परिवर्तन हेतु छायांकन
- क्या कैमरे जैसी साधारण वस्तु पर्यावरणीय समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित कर सकती है और क्या बच्चे जलवायु संकट का समाधान ढूंढ सकतें हैं?’ अंतराष्ट्रीय बाल फिल्म उत्सव ‘ के दौरान हुए सामूहिक विचार- विमर्श में इन जैसे कई विषयों पर चर्चा की गई।
We’re a team that is unlearning modern-day, convenient living to…
ग्रेटा थुनबर्ग, ज़िए बस्तिदा, इसरा हिरसी, लिया नामुगर्वे – इन सबमें क्या समानता है? ये सभी जलवायु कार्यकर्ता हैं और आपको विश्वास नहीं होगा कि इन सबकी आयु अभी 20 वर्ष भी नहीं है। वास्तव में इनमें से कई अपनी खेलने कूदने की आयु में ही पर्यावरणीय सक्रियता के मार्ग पर चल पड़े थे।
यह हमारे समय का एक स्वीकार्य तथ्य है कि वर्तमान विश्व के समक्ष उपस्थित जलवायु संकट के विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए बच्चे बाध्य हैं। आखिरकार, हम लोगों से विरासत में इस संसार में उनका भविष्य दांव पर लगा है।
इस समय चल रहे अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म उत्सव 2020,जिसका समापन 20 दिसंबर को होगा, में ‘अर्थ कॉलिंग’ शीर्षक से एक सामूहिक विचार विमर्श में इस विषय पर प्रकाश डाला गया कि युवा लोगों तथा प्रौढ़ों के बीच जागरूकता पैदा करने में सिनेमा किस प्रकार एक सशक्त माध्यम का कार्य कर सकता है।
इस पैनल की मध्यस्थता ‘ आई के एफ एफ’ कार्यक्रम की प्रबंधक रुचि सावर्देकर ने की तथा ‘ माइक्रो प्लास्टिक मैडनेस’ के निर्माता ‘ डेबी ली कोहेन’ और ‘ अत्सुको क्विर्क’ को विशेष रूप से प्रदर्शित किया जो न्यूयॉर्क से सीधे शामिल हुए। ‘इथिको इंडिया तथा माहिम बीच क्लीन अप’ की संस्थापक ‘ राबिया तिवारी’ और उत्तराखंड की छात्रा पर्यावरणविद ‘रिद्धिमा पांडे ‘ भी चर्चा समूह में शामिल थीं।
‘ कोहेन’ और ‘ क्विर्क कैफेटेरिया कल्चर नामक संगठन से भी जुड़े हैं। ( पहला, इसका संस्थापक निर्देशक और दूसरा, इसका प्रचार निर्देशक) , जो ‘ कचरा रहित जलवायु’ के विषय में सजग समुदाय और ‘ प्लास्टिक रहित जीव मंडल’ का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए काम कर रहे युवाओं के नवाचार युक्त तरीके खोजने का कार्य करता है।
इन दोनों ने बताया कि कैफेटेरिया कल्चर के साथ इनका कार्य किस प्रकार का था जिसने ‘ माइक्रो प्लास्टिक मैडनेस ‘ के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। इस पुरस्कृत डॉक्यूमेंट्री में न्यूयॉर्क के ‘ ब्रुकलिन’ में स्थित ‘ पी एस 15’ नामक स्कूल के पांचवीं कक्षा के बच्चों को प्रदर्शित किया गया जो प्लास्टिक प्रदूषण के मूल कारणों की खोज में निकल जाते हैं। वे नागरिक वैज्ञानिकों और समुदाय अधिवक्ता की भूमिका ग्रहण करके वैज्ञानिकों तथा अन्य विशेषज्ञों, सामुदायिक नेताओं से बात करते हैं और अपने स्वयं के स्थानीय आंकड़ों का प्रयोग करके सिटी हाल पर साक्ष्य प्रस्तुत करके तथा रैली करके अपनी नीतियों की जानकारी देते हैं। उसके बाद वे स्कूल लौटते हैं तथा अपने स्वयं के जलपान गृह से’ एकल प्रयोग प्लास्टिक’ के उन्मूलन के लिए कदम उठाते हैं।
कोहेन अपनी फिल्म के परिणाम के विषय में कहते हैं – ‘ इसका प्रभाव न केवल छात्रों पर पड़ा बल्कि हम सभी पर पड़ा। कहानी सुनाने का ‘ बाल संस्करण’ बहुत प्रेरणादायक था और अंत में ‘ पडौस की संस्कृति ‘ से एक बड़ा अंतर उपस्थित हुआ।
