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शहरों में कैसे दे अपने बच्चों को प्रकृति का प्रशिक्षण

शहरों में कैसे दे अपने बच्चों को प्रकृति का प्रशिक्षण

Yashodhara Sirur
  • शहरी दायरों से आगे, उन खुले-हरे क्षेत्रों में, वन्य शिक्षा एक बहुत ही शानदार तरीका है अपने बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का।

हम बच्चों को इन पत्थर और बालू रूपी जंगलों में पाल-पोस रहें हैं, एक ऐसा परिवार होने के कारण हम अक्सर उनके बाहर जाकर खेल-कूद ना कर पाने पर चिंतित रहते हैं। उनके छोटे-छोटे कदम प्री-स्कूल में प्रवेश तो करते हैं पर फिर पूरे वे क्लास-रूम की चारदीवारी में ही बंद रह जाते हैं। प्रकृति से उनका संबंध कमज़ोर और न्यूनतम हैं। फिर जब वो साफ़ समुद्री तट के बजाय वाई-फ़ाई के समीप एक स्विमिंग पूल में अपना वक़्त बिताना चाहते हैं, तो हम आश्चर्यचकित क्यों रह जाते हैं? अगर हम इस चित्र को अपनी वास्तविकता नहीं बनाना चाहते तो हमे पुराने तौर तरीकों को अपना कर, अपने बच्चों को बहुत छोटी उम्र से ही प्रकृति के निकट लाना होगा- इसे आधुनिक शब्दकोश में वाइल्ड-स्कूलिंग यानी वन्य शिक्षा का नाम दिया गया हैं।

How to wildschool your child – in the city!
Nature provides infinite opportunities for discovery. Image Source: Pexels

वाइल्ड-स्कूलिंग या वन्य शिक्षा क्या है?
यह निकोलेट सौडर द्वारा शुरू की गई एक ऐसी पहल है "जो प्रकृति के साथ हमारे अंदरूनी, अनंत और अटूट रिश्ते को सम्मान और और समर्थन देना चाहती है। हमारे अंदर की वन्य भावना को आवाज़ देना चाहती है।" यह पहल कई विचारधारा और कार्य पद्धितियों से प्रेरित हुई है, जैसे की- फॉरेस्ट स्कूल, वॉल्डोर्फ़, रेज्जीओ एमिलिया, अर्थ स्कूलिंग कुछ उदाहरण हैं। यह शिक्षा बच्चे को अपनी गति के मुताबिक सीखने का मौका देती है और प्रकृति से उसके स्वाभाविक रिशते को उजागर कर उसे बढ़ावा देती है।

यह सिर्फ़ बच्चे को प्रकृति के साथ जुड़ना, करुणा भाव से पेश आना और प्रकृति प्रेम करना ही नहीं सिखाती बल्कि यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा है। प्रकृति में समय बिताना बच्चों और बड़ो, दोनों को ही शांति भावना से भर देता है। यही नहीं, बच्चों के लिए तो एक और लाभ है- प्रकृति बच्चों के संतुलन और अपने अंगों के स्थान के आभास एवं समझ को विकसित करती है। पेड़ पर चढ़ना हो, या पत्थरों को लांघना, या फिर कीचड़ में उछलना, यह सब ऐसी क्रियाएँ है जो बच्चे को अपने शरीर एवं अपने परिवेश में संबंध को समझाती हैं। बच्चें एक सुरक्षित ढंग से, अपने दायरों से परिचित होते हैं।

How to wildschool your child – in the city!
Free play in the outdoors boosts creativity and problem solving skills. Image Source: Pixabay

मैंने एक बार कही पढ़ा था कि, "ज़रा सोचिए एक पेड़ को चढ़ने के लिए हमें क्या-क्या चाहिए- पूरे शरीर की कसरत, स्फ़ूर्ति, संतुलन, ऊपरी अंगों का बल, अटलता, प्रेरणा-दृढ़ता, मनोबल, संसर्ग-तालमेल, प्रबलता और कुशलता। पेड़ पर चढ़ने के लिए जिस कला, सक्रियता और अभ्यास की ज़रूरत होती है वे प्रशंसनीय है। फिर भी 'पेड़ पर कैसे चढ़े' यह 'स्कूल पहले सीखने वाले अभ्यास' का हिस्सा नहीं है। ऐसा क्यों नहीं हैं?"

