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क्या आप प्लास्टिक फ्री जुलाई मुहिम का हिस्सा बनेंगे?

क्या आप प्लास्टिक फ्री जुलाई मुहिम का हिस्सा बनेंगे?

Shraddha Uchil
  • अगर अब तक आपने सस्टेनेबल जीवन का सफ़र शुरू नहीं किया तो प्रेरणा के लिए आप इसे पढ़ें। ताकि आप अपना सफ़र शुरू कर सकें और प्लास्टिक फ्री चैलेंज अपना सकें।

एक ऐसी पहल जो २०११ में ऑस्ट्रेलिया की प्लास्टिक फ्री फाउंडेशन ने छोटे पैमाने पर शुरू की थी, आज एक पर्यावरण से जुड़ी वैश्विक और प्रभावशाली मुहिम बन चुकी है। एक दशक से भी कम समय में, पूरी दुनिया से लाखों लोग प्लास्टिक मुक्त जुलाई में हर साल हिस्सा लेते हैं, कई लोग जुलाई के बाद भी प्लास्टिक के प्रयोग को कम करने के इस प्रण पर कायम रहते हैं।

अगर आप प्लास्टिक मुक्त जीवन अपनाना चाहते हैं पर आपको पता नहीं यह कैसे शुरू किया जाए, तो इस सफ़र की शुरुआत करने के लिए यह एक शानदार महीना है! आपकी मदद के लिए हमने ६ ऐसे लोगों से बात की जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के अलग-अलग पहलू में प्लास्टिक कचरे कि संख्या कम की है। आशा करते हैं कि आप भी इसे छोटे पैमाने पर शुरू करने ले लिए प्रेरित हों या फिर इसे एक बड़ी चुनौती की तरह स्वीकार करें।

"मैंने संस्थाओं के पर्यावरण हितैषी तौर तरीकों पर ध्यान देना शुरू किया।"

२०१९ में मुम्बई में रहने वाली जोऐना लोबो ने प्लास्टिक प्रयोग को कम करने के सफ़र की शुरुआत की। वह ऐसे फ़ेसबुक समुदायों से जुड़ी जो ज़ीरो-वेस्ट जीवनचर्या को हासिल करने में निरंतर समर्पित हैं। फिर उन्होंने इस जीवनचर्या से जुड़े ब्लॉगर्स और इंफ्लुएंसर्स को फॉलो करना शुरू किया। उन्होंने इसकी शुरुआत छोटे पैमाने पर की, वह बताती हैं कि पहले उन्होंने अपने प्लास्टिक टूथब्रश को बाँस के टूथब्रश से बदला और फिर आस-पास के रेस्टॉरेंट्स में वह खाना लेने अपना टिफ़िन लेकर जाती थीं। बाँस के टूथब्रश से बदला और फिर आस-पास के रेस्टॉरेंट्स में वह खाना लेने अपना टिफ़िन लेकर जाती थीं।

मुम्बई निवासी पत्रकार जोऐना लोबो

पर एक ऐसा पहलू था जिसमें वह बदलाव तो लाना चाहती थीं पर यह करना कठिन साबित हो रहा था। वह बताती हैंकि, "एक ऐसी पत्रकार होने की वजह से जो खाने पर लिखती है और जिसे कई कार्यक्रमों और रेस्टॉरेंट्स में बुलाया जाता है, खाने से जुड़े कहीं तोहफ़े स्वाद और चखने के लिए मेरे घर भेजे जाते हैं। मैंने इन संस्थाओं के पर्यावरण हितैषी तौर तरीकों पर ध्यान देना शुरू किया और मैंने उन्हें यह निश्चित करने के लिए कहा कि मेरे तोहफ़े की पैकेजिंग में प्लास्टिक ना हो।" अगर उन्हें कोई ऐसा तोहफ़ा मिलता था जिसमें प्लास्टिक हो तो उसे वह नम्रतापूर्वक ठुकरा देती थीं। धीरे-धीरे संस्थाओं ने इस बात पर ग़ौर किया, "अधिकतम संस्थाओं ने तोहफ़ों को कपड़े, बाँस की टोकरी या काँच की बोतलों में पैक करना शुरू कर दिया। इनका इस्तेमाल मैं अलग-अलग तरीकों से दोबारा कर सकती थी।"
इन दिनों कोरोना वायरस की इस महामारी ने उनके घर में हो रहे प्लास्टिक प्रयोग को बढ़ा दिया है। फिर भी वह यह निश्चित करने की कोशिश करती हैं कि खरीदारी करते वक़्त वह पर्यावरण की ओर सचेत रहें और ऐसी संस्थाओं को बढ़ावा देती हैं जो पर्यावरण हितैषी रहने के लिए अधिक प्रयास करते हैं।

