प्रतिदिन एक वन लगाओ, जलवायु परिवर्तन पर रोक लगाओ
- विश्व भर के शहरी क्षेत्रों में वन अचानक उभारने लगे हैं और इनमें से अनेक वनों को वर्तमान समय में प्रसिद्ध 'मियावाकी पद्धति' द्वारा उगाया गया है।
Siddhant brews his own kombucha, tries to grow his own…
वर्तमान समय में 'शहरी वनों' का विचार विशेष रूप से प्रचलित है। अमेरिका में सन् 2030 तक 855 मिलियन वृक्षों को पुनर्जीवित करने और वृक्षारोपण करने की प्रतिबद्धता के साथ द ट्रिलियन ट्रीज़ इनीशिएटिवनामक एक 'राष्ट्रीय प्रतिज्ञा कार्यक्रम' का आयोजन हुआ जबकि फ्रांस, बेल्जियम और नीदरलैंड के विभिन्न समूहों द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे तथा शहरों के बीच छोटे छोटे भूखंडों पर लघुवनों को विकसित करने के लिए जड़ों को रोपा गया।
शहरी वनों के पक्ष में यह एक सशक्त मुद्दा है। ये वन कार्बन उत्सर्जन को कम करने, वायु प्रदूषण को घटाने और शहरी निवासियों के जीवन की गुणवत्ता को सामान्य रूप से सुधारने में सहायता करते हैं। वे बड़ी मात्रा में स्थानीय जीवजंतुओं को भी आकर्षित करते हैं। कल्पना कीजिए यदि आपको सुबह सुबह एक चिड़िया की आवाज़ ने जगाया हो। साथ ही मार्गों के किनारे रोपित एकाकी वृक्षों की अपेक्षा शहरी वन यह सबकुछ करने के लिए अधिक सक्षम हैं। न्यू यॉर्क शहर के प्राकृतिक वन क्षेत्र से जुड़े वृक्ष उस पूरे शहर में लगे कुल वृक्षों कि अपेक्षा केवल एक चौथाई हैं परन्तु शहर का 69 प्रतिशत एकत्रित कार्बन और 83 प्रतिशत बिखरा हुए कार्बन उनके भीतर है।
शहरी वनों कि यह अवधारणा नितांत नई नहीं है। प्राचीन मंदिर और तीर्थस्थल वनों के छोटे छोटे कुंजों को अपनी भूमि पर सुरक्षित रखते आए हैं और विश्व भर में लॉस एंजेलिस से तेल-अवीव और मुंबई जैसे अनेक बड़े शहरों में उनके शहरी फैलाव के भीतर वनों के खंड है। तथापि यह अवधारणा वर्तमान जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में पर्याप्त आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
शहरी वनों की कोई भी बात मियावाकी पद्धति की चर्चा के बिना पूरी नहीं हो सकती। जापानी वनस्पति शास्त्री 'अकीरा मियावाकी' द्वारा संचालित यह पद्धति घने और बहुरूपात्मक वनों को 10 वर्ष जैसी छोटी अवधि में पैदा करने को निर्धारित करती है (100 से अधिक वर्षों में प्रकृति रूप से विकसित होने वाले एक वन की अपेक्षा)। इनके कुछ सुनिश्चित सिद्धान्त हैं यथा वनों को केवल देशी प्रजातियों के द्वारा और रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग के बिना उगाना।