यह संभव नहीं कि हम अपना सारा समय रोज़मर्रा की शिक्षा को छोड़ वन्य शिक्षा पर बिताएँ। पर इसकी नम्रता ही इसकी सुंदरता है। आप वन्य शिक्षा से जुड़ी गतिविधियाँ सप्ताह के अंत में आज़मा सकते है, या फिर केवल रविवार, या फिर हर दिन केवल एक घंटे के लिए भी। समय के साथ यह आपके स्वभाव का हिस्सा बन जाएगा!

आप इन तरीकों से इस 'वन्य' भावना को अपने शहरी जीवन का हिस्सा बना सकते हैं:

१. अपने बच्चों को बागीचों या उद्यानों में ले जाएँ

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Interacting with nature includes more exercise which is not only good for children’s bodies but it also makes them more focused. Image Source: Pexels

पहला कदम बहुत ही सरल है। केवल अपने बच्चों को अपने घर के पास के पार्क, उद्यान या बागीचे में ले जाए। अगर आप मुंबई में हैं तो संजय गांधी राष्ट्रिय उद्यान, बॉम्बे प्राकृतिक इतिहास सोसाइटी रिज़र्व, महाराष्ट्र नेचर पार्क, कर्नाला पक्षी अभ्यारण्य और आरे कॉलोनी के आस पास हरे भरे बागीचे कुछ विकल्प हैं। अपने बच्चों को मन भर खेल लेने दीजिए, उन्हें दौड़ लेने दीजिए। उन्हें तितलियों और फूलों को देखने का मौका दे। उन्हें प्रकृति से जुड़ने दें।

२. घर में एक किचन-गार्डन उगाएँ

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Kitchen gardening allows kids to touch and feels seeds, dirt, vegetables and flowers. It develops a sense of responsibility and also encourages eating healthy. Image Source: Pixabay

आप पौधें, औषधियाँ, सब्ज़ियाँ या छोटे पौधें उगा सकते हैं। मिट्टी में अपने हाथों के मैला कर बीज बोना, पौधों में पानी डालना फिर उस उपज का सेवन करना अवश्य ही बहुत मज़ेदार काम है।

३. घर में एक कम्पोस्टिंग क्षेत्र भी बनाए

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Letting children toss fruit and vegetable peels into your compost bin teaches them about sustainable living, recycling and how to be responsible for the waste they generate. Image Source: Pixabay

किचन-गार्डन के साथ कम्पोस्टिंग क्षेत्र बनाना भी एक उत्तम निर्णय होगा। अपने बच्चों को कम्पोस्टिंग क्षेत्र में गीला कचरा फेंकना सिखाएँ ताकि आपके किचन-गार्डन के लिए अच्छी खाद बन सकें। यह एक सचेत अभ्यास हो सकता है जिसमें बच्चे सीखेंगे कि कोई भी वस्तु 'कचरा' नहीं हैं जबतक हम उसे कचरा न माने।

४. बच्चों के खेलने के लिए मड-किचन बनाए
अगर आपके पास एक बालकनी है तो एक साधरण सा मड-किचन बनाए जहाँ आपके बच्चें मिट्टी से खेल पाएँ। एक पुराना टेबल किचन काउंटर की तरह काम करेगा और कुछ पुराने बर्तन काफ़ी होंगे। थोड़ी मिट्टी, फूल, पत्तियाँ, पतली टहनियाँ या कोई भी प्राकृतिक तत्व जो आप आस-पड़ोस से हासिल कर सकें, ताकि बच्चें अपनी कल्पना का उपयोग कर विविध चीज़ें बना सकें। कई बार तो उनकी कल्पना आपको चौंका भी सकती हैं।

५. जी हाँ, कीचड़ में कूदे!