"मैं एक सचेत ढंग से अपनी बिल्ली को पालती हूँ।”

सरिता सुधाकरण एक अर्बन डिज़ाइनर हैं यानी वह शहरों और नगरों को स्थापित करने के लिए योजनाएँ बनाने का काम करती हैं। वह वेस्ट लेस प्रॉजेक्टकी प्रतिष्ठापक भी है। वह एक पाँच साल की बिल्ली को भी पालती हैं जिसे कुछ साल पहले उन्होंने और उनके पति ने अनजाने में ही पाल लिया। सरिता बताती हैं, "वह बाहर रहने वाली बिल्ली थी, पर वह हमारे घर खिड़की के ज़रिये आती रहती थी। इसलिए हमने उसे खाना खिलाना शुरू कर दिया। फिर एक साल बाद जब हमने घर बदलने का निर्णय लिया तब तक वह हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुकी थी, इसलिए हम उसे अपने साथ ले आए। अब वह केवल घर के अंदर रहती है।”

Saritha Sudhakaran’s cat Mimosa enjoys eating dried prawns

वह बताती हैं कि खाना और लिटर, यानी बिल्ली के शौच क्षेत्र में इसतेमाल किए जाने वाला बालू, दो ऐसे पहलू हैं जहाँ प्लास्टिक का कचरा सबसे बड़ी समस्या है। कई लोग अपनी पालतू बिल्लियों को पहले से ही तैयार हो रखे खाद्य पदार्थ परोसते हैं, जो ज़्यादातर प्लास्टिक में पैक किए जाते हैं। सरिता कहती हैं, "अगर हो सके तो आप अपनी बिल्ली को ताज़ा मांस या पकी हुई मछली दें। मैं अपनी बिल्ली को सूखे हुए झींगें भी देती हूँ। अगर ताज़ा खाना पकाना कठिन है तो प्लास्टिक में पैक हुए खाद्य पदार्थों की जगह धातु के कैन्स में पैक हुए खाद्य पदार्थ खरीदें। यह धातु रीसाईकल किया जा सकता है।" अगर आप यह बदलाव करने पर विचार कर रहें हैं तो इसे धीरे-धीरे अपनाए क्योंकि बिल्लियों को एकाएक बदलाव पसंद नहीं।
लिटर की समस्या से निपटना थोड़ा ज़्यादा कठिन हैं। "हमने बायोडिग्रेडेबल लिटर का इस्तेमाल किया पर यह ज़्यादा महँगा विकल्प निकला और यह पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल भी नहीं था। मैंने अखबार से बने छर्रों का भी इस्तेमाल किया पर वह भी अच्छा विकल्प नहीं निकला। अब मैं लकड़ी के बुरादे का इस्तेमाल करती हूँ जो मैं अपने घर के पास के एक कारपेंटर की दुकान से लेती हूँ। इसमें लकड़ी के बड़े या नोकीले टुकड़े न रह जाए, इसलिए मैं इस बुरादे को अच्छी तरह छान कर ही लिटर बॉक्स में डालती हूँ।" यह आम लिटर की तरह गुच्छा नहीं बनता पर अगर आप रोज़ लिटर बॉक्स साफ़ करें तो कोई दिक्कत नहीं आएगी।

"मैं जहाँ भी जाता हूँ काँच की बोतल साथ लेकर चलता हूँ।"

२ साल पहले, सनी अम्लानी ने अपने रोज़मर्रा के प्लास्टिक प्रयोग की मात्रा पर ध्यान देने का निर्णय लिया। वह हमें बताते है कि, "मैंने शुरुआत प्लास्टिक के स्ट्रॉस की जगह स्टील के स्ट्रॉस अपना कर की। फिर मैंने बाँस के टूथब्रश का इस्तेमाल करना शुरू किया। अपने जीवन में मैं और कहाँ बदलाव ला सकता हूँ, अब मैं इसपर विचार कर रहा हूँ। मैं एक डिजिटल मार्केटिंग कंसलटेंट और टुअर गाइड हूँ, काम की वजह से अधिकतम समय मुझे बाहर रहना पड़ता है, कभी किसी मीटिंग लिए और कई जगह मैं पैदल ही जाता हूँ। यहाँ बदलाव का एक उचित अवसर था। मैंने प्लास्टिक बोतलों में बिकने वाला पानी खरीदना बंद किया, इसके बाद जहाँ भी मैं जाता था अपने साथ पानी से भरी एक काँच की बोतल लेकर ज़रूर जाता था।"