क्विर्क साझा करते हैं कि बच्चों को परिवर्तन के प्रति अपने दायित्व को समझने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।बच्चो के पास अपने समाधान स्वयं खोजने के लिए उपयुक्त कौशल होने चाहिए इसलिए यह आवश्यक है कि वे आंकड़े एकत्र करने जैसे कार्यों को करने का तरीका सीखें। वे आगे कहते हैं कि दूसरे विद्यार्थियों और समुदाय पर प्रभाव पड़ने का यह कारण था कि उन्होंने एक रचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया।
वे कहते हैं, ‘ विद्यालय आमतौर पर केवल पढ़ने और लिखने तक सीमित होते हैं परंतु यदि तुम बच्चों के हाथों में कैमरे दे दो तो वे सचमुच अचानक बातें करने लगेंगे। विशेष रूप से वे जो पर्यावरणीय आंदोलन से किसी तरह जुड़े नहीं होते।‘
इस भाव के समर्थन में राबिया तिवारी कहती हैं कि ‘माहिम बीच क्लीन अप टीम’ ने भी भागीदारी बढ़ाने के विषय में इसी के समान रास्ता अपनाया। वे कहती हैं –‘ हमने ‘ओपन डोर फेस्ट’ नामक एक कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय किया और साप्ताहिक स्वच्छता सत्र के बाद बीच पर कलाकारों और संगीतकारों को प्रदर्शन हेतू बुलाया। इसने सभी स्वयं सेवकों के लिए कार्यक्रम को आनंदप्रद बना दिया।‘
12 वर्षीया रिद्धिमा बताती हैं कि लोगों को अपनी बात को गंभीरता से लेने के लिए तैयार करने में उन्हें कितनी कठिनाई हुई। वे साझा करती हैं कि डॉक्यूमेंट्री में दिखाए गए बच्चों से भिन्न उसके साथी वर्तमान विषम जलवायु संकट के प्रति उदासीन हैं। 2017 में भारत सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रति निष्क्रियता के खिलाफ शिकायत पत्र जमा करने के लिए पांडे ने प्रसिद्धि पाई ( और नामित भी हुई) । तब से ऑनलाइन अभियान का शुभारंभ करने से लेकर भारत के प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखने के कार्यों में वे निरंतर रूप से सक्रिय रही।
वे कहती हैं – ‘ मेरे अधिकतर दोस्त और साथी सोचते हैं कि एक कार्यकर्ता होने के कारण सारी विचार प्रक्रिया मुझ पर छोड़ दी जाए। उनमें से अधिकतर मेरी बातों में रुचि नहीं लेते।उनमें से कुछ मेरे पास समाधान पूछने के लिए आते हैं परंतु जब मैं उन्हें कार तथा ए. सी. का अधिक प्रयोग जैसी आदतें बदलने के लिए कहती हूं तो वे मना कर देते हैं।‘
तिवारी और कोहेन ने अपने लिए उपयोगी इस समाधान पर चर्चा की कि लोगों को कुछ करने का उपदेश देने की अपेक्षा उनसे परेशान करने वाले मुद्दों पर बात की जाए। तिवारी ने एक उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि माहिम बीच पर रहने वाले ‘ कोली मछुआरा समुदाय ‘ने माहिम स्वच्छता अभियान में शामिल होने का निर्णय तब लिया जब उन्होने देखा कि उनके बच्चे बीच से प्लास्टिक कचरा साफ होने के बाद रेत पर कितनी आज़ादी से खेल सकते हैं।
कोहेन अंत में कहते हैं कि कुल मिलाकर पर्यावरण से संबंधित वर्तमान कथनों को बदलना होगा और इन्हें और अधिक मजेदार बनाना होगा। कहानी सुनाना एक तरीका है, फिल्मों से लेकर एनीमेशन तथा कठपुतली शो लोगों को निकट लाने का बढ़िया तरीका है । हम इसे रचनात्मक समर्थन कहते हैं।
एथिको इंडिया ‘ आई के एफ एफ 2020’ में एक साझेदार है। ‘ आई के एफ एफ’ के विषय में और अधिक जानने के लिए तथा फिल्मों की विभिन्न श्रेणियों के बारे में जानने के लिए आज ही ‘क्रेयॉन’ (KRAYON) ऐप डाउनलोड करें।
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हम आज की आसान जीवनशैली को भूल कर पर्यावरण के अनुकूल, नैतिक जीवन जीने का प्रयास कर रहे लोगों की टीम हैं, और इस प्रक्रिया में जो कुछ हम सीख रहे हैं वह हम अपने पाठकों से साथ बाँट रहे हैं।