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'कैम्पा' ऐक्ट की वे सभी बातें जो आप जानना चाहेंगे

'कैम्पा' ऐक्ट की वे सभी बातें जो आप जानना चाहेंगे

Ethico - Suchitra
  • एक ऐसा कानून जिसका मंतव्य यह सुनिश्चित करना था कि भारत का सम्पूर्ण वन क्षेत्र विकास के नाम पर पूरी तरह से नष्ट नहीं किए गए हैं, उसके खिलाफ पर्यावरणविद् और आदिवासी कार्यकर्ता आक्रामक मुद्रा में हैं। ऐसा क्यूं है?

भारत के वन लंबे समय से निगमों के हितों से जुड़े विरोधाभासों के दलदल में फांस रहे हैं और सरकार की उपेक्षा और अव्यवस्था में वन क्षेत्र के निवासी समुदायों और सम्पूर्ण वन क्षेत्र को इसके परिणामस्वरूप होने वाले दुष्परिणामों से निबटने के लिए छोड़ दिया।

इस समस्या के समाधान के लिए सन् 2001 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक 'कंपेंसेटरी एफ़ौरेस्टेशन फंड' और 'कंपेंसेटरी एफ़ौरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लैनिंग अथॉरिटी' (CAMPA) को स्थापित करने का आदेश दिया। 'कैम्पा' 2006 में अस्तित्व में आया और सरकार ने 'कंपेंसेटरी एफ़ौरेस्टेशन फंड ऐक्ट' को पास किया को 'कैम्पा ऐक्ट 2016' के नाम से भी जाना जाता है।

कैम्पा क्या कार्य करता है?

जब भी वन के भीतर के वृक्ष गैर वनीय उद्देश्यों के लिए काटे (अथवा कार्यालयी भाषा में स्थानांतरित) जाते हैं, तो वन संरक्षण ऐक्ट 1980 के अंतर्गत कानूनी रूप से अनिवार्य है कि पूरक रोपण के लिए एक समान क्षेत्र फल के एक गैर वानीय भूखण्ड को अधिकृत किया जाए। यद्यपि वन रोपण के कार्यान्वयन का दायित्व राज्य सरकारों ( तथा केंद्र शासित सरकारों) पर होता है तथापि इस कार्य के लिए आवश्यक राशि प्रयोगकर्ता संस्था (प्रायः एक निजी समूह) जिसने उस भूमि का विकास किया है से एकत्रित की जाती है।

Natural growth cleared in Sargur Plantation to plant trees in violation of Compensatory Afforestation guidelines. Image Source: India Caf

इस उद्देश्य के लिए अदा कि गई राशि की मात्रा का निर्णय अनेक कारकों पर निर्भर होता है जिसमें सभी वस्तुएं और सुविधाएं जैसे इमारती लकड़ी, इंधन की लकड़ी, मृदा संरक्षण, अथवा बीजों का प्रसार शामिल है, जो उस वन द्वारा आगामी 50 वर्षों की अवधि के दौरान उपलब्ध कराई जाती यदि वह उस अवधि में जीवित रहता। यह कीमत वर्तमान शुद्ध कीमत (NPV) कहलाती है और इसकी गणना विशेषज्ञों की एक कमिटी द्वारा की जाती है। प्रयोगकर्ता संस्था के द्वारा अदा की जाने वाली अंतिम राशि में यह वर्तमान शुद्ध कीमत (NPV) तथा वन रोपण एवं कुछ अन्य भुगतान शामिल हैं।

इस राशि की व्यवस्था करना तथा निर्धारित उद्देश्य के लिए प्रयुक्त करना, जो कि वन रोपण है, कैम्पा का कार्य है।

यह समस्यत्मक क्यों है?

कैम्पा ऐक्ट के विषय में पैदा होने वाले अनेक प्रकार के प्रश्न जैसे कुछ मामलों में निर्धारित वन रोपण क्यों नहीं हुआ अथवा दी गई राशि कहां उपयोग की गई है। उदाहरणार्थ अंकेक्षण में पाया गया कि छत्तीसगढ़ में इस प्रकार से प्रयोग की गई कुछ राशि को गैर वनीत उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया गया। यद्यपि अन्य अनेक प्रकार के प्रश्न भी इनमें शामिल होते हैं जैसे कौन कौन से संसाधन और अवसर गंवा दिए गए अथवा वन रोपण के कार्यक्रम का आयोजन किस प्रकार किया गया।

सन् 2006 में वन अधिकार ऐक्ट के निर्मित होने के पश्चात् वनों के उपयोग और व्यवस्था का पहला अधिकार उन लोगों को दिया गया जो कई पीढ़ियों से वहां के निवासी है और जिनकी जीवन आजीविका और समुदाय वन संसाधनों के चारों ओर केंद्रित है। आदिवासी समुदायों को ना केवल वन भूमि के उपयोग का अधिकार प्राप्त हुआ अपितु उसकी देख रेख और सुरक्षा का दायित्व भी मिला। इस ऐक्ट के माध्यम से वन में निवास करने वाले उन समुदायों के अधिकारों को समाप्त कर दिया गया जिन्हें 1996 में 'द प्रोविज़न ऑफ़ द पंचायत्स ऐक्ट' जिसे पीसा (PESA) के नाम से जाना जाता है, सूचीबद्ध क्षेत्रों के विस्तार के अंतर्गत ये अधिकार दिए गए थे।