डिजिटल मार्केटिंग कंसलटेंट और टुअर गाइड सनी अम्लानी

सनी हमे बताते हैं कि टुअर गाईड का काम करते वक़्त भी वह टुअर पर आए लोगों को अपनी बोतल लेकर चलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, अगर उनके लिए यह मुमकिन हो। यह हमेशा काम नहीं करता पर कुछ और है जो ज़रूर काम करता है। वह बताते हैं, "अगर आप एक आकर्षक काँच की बोतल अपने साथ रखते हैं, तो यह लोगों का ध्यान आकर्षित करती है। वे इसके बारे में पूछते हैं और फिर आप उन्हें बता सकते हैं कि आपने प्लास्टिक की जगह यह क्यों चुना। ऐसे मैं पर्यावरण को लेकर सचेत रहने के अभ्यास के ऊपर चर्चा शुरू करता हूँ।"
सनी के मुताबिक, हर कोई जानता है कि प्लास्टिक एक समस्या है, दूसरी समस्या यह भी है कि लोग इस बात पर ध्यान नहीं देते की यह उन्हें कैसे प्रभावित करता है। "यह केवल एक सामाजिक मुद्दा बनकर रह जाता है। इसलिए हमें सस्टेनेबिलिटी को अपने रोज़मर्रा की बातचीत का हिस्सा बनाना है और यह भी ध्यान रखना है कि ऐसा ना लगे की हम ज्ञान बाँट रहे हैं।"

"अपने शिशु के लिए मैंने डिस्पोज़ेबल डाइपर्ज़ का पूरी तरह बहिष्कार किया।"

गोवा में रहने वाली फ़ैशन डिज़ाइनर, फ़ैलन डी-क्रूज़ हमे बताती है कि, "मुझे कपड़े से बने डाइपर्ज़ के उपयोग के प्रचलन के बारे में तब पता चला जब मैं गर्भवती थी। जब मैं अपनी दोस्त के घर गई, मैंने उसे अपने शिशु के लिए कपड़े के डाइपर्ज़ इस्तेमाल करते देखा। दूसरों से सुनी हुई बातों पर विश्वास कर मैंने यह मान लिया था कि कपड़े के डाइपर्ज़ इस्तेमाल करना बहुत कठिन काम है। पर अपनी दोस्त को इतनी सरलता और नम्रता से सब संभालते देख मैं प्रेरित हुई।"
फ़ैलन की बेटी ज़ोई अब ९ महीने की है और ६ महीने से वह केवल कपड़े के डाइपर्ज़ का ही इस्तेमाल कर रही है। पर्यावरण को लेकर सचेत होने के अलावा एक और कारण है जिस वजह से उन्होंने प्लास्टिक डाइपर्ज़ की जगह कपड़े के डाइपर्ज़ को चुना। "प्लास्टिक सैनिटरी नैपकिन्स के कारण कई औरतों को खाज और लाल चकत्तों की समस्या से जूझना पड़ता है, ऐसा शिशुओं के साथ भी तो हो सकता है? मुझे अपने शिशु की त्वचा के लिए एक बेहतर विकल्प चाहिए था।"

Falon D’Cruz’s 9-month-old baby Zoe wears Superbottoms cloth diapers

फ़ैलन ने शुरुआत में आई दिक्कतों का भी ज़िक्र किया, जैसे की शिशु के लिए डाइपर का सही नाप और फिर उसे धोया कैसे जाए इसका भी सही तरीका ढूंढना। पर जब फ़ैलन ने इन सब समस्याओं का हल ढूंढ निकाला तब यह आसान बन गया और रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा भी।
वह कहती हैं, " मैं जानती हूँ कि अपने प्लास्टिक प्रयोग के लिए ज़िम्मेदार बन एक बड़ा बदलाव लाना एक बहुत ही कठिन काम है। ऐसी कई चीज़ें जो हम खरीदते हैं पहले से ही प्लास्टिक में पैक होती हैं, ऐसी चीजों के ऊपर हमारा कम नियंत्रण होता। इसलिए प्लास्टिक डाइपर्ज़ का बहिष्कार करना एक ऐसा निर्णय है जिसपर मेरा पूरी तरह नियंत्रण है। मैं इस बदलाव को अपना कर बहुत खुश हूँ।"

