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'ऑर्गेनिक' की पहचान फार्मर स्टोर के फ़ाउंडर से जानें

'ऑर्गेनिक' की पहचान फार्मर स्टोर के फ़ाउंडर से जानें

Neha Talwalkar
  • मुंबई के पहले 100% ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स के स्टोर के फ़ाउंडर राहुल पबरेजा इस शब्द का अर्थ समझाते हुए बताते है कि हमें क्यों इसके बारे में जानना चाहिए

"जब भी आप कुछ खाते या पीते हैं, आप या तो बीमारी को बढ़ा रहे हैं या उससे लड़ रहे हैं। " ये कहावत राहुल पबरेजा के ख्यालों को दर्शाती है। राहुल, जो द फार्मर्स स्टोर, मुंबई का फाउंडर है, अपने अनुभव से जानता है कि हम किसी बड़ी बात के होने के बाद ही अपने खाये जाने वाले भोजन के बारे में सोचते हैं - कि वो कैसे उगाया जाता है, कहाँ से आता है, कौन उगाता है वगैरह। "दुर्भाग्यवश अधिकतर लोग अपनी ऑर्गेनिक यात्रा को दो कारणों से शुरु करते हैं - या तो उनके परिवार में किसी को कैंसर हुआ होता है या वे हाल ही में माता-पिता बने होते हैं," सामाजिक व्यवसायी राहुल बताता है। जब उसने अपने एक करीबी को कैंसर के कारण खो दिया, परेशान होकर उसने इसके पीछे के कारणों के बारे में खोज शुरू की जिससे उसे पता चला कि न्युट्रिशन और जिस तरह से हम खाना खाते हैं वो कैंसर का एक बड़ा कारण है।

ऑर्गेनिक क्या है?

ऐसे समय में जब प्राकृतिक, पोषक खाने में और हैल्थी बता कर 'ग्रीन वॉश' करके मार्किट किये जाने वाले खाने में बहुत फर्क है, यह जानना और भी ज़रूरी हो जाता है कि जो हम खा रहे हैं उसका लाइफ़ साइकिल क्या है। जानने के लिए बहुत कुछ है। 'बिना केमिकल का खाना' ऑर्गेनिक सोच का आधार है। इस परिभाषा में बीजों के प्रकार, फसल पर किये गए फ़र्टिलाइज़र का प्रयोग, फसल के प्रकार (यदि वो उस जगह और पर्यावरण के हिसाब से स्थानीय है या नहीं), किसानों के उचित वेतन और ऐसे कार्य आते है जिनमें अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल न हो और किसानों को खराब कृषि फैसले या ऋण न उठाना पड़े।

राहुल का ऑर्गेनिक उपज से परिचय तब हुआ जब वह कविता मुखी के फार्मर्स मार्किट में गया जो हर हफ़्ते बांद्रा के डिमोंटे पार्क में आयोजित किया जाता है। मुखी के बिज़नेस कार्ड पर लिखा है 'ऑर्गेनिक इवैनजलिस्ट'। इंडिया के ऑर्गेनिक फ़ूड मूवमेंट के पहलकर्ताओं में से एक, मुखी एक दूरदर्शी सोच वाली व्यक्ति हैं, जिन्होंने 35 साल पहले पेस्टिसाइड-रहित, नैतिक रूप से उगाये और सोर्स किये जाने वाले खाने की दुनिया की कल्पना की थी। ये राहुल की मेंटर भी हैं। "कविता जी मेरे हिसाब से एक सेलिब्रिटी हैं। लोग अक्सर गर्व से बताते हैं कि वे कब किसी फिल्म स्टार से मिले, लेकिन मुझे गर्व है इस बात का कि मैं इन्हें जानता हूँ। इन्होंने एक ऑर्गेनिक ब्रांड (कॉनशस फ़ूड) तीन दशक पहले शरू किया था जब अधिकतर लोगों को इस बात का मतलब भी नहीं पता था। और फिर, हर हाल में अपने काम में उन्हीं मूल्यों पर डटे रहना - हमेशा गाँव के किसानों से ही उपज लेना (व्यापारियों या बिचौलियों से नहीं)। मुखी के लिए अपने किसानों के नेटवर्क का हित सबसे पहले है। प्रतिस्पर्धा के युग में अच्छे दाम देने के दबाव के कारण किसान अक्सर ऐसी खेती की तकनीकें अपना लेते हैं जो सबसे ज़रूरी चीज़ को ही नुकसान पहुँचाता है - मिट्टी की सेहत। और मिट्टी के कुपोषण के कारण कृषि और सेहत से सम्बंधित परेशानियाँ होती है," राहुल समझाता है।

अपना स्टोर दिखते हुए राहुल ने हमें ओरोविल में बना प्रोबायोटिक सिरेमिक रिंग बॉक्स दिखाया, और उसके बाद राहुल ने अपना पसन्दीददा ऑर्गेनिक अचार और प्रिज़र्व दिखाया जो उत्तराखंड के एक गाँव से बन कर आया है। एक छत के नीचे ऑर्गेनिक, प्राकृतिक प्रॉडक्ट्स को देखने से पता चलता है कि माइंडफुल जीवन जीने के लिए ज़रूरी हर चीज़ का एक सस्टेनेबल विकल्प है। द फार्मर्स स्टोर में ये देख कर अच्छा लगा कि 'ऑर्गेनिक' रूप से प्रमाणित होने वावाली चीज़ों को ही यहाँ जगह मिलती है। राहुल फेयर ट्रेड अभ्यासों को ध्यान में रखते हुए ही फ़्री रेंज और क्रुएल्टी-फ़्री फ़ूड को ही स्टोर में रखता है।