Matiyadand project in Chattisgarh started in 2011 to plant 55,000 saplings of four species but satellite images show no change in seven years. Image Source: BehanBox

चूंकि पूरक वन रोपण के लिए उपलब्ध भूमि का अभाव है, कई भू अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि नाव रोपण कार्य पोंडू(स्थानांतरित खेती) भूखंडों पर किया जा रहा है अथवा एफ़.आर.ए के अंतर्गत वन निवासी समूहों द्वारा अधिकृत वन भूमि पर इनकी अनुमति के बिना भी किया जा रहा है। इसका स्थानीय खाद्य सुरक्षा और आजीविका पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है।

यह पूरक वन रोपण प्रायः उस भूमि पर भी होता है जिसपर वन निवासी समुदाय अपनी आजीविका के लिए निर्भर करते हैं। आदिवासी महिलाएं प्रायः पर्यावरण हितैषी उत्पादों का निर्माण करती हैं जैसे सियाली के पत्तों से बनी प्लेट्स इत्यादि और इस प्रकार वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनते हैं परन्तु यह ऐक्ट इन आदिवासी समुदायों के जीवन के उपायों को पूर्ण रूप से निष्फल करता है क्योंकि जब इन भूखंडों पर पूरक वन रोपण का कार्य किया जाता है तो को वृक्ष ले जाए गए हैं, उनका पुनः रोपण नहीं होता।

मध्य प्रदेश के मांडला जिले की निवासी लायची बाई पिछले दो वर्षों से कैम्पा ऐक्ट के विरूद्ध प्रदर्शन कर रही हैं। उनकी यह पीड़ा नैनपुर के मोहगांव प्रोजेक्ट से जुड़ी है जिसमें यूकेलिप्टस और टीक जैसी वृक्ष प्रजातियों के रोपण हेतु वहां की स्थानीय वृक्ष प्रजातियों जैसे साजा (Terminalia tomentosa) और हर्रा (Terminalia chebula) को काट दिया गया। वे कहती हैं, "हमें अपनी आजीविका के साथ अपनी पारंपरिक औषधियों को बनाने के लिए अपने स्थानीय वृक्षों की आवश्यकता है। इस घटना के कारण हमारी जीवन शैली पूरी तरह से बाधित हो गई है। इसके अलावा जब हम अपने वन को बचाने का प्रयास करते हैं तो वन विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रायः आदिवासियों को सताया जाता है।

Forest clearances under CAMPA pose risk to Adivasi communities. Image Source: India Caf

दूसरा उदाहरण तेलंगाना के नालगोंडा जिले का है जहां जंगल की एक बड़ी पट्टी को कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना के लिए हटाया गया है। यहां भूमि के जिन खंडों पर पूरक वन रोपण किया जाना था वे बंजर और बीहड़ रूप में पड़े हैं। इस प्रकार के क्षेत्रों में वन रोपण का अर्थ है चट्टानों को विस्फोट से तोड़ना, वहां से मिट्टी और मलबे को हटाना और तत्पश्चात वहां गूलर और नीम जैसे कठोर प्रजाती वाले वृक्षों का रोपण करना जो उस भूमि में बने रह सकें। इसका आश्रय है कि वहां की बहुत सी स्थानीय वृक्ष प्रजातियों का पुनः रोपण कभी नहीं होया और समय के साथ साथ इस प्रकार के अधिकतर घरेलू पौधे पूरी तरह से गायब हो जाते हैं।

आगे के रास्ता

  1. सरकार को समय समय पर सुनिश्चित कर लेने की आवश्यकता है कि वन का अधिकारी तंत्र इस बात को समझने के लिए प्रेरित रहे की लोक सेवक के रूप में उनकी स्थिति ग्राम सभा, जो वनों के संसाधनों की व्यवस्था करती है, उनके कर्तव्यों के अधीन है। इसके अतिरिक्त कोई भी बात कानूनी और सार्वजनिक सेवाओं की दृष्टि से हानिकारक होगी और एक आधारभूत लोकतंत्र की स्थापना में बाधा रहेगी।
  2. सरकार को यह समझने की आवश्यकता है कि किस प्रकार का रोपण कार्य किया जा रहा है और पूरक वन रोपण राशि का प्रयोग कहां किया जा रहा है। इसका निर्णय सर्वश्रेष्ठ रूप में आदिवासियों द्वारा किया जाना चाहिए जिनका वनों के साथ सबसे निकट संबंध होता है और प्रत्यक्ष रूप से वे उनपर निर्भर होते हैं।
  3. सरकार द्वारा PESA ऐक्ट वन अधिकार ऐक्ट के प्रावधानों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि को भूमि विकास कार्य के लिए निर्धारित की जाए वह पोंडू लैंड्स जैसे सूचीबद्ध जनजातीय गडरिए या खतरे की चपेट में आ आई विशिष्ट जनजातियां वहां केवल मूक दर्शक ना बन कर वन के योजना कार्य में सक्रीय रूप से नेतृत्व करें।
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