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धीमी गति से चलना सस्टेनबल है

धीमी गति से चलना सस्टेनबल है

Cyril Sebastian
  • जलवायु संकट एक अपूर्व तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है। स्वयं को थोड़ा धीमा करना ही हमारी एकमात्र आशा है।

यदि आप मुझ जैसे या अन्य कई लोगों की तरह हैं तो सम्भवतः आपके पास इस समय आपके ब्राउज़र पर ज़रूरत से ज़्यादा खुले हुए टैब्स होंगे। लोडिंग और रिफ्रेशिंग के अनेक स्तरों पर खुले ये असीमित टैब आपके ब्राउज़र के दाएं कोने में विस्मृति में पड़े धुंधला रहे होंगे।

साथ ही यदि आप मुझ जैसे या अन्य कइयों के जैसे हैं, तो सम्भवतः आपके पास ब्राउज़र, फ़ाइल एक्सप्लोरर, मेल एप्लिकेशन, भरे जाने, लिखे जाने, कमेंट और संपादित लिए जाने के विभिन्न स्तरों पर डॉक्युमेंट्स की विभिन्न विंडोज़ खुली होंगी और आप उन्हें बार बार अंतरित करते हुए (ऑल्ट टैबिंग) बुरी तरह थक रहे होंगे।

मैंने अभी तक उन 3-4 अनुप्रयोग (एप्लिकेशन्स) का नाम नहीं लिया है जिन्हें आप अब तक पढ़ते हुए बीच बीच में अपने फ़ोन पर खोल कर बार-बार चैक करते रहे होंगे।

ऐसा हम प्रतिदिन उठते ही करते हैं और अचानक एक निर्धारित समय के लिए निर्णय लेते हैं कि यह समय विश्राम करने, ध्यान लगाने और एक पूर्वनिर्धारित समय के लिए सतर्क हो जाने का है और जिस क्षण वह पूर्वनिर्धारित समय अवधि समाप्त हो जाती है, हम निश्चित रूप से पुनः उसी दिनचर्या में लौट जाते हैं, जिसे मेरे हिसाब से कॉरपोरेट भाषा में बहुकार्यण (मल्टी टास्किंग) कहा जाता है।

वर्ष 1951 के 'द रेबेल' में अल्बर्ट कैमस ने लिखा था-- "केवल मानव ही एक ऐसा जीव है जो अपने जैसा बनने से इंकार करता है।" हमें यह विचार आज इस ग्रह पर निवास करने वाले सभी अनिर्धारित और निर्धारित लिंग वाले मनुष्यों तक पहुंचानी चाहिए। आज हमें कैमस के इस विचार पर अस्तित्ववादी, नाइलीस्ट एवं अर्थहीनतावादी दृष्टियों से समझने का प्रयास करना चाहिए कि उन्होंने यह निबंध लिखते समय क्या सोचा था। हम आज इसे एक स्थैतिक रूप में भी पढ़ सकते हैं क्योंकि मानव आज तीन प्रकार के खतरों की चपेट में है-- महामारी की चिंता, सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा और सम्भवतः सब से ऊपर-- पर्यावरणीय असुरक्षा।

Keep off the beaten track and allow yourself more time for the things that matter the most to you. Image Source: Pexels

हम में से अधिकाधिक लोगों ने अपने सामाजिक आर्थिक संदर्भ के बीच एक अपूर्व तरीके से वस्तुओं तक पहुंच बना रखी है जैसे सूचना, संचार, अपने विचारों को बेतार रूप में पहुंचाने के मंच तथा अपनी राय और अपने सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यक्तिगत दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाली बातों को साझा करना।

मानव को अपनी वर्तमान विकास यात्रा को पूरा करने में सदियां लगी हैं। और यह भी तब, जब समय के साथ अनेकानेक चीजें हमारे जीवित रहने के अनुकूल थीं। तथापि, दुर्भाग्य से हमारी मानव जाति एक लंबे समय तक यही सोचती रही कि इस अनुकूल पर्यावरण का अर्थ यही है कि इस ग्रह का अस्तित्व केवल हमारे लिए है।

