइन जानकारी लेना प्रारम्भ किया। उसके बाद उन्होंने अपने रसोईघर में फूलों के अवशिष्ट से अगरबत्तियां बनाने का प्रयोगात्मक प्रयास किया। माया, जो एक अंतरराष्ट्रीय माल ढुलाई प्रेषक का कार्य करती थीं, याद करती हैं," हमारे परिवार के सदस्य, बच्चे और पड़ोसी भी फूलों को छांटने; उन्हें सुखाने और अगरबत्तियों को लपेटने में हमारी सहायता करते थे। हमारी पहली अगरबत्ती शानदार थी लेकिन उसकी गन्ध भद्दी थी।
मीनल, जो प्लास्टिक इंजेक्शन के सांचे बनाने के अपने पारिवारिक व्यवसाय में लगी हुई थी, कहती हैं,"हम जानते थे कि अभी हम केवल सतह पर है तैर रहे हैं।
माया और मीनल का कठोर परिश्रम हैदराबाद के निकट गुंदलापोचम्पल्ली नामक गांव की स्थानीय महिलाओं के रोजगार के माध्यम से उनके सशक्तीकरण का माध्यम बना।
परन्तु यह विचार उनके भीतर बना रहा। शीघ्र ही वे दोनों घनिष्ठ मित्र बन गईं क्योंकि उनके बच्चे सहपाठी थे। उन दोनों ने अपने व्यवसायों को त्याग दिया। उद्यमशीलता के लिए इच्छुक उन्होंने अगरबत्तियां, साबुन और अन्य उत्पाद बनाने की कला को सीखने हेतु कई ऑनलाइन और ऑफ़लाइन कोर्सों में प्रवेश लिया। इस ज्ञान से युक्त होकर उन्होंने 'होली वेस्ट'नामक एक पहल को स्थापित किया जहां फूलों को पर्यावरण हितैषी अगरबत्तियों, पारबेन मुक्त साबुन और खाद बनाने के लिए फूलों का पुनर्चक्ररण किया जाता है।
अप्रैल 2019 में निगमित एक सामाजिक उद्यम 'ऊर्वी सस्टेनेबल कॉन्सेप्ट्स' की छाया तले प्रारम्भ हुए इस साहसी प्रयास ने हैदराबाद के निकट एक गांव गुंदलापोचम्पल्ली की स्थानीय महिलाओं को रोजगार के माध्यम से नारी सशक्तिकरण के लिए कदम बढ़ाया। माया बताती हैं,"कुछ वर्षों से हैदराबाद के निकट निवास करते हुए हम दोनों ने कई बार यह विचार विमर्श किया कि वहां की महिलाओं को लाभान्वित करने के लिए कुछ काम शुरू किया जाए जिससे गांव के आस पास का पर्यावरण भी प्रभावित हो।
टैम्पल रन
सामान्य तौर पर हैदराबाद शहर में प्रतिदिन लगभग 7000 मिलियन टन कचरा पैदा होता है। इस कचरे का एक बडा़ भाग फूलों का अवशिष्ट होता है। स्पष्ट है कि शहर के बाजारों में प्रतिदिन लगभग एक हज़ार मिलियन टन फूलों को लाया जाता है। इस कचरे में आमतौर पर शादियों और त्योहारों के मौसम की अभिवृद्धि होती है।
इस प्रायोजित परियोजना के लिए उन्होंने 'स्कन्दगिरी' के 'सुब्रह्मण्यस्वामी' मंदिर से प्रति सप्ताह 20 किलोग्राम फूलों का कचरा एकत्रित किया।
मीनल कहती हैं,"वर्तमान में फूलों का कचरा उत्पन्न करने वालों को इस कचरे के प्रबंध का कोई अभ्यास नहीं है। वे या तो इसे नगरनिकायों को सौंप देते हैं अथवा उन्हें सड़कों पर भी पड़ा हुआ छोड़ देते हैं। फूलों के कचरे का कोई प्रबन्धन ना होने के कारण वे या तो लैंडफ़िल के भीतर चले जाते हैं या जल निकायों के भीतर सड़ जाते हैं तथा पर्यावरण के लिए नुकसान का कारण बनते हैं।
अतः इन दोनों ने मंदिरों और पूजा स्थलों से फूलों का कचरा एकत्रित करने पर ध्यान केन्द्रित किया। इस प्रायोजित परियोजना के लिए उन्होंने 'स्कन्दगिरी' के 'सुब्रह्मण्यस्वामी' मंदिर से प्रति सप्ताह 20 किलोग्राम फूलों का कचरा एकत्रित किया। माया बताती हैं," उस समय इतनी बड़ी मात्रा को संभालना बहुत कठिन था। यद्यपि तब से उन्होंने हैदराबाद के 45 मंदिरों के साथ भागीदारी की। उन्होंने विक्रेताओं, समारोह आयोजकों तथा सज्जा कारों से भी फूलों का कचरा एकत्रित किया।
गुलाबों का कायाकल्प
यह टीम प्रत्येक पूजा स्थल पर बड़े बड़े ड्रम लगाती है और वहां के स्टाफ़ को फूलों के कचरे की प्रारम्भिक छंटाई के लिए प्रशिक्षित करती है। इसके बाद ये छंटा हुआ कचरा गुंदलापोचम्पल्ली में उनके किराए के स्थानों पर ले जाया जाता है।