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Children love jumping in rain puddles. It’s a great way to develop motor skills and build their immune system. Image Source: Pexels

वर्षा बाहरी खेल-कूद के कई अवसर देती हैं। अपने बच्चे को कीचड़ में कागज़ की नाव, पत्ते, फूल, बीज, टहनियाँ, पत्थर और ऐसी कई चीज़ों को तैराना सिखाएँ। वह जानेंगे कौन सी चीज़ें तैरती हैं और कौन सी चीज़ें डूब जाती हैं।

६. जाकर बीच घूमें

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Sand play is terrific for developing a sense of textures. Image Source: Pexels

लहरों के साथ खेले, मिट्टी के किलें बनाएँ, सूर्यास्त की सुंदरता को सराहे और सी शेल्स की खोज पर निकले।

७. जहाँ भी आप रहें, प्रकृति की खोज कायम रखें

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Nature promotes learning in children and teaches them how everything has a purpose. Image Source: Pexels

आप किसी मधुमक्खी को फूल पर बैठा देख एक नई चर्चा शुरू कर सकते हैं, जैसे कि- भिन्न-भिन्न प्रकार की मधुमक्खियाँ, पॉलिनाशन या परागन, मधुमक्खियों को पालने की प्रक्रिया, शहद बनाने की प्रक्रिया केवल कुछ उदाहरण हैं। आप किसी चींटी को अपना खाना उठाता देख चीटियों के बारे में बात शुरू कर सकते हैं। चीटियों की शक्ति और उनके सामूहिक स्वभाव के बारे में सिखा सकते हैं।

वन्य शिक्षा हमे सीखना के ढेरों अवसर देती है। भगवान का शुक्रिया है की प्रकृति हमारी सबसे बड़ी शिक्षिका है।

A wildschooling parent in Mumbai, Anamika Sengupta, shares her experience of letting her son Neo follow his instincts and connect with nature.

"जब मैंने नीओ को जन्म दिया तब मैं और मेरे पति बिपलब ने निर्णय लिया कि हम नीओ को एक ऐसे ढंग से बड़ा करेंगे जो पुर्व धरणाओं से प्रभावित ना हो। हमने उसे अपने प्राकृतिक स्वभाव का पालन करने दिया। हमने भी उसके स्वभाव को समझने की कोशिश की और जीवन को लेकर अपनी पूर्व धारणाओं पर दोबारा अमल किया, उनका त्याग किया। यह बहुत ही अच्छी बात है कि वॉल्डोर्फ़ में दी गई शिक्षा हमारी विचारधारा से मिलती हैं- जो कि उसे बाहर खेलने की लिए प्रेरित करे, प्राकृतिक पदार्थों से खेलना सिखाए और एक ऐसा जीवन बिताने में मदद करे जो गैजेट्स से मुक्त हो। खेलने और सीखने में कोई अंतर नहीं हैं, ऐसी कोई दिनचर्या नहीं जिसका उसे अवश्य ही पालन करना पड़े, वह अपनी दिल की सुनता है और हमेशा उसका ध्यान किसी अभ्यास पर होता है- ऊब जाने का तो सवाल ही नहीं उठता! / ऊब जाने का तो समय ही नहीं है!"

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Neo and Anamika in the tree house.

"यह सौभाग्य की बात है कि हमारे घर और दफ़्तर के पीछे एक नन्हां सा बागीचा है। नीओ अपना अधिकतम समय बाहर ही बिताता है और उसका अपना एक छोटा सा ट्री-हाउस भी है। अगर आपके घर के पास कोई बागीचा नहीं है तो हर शहर या शहर के पास पार्क या उद्यान होते ही हैं। एक शांत स्थान खोज अपनी चटाई बिछाएँ और प्रकृति को अनुभव कीजिए। नीओ अब ६ साल का है, वह अब बहुत ही अनुपालक और रचनात्मक स्वभाव का है। हमारा घर उसकी रचनाओं से सजा हुआ है जो उसने बहुत ही मामूली वस्तुओं से बनाई हैं।"

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