बाज़ार अर्थव्यवस्था के स्वामित्व वाले इस विश्व में हम समय सीमा, प्रक्षेपण, अवकाश के दिनों, आत्मछवि, तथा अनेक ऐसी वस्तुओं के द्वारा बाधित हैं जो प्रचलित युगचेतना द्वारा निर्धारित की जाती हैं। हम सब आज त्वरित सन्देश (व्हाट्सएप), त्वरित संतुष्टि(तुरंत वितरण) और त्वरित टिप्पणी करने तक सीमित हो गए हैं। दूसरे शब्दों में, हम में और दूसरे उत्पादों के अधिक अंतर नहीं रह गया है और हमारी कीमत भी इसी बात से निर्धारित होती है कि हमें कितनी कृपापूर्वक देखा गया है, और उस की कीमत से कितने लोग प्रभावित अथवा सहमत हुए हैं।

मानसिक चिंता का प्रत्येक सलाहकार, योगा और माइंडफ़ुलनेस के अध्यापक हमेशा कहते हैं -- "गहरी सांस लो, दस तक गिनो।"

मुक्त होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को एक व्यक्ति जीवन यात्रा की योजना बनानी चाहिए। और प्रायः यह होगा कि इसका टकराव नीतीमूल्यों, अनुकूलन और बड़ी मात्रा में सस्टेनेबिलिटी के साथ होगा। जब मैं यह जानता हूं कि मुझे महंगी पोशाकों, ऊंची कीमतों वाले ऑर्गेनिक अनाज और सब्जियों और एक अनसस्टेनेबल शहर में रहने के लिए ऊंचा किराया चुकाना है तो क्या मैं मुक्त हो सकता हूं? विश्वास कीजिए, मेरी बात का यह अर्थ नहीं है कि मैं पहाड़ों की ओर प्रस्थान करने अथवा समुद्र तट पर रहने की वकालत कर रहा हूं। इसका मंतव्य यह है कि हम एक ऐसे स्थान की तलाश में हैं जहां हम आराम महसूस कर सकें।

अपेक्षाकृत रूप में, मैं यह प्रस्तावित करता हूं-- धीरे खाइए (जो हर मां का कहना है), अतिरेक और उदासीनता मत अपनाइए (जैसे प्रत्येक नेटफ़्लिक्स शो आपको प्रेरित करता है), वर्तमान क्षण में रहिए (जैसे कोई चिकित्सक आपको कहता है) तथा स्वयं को धीरे धीरे और निरन्तर रूप से सुधारने के लिए प्रयासरत रहीए (जैसे प्रत्येक काइज़ेन और इकिगाई अभ्यासकर्ता आपको बताता है।)

Let’s reconsider the choices we make, reject convenience, and start living slowly so the planet can begin healing itself. Image Source: Pexels

प्रकृति धीमी गति से गतिशील रहती है (काश ‘हिमनदी गति’ शब्द का मतलब आज भी वही होता जो पहले था, विशेष रूप से 'हिमनद' के लिए) और यह परिवर्तित होने में एक लंबा समय लेती है। धनिए का बीज अंकुरित होने के लिए औसतन 14 दिनों का समय लेता है और उसके बाद भी यह सुनिश्चित नहीं है कि उसमें से धनिए की पर्याप्त पत्तियां निकलेंगी। आम के पौधे पर औसतन चार वर्ष में फल पैदा होता है। मानव की अनेक प्रवृत्तियां (जिन्हें हम जानते हैं) बदलने में कम से कम 21 दिन लगते हैं। एक वृद्ध दृष्टि से देखें तो औद्योगिक क्रांति का आलोड़न और हम पर उसके दूरगामी प्रभावों को पहचानने में हमें 260 वर्ष लग गए कि एक जाति के रूप में हम विद्युत, बहुल उत्पादित वस्तुएं, परिवहन, इंटरनेट को देख कर आती शीघ्र उत्तेजित हो उठे और अंत में समझ आया कि इन सबका हमारे ग्रह पर क्या प्रभाव पड़ता है और तब हमने जलवायु परिवर्तन की जांच परख प्रारम्भ की।

एक जाति के रूप में अपनी क्षमता के अनुसार इस क्षति की पूर्ति करने में हमें सम्भवतः 260 वर्ष लगेंगे परन्तु हम में से प्रत्येक को इसे शुरू करने का चुनाव, सुविधाजनक वस्तुओं का नकार तथा आमूलन परिवर्तनवादी विकल्पों को स्वीकार करना पड़ेगा ताकि हम और यह ग्रह स्वयं का उपचार प्रारम्भ कर सकें।

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