वहां 10 स्थानीय महिलाएं, जो 'पुष्प कायाकल्पक' कहलाती हैं, का कार्य प्रारम्भ होता है। वे फूलों के रंग की अपेक्षा उनकी किस्मों के अनुसार उन्हें अलग अलग करती हैं जैसे गुलाबों का ढेर, गेंदों की किस्में, गुलदाउदी, फ्रांजीपनी तथा अन्य। माया बताती हैं,"हम अपने संग्रह में लगभग सभी प्रकार के फूलों का प्रयोग करते हैं।"
पंखुड़ियों को तोड़ कर तीन दिनों तक धूप में सुखाया जाता है, उनका पाउडर बनाया जाता है, प्राकृतिक बंधक के प्रयोग से उन्हें गूंथा जाता है और अगरबत्तियों के रूप में हाथों से लपेटा जाता है और यह सभी कार्य चारकोल का प्रयोग किए बिना किए जाते हैं। मीनल कहती हैं,"यद्यपि प्रति अगरबत्ती के लिए चारकोल की कम मात्रा चाहिए परन्तु फिर भी यह जीवाश्म इंधन है और पर्यावरण के लिए एक बोझ है।" वे आगे कहती हैं कि प्रत्येक अगरबत्ती को बनाने में 200 ग्राम सूखा फूल लगता है जो 45 मिनट तक जलती है और कम धुआं उत्पन्न करती है।
माया कहती हैं,"हम ऐसी सुगन्ध चाहते थे जिसे सूंघना सुरक्षित हो और लागत कम करने के लिए किसी प्रकार की कृत्रिम मिलावट नए की गई हो जिससे हमारे फेफड़ों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता हो।
फूलों के इस कचरे को धूपबत्ती की डंडियों तथा पारबेन मुक्त हस्तनिर्मित साबुन में भी परिवर्तित किया जाता है जिन्हें कम तापमान में दाबी गई सब्ज़ियों के तथा अन्य सुगन्धित तेलों से युक्त किया जाता है। बचे हुए कचरे को खाद बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। शीघ्र ही इनका प्रयोग 'वैक्स टैबलेट' के लिए भी होगा। इस उत्पाद की पैकेजिंग के लिए पुरानी साड़ियों और दुपट्टों का प्रयोग किया जाता है। मीनल आगे कहती हैं,"यह रोजगार उत्पन्न करने का एक अनमोल तरीका है।"
फूलों के इस कचरे को धूपबत्ती की डंडियों तथा पारबेन मुक्त हस्तनिर्मित साबुन में भी परिवर्तित किया जाता है जिन्हें कम तापमान में दाबी गई सब्ज़ियों के तथा अन्य सुगन्धित तेलों से युक्त किया जाता है।
ये दोनों हैदराबाद के एक खाद्य और कृषि ऊष्मानियंत्रक व्यापार के 'ए-आइडिया एन.ए.ए.आर.एम.' नामक एक ऊष्मायन कार्यक्रम से जुड़ी। माया कहती हैं,"इसने हमें कुछ बुद्धिजीवियों से मिलने में मदद की जिन्होंने हमें मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की कि अपने मूल्यों के साथ समझौता किए बिना हम अपनी अगरबत्तियों को बाज़ार तक ले जाने के लिए क्या कर सकते हैं।" तब से वे मासिक जैविक बाज़ारों तथा हैदराबाद और बंगलूरू के अनेक पर्यावरण सचेत खुदरा स्टोरों में भाग लेती हैं। ये उत्पाद शीघ्र ही अमेज़ॉन और फ़्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध होंगे।
इस पहल ने प्रतिदिन लैंडफिलों से 200 किलोग्राम फूलों के कचरे को कम करने में मदद की है तथा उसमें 2019 के 'ईको आइडियाज़ बाय ग्रेट इंडिया अवॉर्ड्स' के तहत 'ग्रीन स्टार्टअप' अवॉर्ड को भी जीता। मीनल निष्कर्ष रूप में कहती हैं,"एक शून्य कचरा यूनिट बनाना हमारा स्वप्न रहा है और हम इसके लिए सक्रीय रूप से कार्य कर रहे हैं।"
Image Courtesy: Holy Waste
क्रुतिका बहरावाला एक पत्रकार हैं जो भोजन, संस्कृति तथा विभिन्न समुदायों के विषय में लेखन का आनन्द लेती हैं। एक दशक से महत्वपूर्ण प्रकाशनों के समाचार कक्षों में लेखन कार्य करने के पश्चात वे विचारपूर्ण फ़्रीलांसिंग लेखन में कार्यरत होकर भिन्न प्रकार के मुद्दे उठाती हैं जो नवीन और परिवर्तनकारी हैं तथा सस्टेनबल जीवन शैली के लिए उपयुक्त हैं। वे अपने कार्य द्वारा सस्टेनबल जीवन शैली की ओर कदम बढ़ा रही हैं।