"मेरी ज़्यादा रूचि फार्मर्स मार्किट और पॉप-अप को बढ़ाने में थी लेकिन कविता जी ने सुझाव दिया कि मुझे एक स्टोर खोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे मेरी मदद तब ही करेंगी अगर मैं इस बात पर डटा रहूँ कि मैं सिर्फ गाँवों के किसानों से ही उत्पाद सोर्स करूँगा। इसीलिए, हर चीज़ जो हम स्टॉक करते हैं वो हमारे द्वारा खुद जाँची हुई होती है और सिर्फ गाँवों के पारम्परिक किसानों से, एन.जी.ओ. से या किसान-निर्माता संगठनों से ली हुई होती है। किसान-निर्माता संगठन ऐसे संगठन होते हैं जहाँ से आपकी खरीद का लाभ सीधा किसान को जाता है। हमारी आय का 60% गाँव के किसानों को जाता है, अगर आप किसी व्यावसायिक जगह से खरीदते हैं तो किसान को सिर्फ 20% मिलता है। हमारा तरीका किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए सही है। मैं ऐसे परिवारों से भी उत्पाद सोर्स करता हूँ जो स्टोर तक अपना सामान नहीं पहुँचा सकते हैं। हिमाचल में एक पूरा गाँव पहाड़ी घी बना रहा है। इसका मतलब है कि 6-7 परिवारों या 25 लोगों के पास एक आर्थिक सहारा है। इस काम में लोगों को जीविका का आधार देकर उनके जीवन को बदलने की क्षमता है।"

इस मॉडल की अपनी चुनौतियाँ ज़रूर हैं। कई बार बड़े कॉर्पोरेट प्लयेर किसानों को ज़्यादा अच्छी डील दे कर लुभा लेते हैं। “अगर कोई बड़े और ज़्यादा रेगुलर आर्डर के साथ आता है तो आप पाएँगे कि किसान अक्सर दल बदल लेते हैं। लेकिन आप उनको दोष नहीं दे सकते हैं। सौभाग्य से, मैं सम्पूर्ण नाम के एक बड़े ऑर्गेनिक वेंडेरों के नेटवर्क तक पहुँच पाता हूँ जिसको संजय पंवार लीड करते हैं। श्री पंवार ने 2,000 से ज़्यादा किसानों को ऑर्गेनिक रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया है जिससे देश का सबसे बड़ा ऑर्गेनिक बैंक बना है। मेरी चुनौती है इसके लिए सेल बढ़ाना। परेशानी यह है कि जो लोग सस्टेनेबल स्पेस में हैं, वो ही ऑर्गेनिक की बात कर रहे हैं, दूसरे अभी भी इससे दूर हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि जो भी इसमें रुचि लेने लगता है वो इसके बारे में और रिसर्च करेगा ही ताकि वो वास्तविक रूप से सही बात कह सके,” राहुल ने बताया।

अगर फ़ूड उपभोक्ता उत्पाद उद्योग की तेज़ी से बिकने वाली चीज़ों में गिना जाता है, तो ऑर्गेनिक फ़ूड उसका वो भाग है जो बहुत थोड़े समय में ही नष्ट हो जाता है। राहुल का कहना है कि जहाँ तक सामाजिक व्यवसाय की बात है, स्लो लिविंग एक बहुत ज़रूरी अभ्यास है। "बिना केमिकल और सिंथेटिक प्रेज़रवेटिव के मेरे सारे प्रोडक्ट अपनी प्राकृतिक शेल्फ़-लाइफ़ जीते हैं, जो सिंथेटिक प्रॉडक्ट्स से ज़रूर छोटी होती है। इसके अलावा, मैं खुद जा कर अपने स्टॉक किये हुए सारे ब्रैंड्स की वैद्यता परखता हूँ। फ़ील्ड में जा कर हर बार ये करना मुश्किल है लेकिन इसे करना ज़रूरी है। जिसका यह मतलब है कि अगर मेरे स्टोर में कोल्ड प्रेस्सड कोकोनट ऑइल ख़त्म हो गया, जो हमारे सबसे ज़्यादा बिकने वाले आइटम में से है, तो स्टोर में वो ऑइल तब तक नहीं आएगा जब तक मेरा जांचा हुआ सप्लायर उसे भेजता नहीं है। मैं कभी भी व्यापारी से नहीं खरीदूंगा।"

बातचीत के अंत में राहुल ने हमसे एक सीधी लेकिन सटीक बात कही - "जब आप अपने घर के लिए उत्पाद खरीद रहे हैं या बाहर रेस्टोरेंट में खाना खा रहे हैं तो हमेशा अपने सप्लायर और सोर्स के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करें और यह जानने की कोशिश करें की क्या आपके खाने का सच्चा दाम सिर्फ़ उतना ही है जो आप दे रहे हैं?"

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