"मैं पिछले ६ सालों से मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल कर रही हूँ।"

फ़ोटोग्राफ़र और फ़िल्म-मेकर टीना नंदी हमें बताती हैं, "हाल ही के समय को छोड़, पहले लोग मेंस्ट्रुअल कप्स को लेकर कम जागरूक थे।भारत में लंबे समय तक केवल २ विकल्प मौजूद थे पैड्स और टैम्पॉनस, पर मेरी एक दोस्त जो ऑस्ट्रेलिया से भारत आई थी उसने मुझे मेंस्ट्रुअल कप्स के बारे में बताया। फिर जब मैं पहली बार अमेरिका गई तब मैने एक मेंस्ट्रुअल कप अपने लिए खरीदा।" यह लगभग ६ साल पहले की बात है। आज वह कपड़े के पैड्स और अपने विश्वसनीय कप का इस्तेमाल करती हैं।

फ़ोटोग्राफ़र और फ़िल्म-मेकर टीना नंदी

पर इसका भी ज़रूर ज़िक्र करती हैं कि वह मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करना ज़्यादा पसंद करती हैं क्योंकि इसे इस्तेमाल करना ज़्यादा आसान है। वह यह भी मानती हैं कि मेंस्ट्रुअल कप को कैसे इस्तेमाल करें इसे सीखने में समय लगता है पर जब आप यह सीख जाते हैं फिर आप कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे। आखिरकार इसके कई फायदे हैं- यह आपके गुप्तांग/आपकी योनि में मौजूद ज़रूरी तत्वों को सोख नहीं लेता, इससे टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम नहीं होता, ना ही यह कचरा भराव क्षेत्र में फेंके जाते हैं, लम्बे समय के लिए देखें तो इससे पैसों की बचत होती है और यह कई सालों के लिए इस्तेमाल किए जा सकते है।
टीना कहती हैं, "इसका एक और फ़ायदा है, जो मुझे अब समझ आ रहा है। इस महामारी के समय में जब मूल सुविधाओं को भी हासिल कर पाना इतना कठिन है, मुझे यह अहसास हुआ कि मेंस्ट्रुअल कप के कारण मैं मेस्ट्रुएशन के बारे में ज़्यादा चिंतित नहीं हूँ। मुझे बाहर जाकर टैम्पॉनस लेने की ज़रूरत नहीं है, मुझे कोई असुविधा नहीं है।"

"मैंने अपने काम को प्लास्टिक मुक्त किया।"

कलाकार और डिज़ाइनर निशिता सुरिन प्लास्टिक मुक्त होने के लिए उतने ही प्रेम भावना के साथ प्रयास करती हैं जितना वह अपनी कला बनाने में करती हैं। यही नहीं, उनका काम इन दोनों अभिलाषाओं का एक मिलन है। वह कहती हैं, "मुझे ऐसी कला की रचना नहीं करनी जो पर्यावरण को हानि पहुँचाए। उदाहरण के लिए मैंने कुछ बहुत ही ख़ूबसूरत रचनाएँ देखी हैं जो रेज़िन का इस्तेमाल कर बनती हैं पर मैं ऐसी कला की रचना नहीं करूँगी जिसमे इपॉक्सी रेज़िन का उपयोग हो क्योंकि यह एक तरह का प्लास्टिक है।"

Artist and designer Nishita Surin with her son

निशिता इंस्टाग्राम पर अपने ब्रैंड के पेज के द्वारा हस्तनिर्मित डायरियाँ बेचती हैं, उन्होंने अपनी डायरियों की पैकेजिंग का भी एक अनोखा तरीका ढूंढ निकाला है, "डायरी बनाने की प्रक्रिया में बहुत सारा कागज़ बर्बाद होता है। मैं इसी वेस्ट कागज़ को अपनी डायरियों की पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल करती हूँ। वर्षा ऋतु के दौरान भी पैकेजिंग को पानी से बचाने के लिए मैं बटर पेपर का इस्तेमाल करती हूँ, मैं प्लास्टिक का उपयोग नहीं करती हूँ ना ही करूँगी।" वह इस वेस्ट कागज़ से छोटी-छोटी किताबें भी बनाती हैं जिन्हें वह कीचेन्स और पेंडेंट्स की तरह बेचती हैं।

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