'मियावाकी पद्धति' द्वारा एक वन लगाने की प्रक्रिया एक मृदा सर्वेक्षण से प्रारम्भ होती है। इस मृदा सर्वेक्षण में मिट्टी में मिश्रित किए जाने वाले जैव तत्वों की प्रकृति और मात्रा को निर्धारित किया जाता है (जल के प्रवेश और अवधारण तथा जड़ों के विकास की मदद के रूप में)। उसके बाद वनस्पतियों कि देशी प्रजातियों का एक सर्वेक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि वन में कौन सी प्रजातियों को रोपा जाए। तब समुचित पौधों को लाया जाता है, मिट्टी को tayyar किया जाता है और पौधों को रोपा जाता है (समुदाय द्वारा सम्मिलित रूप से) तथा रोपण क्षेत्र की लगभग दो वर्षों तक देखरेख की जाती है। दो वर्ष पश्चात जब रोपे हुए पौधे परिपक्व हो जाते हैं और एक वन का आकार लेने लगता है, 'मियावाकी पद्धति' के अनुसार सभी मानवीय हस्तक्षेपों को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। संक्षेप में अकीरा मियवाकी के अनुसार, "(दो वर्ष बाद), कोई देख रेख ना करना ही सर्वश्रेष्ठ देख रेख है।"
वास्तव में यतार्थ प्रक्रिया ऊपर बताए गए कार्यों की सरल सूची की अपेक्षा थोड़ी अधिक कठिन है। मृदा सर्वक्षण में मृदा की भौतिक संरचना, जैविक कार्बन, और नाइट्रोजन स्तर, मृदा पी. एच और मिट्टी में मौजूद लघु और वृहद जीवजंतुओं के प्रमाण का विस्तृत आकलन किया जाता है। यहां तक कि उस क्षेत्र की देशी प्रजातियों का विस्तृत और सूक्ष्म आकलन किया जाता है। इन लघुवानों में रोपी जाने वाली प्रजातियों के विषय में 'मियावाकी पद्धति' नितांत अटल है। कंपनियों और शहरों को मियावाकी वनों के निर्माण में मदद करने वाली एक संस्था 'अफ़ोरेस्ट' के संस्थापक 'शुभेंदु शर्मा' के अनुसार किसी क्षेत्र की देशी वनस्पति की प्रजातियों के बारे में निर्णय लेने के लिए एक कठिन शोध होता है। उसके साथ उस क्षेत्र के वनों का परीक्षण, स्थानीय संग्रहालयों का भ्रमण और उस क्षेत्र से संबंधित लोक गीतों और कविताओं के माध्यम से प्रवेश शामिल है।
मियावाकी वन चार स्तरों पर उगाए गए पौधों से भरे संघनित वन हैं जैसे झाड़ियों की परत, उपवृक्षों की परत, वृक्षों की परख तथा चंदोवों की परत - सक्रियाशील रूप से रहते हैं। ये वन बड़ी मात्रा में पक्षियों से लेकर कीटपतंगों तक, जैसे स्थानीय जीव जंतुओं को बड़ी मात्रा में आकर्षित भी करते हैं। वे 100 गुनी मात्रा तक अधिक जैव विविध तथा 30 गुना अधिक प्रभावी वे एकल प्रवृत्ति वृक्षारोपण की अपेक्षा मृदा पुनर्जन्म और भूजल की पुनः पूर्ति के लिए 100 गुना अधिक जैव विविध तथा 30 गुना अधिक प्रभावी है।
मियावाकी पद्धति शहरी वनों के विकास के लिए उत्तम है। मियावाकी वन 'अफ़ोरेस्ट' संस्था द्वारा अनेक भारतीय शहरों में रोपे गए हैं और इनमें से प्रत्येक रोपण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है। 10 वर्षों में एक सम्पूर्ण वन का पूरा हो जाना पूरी तरह लाभ का सौदा है और यह प्रतीत होता है कि विश्व अंततः इसके लिए तैयार है।
सिद्धान्त अपनी स्वयं की 'कोम्बुचा' बनाते हैं, और प्रयास करते हैं अपनी स्वयं की सब्ज़ियां उगाने की, साइकिल से यात्रा करने की, प्लेड शर्ट पहनने की और 'द बीटल्स' का संगीत सुनने की, परन्तु दृढ़ता से कहते हैं कि वे हिप्पी नहीं हैं।