फाइनेंस से खेती - क्यों हुआ मैं ऑफ-ग्रिड
- पानी से नष्ट हुए टेन्ट में रहने के कष्ट से लेकर अपनी पहली उपज का सुख देखना, हर्ष वलेचा के लिए फ़ार्म के जीवन का आनंद अनूठा है
Sushmita Murthy is a features writer with a penchant for…
कोलकाता में बड़ा हुआ क्लब क्रिकेट खेलने वाला हर्ष वलेचा अमेरिका में एक कामयाब फ़ाइनैनशियल कंसलटेंट बना जो अपने खाली समय में लोकल क्लबों में डी.जे. का काम करता था। उस समय खेत खलिहानों में रहकर फ़ार्म पर जीवन बिताने की बात हर्ष के लिए मज़ाक होती। एक बार किसी ज्योतिषी ने उसे कहा भी था कि वे कंक्रीट जंगल नहीं खुले मैदानों के लिए बना है। उस समय हर्ष ने उस बात को हंसी में उड़ा दिया। अब ये मज़ाक नहीं है कि हर्ष का अपना एक फ़ार्म है जो वह सस्टेनेबल जीवन के आदर्श के रूप में स्थापित करना चाहता है।
फ़ाइनैंस सेक्टर में कुछ साल काम करने के बाद, हर्ष ओरोविल शिफ्ट हुआ जहां उसने साधना फ़ोरेस्ट के एक रिफ़ोरेस्टेशन के प्रयास में भाग लिया और फ़िर हाइती में भी एक सेंटर बनाने में योगदान दिया। इस अनुभव ने गाइया ग्रिड की स्थापना के बीज बोये। ग्रीक पौराणिक कहानियों के अनुसार गाइया प्रकृति की देवी मानी जाती हैं। हर्ष ने कहा, "जेम्स लवलॉक की एक हाइपोथिसिस का भी नाम गाइया है। ये हाइपोथिसिस आर्गेनिक व इनऑर्गेनिक कृतियों में हारमनी खोजती है। सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। आप ग्रिड से दूर जा सकते हैं, लेकिन गाइया ग्रिड से अलग नहीं हो सकते।" हर्ष ने ये फ़ार्म पहाड़ी इलाके की बंजर धरती के टुकड़े पर 28 रुपए, एक फण्डरेज़र पेज और अजनबियों की अच्छाई में विश्वास के साथ शुरू किया।
हर्ष ने ये फार्म पहाड़ी इलाके के बंजर धरती के टुकड़े पर 28 रुपए, एक फण्डरेज़र पेज और अजनबियों की अच्छाई में विश्वास के साथ शुरू किया।
तीन साल तक फ़ार्म में काम करने के अनुभव से साथ-साथ इस विषय पर रीडिंग और गहरी रिसर्च ने हर्ष का बेस मज़बूत कर दिया था। लेकिन जो चुनौतियाँ आने वाली थीं, उनके लिए तो कोई तैयारी नहीं की जा सकती थी। 32 साल का हर्ष कहता है, "शुरू में फंड अपनेआप में मुश्किल थे, मैं पूरी तरह से फंडरेसर पर निर्भर था। मैं इस ज़मीन पर और कोई बिज़नेस नहीं करना चाहता था और लोकल भाषा भी नहीं जानता था। यहां के लोकल वनस्पति का ज्ञान मुझे नहीं था। मिट्टी अच्छी नहीं थी (यदि मैं अच्छी लैंड पर ही काम शुरू करता तो मेरे काम में अलग क्या होता?) और पानी की कमी भी थी। उसपर से केरल का मानसून! कितना मुश्किल हो सकता है इस बात का मुझे बिलकुल भी अंदाज़ नहीं था लेकिन मुझे पता चला जब मेरा टेंट दो महीनों तक बारिश और तेज़ हवा से पिटता रहा और हर रात मेरी नींद टेंट में पानी भरने से उड़ जाती।" हर्ष अब तमिल, मलयालम तथा इरुला भाषाएं सीख रहा है।
‘कितना मुश्किल हो सकता है इस बात का मुझे बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था लेकिन मुझे पता चला जब मेरा टेंट दो महीनों तक बारिश और तेज़ हवा से पिटता रहा और हर रात मेरी नींद टेंट में पानी भरने से उड़ जाती।’
गाइया ग्रिड में दिन सुबह छः बजे ही शुरू हो जाता है। साढ़े छः बजे तक सभी वालंटियर्स खेतों में प्लांटिंग, हार्वेस्टिंग, डिगिंग वगैरह में लग जाने हैं। नौ बजे वीगन नाश्ता परोसा जाता है जिसके बाद वालंटियर्स के पास पढ़ने, नृत्य, तैरने, ध्यान या बातें करने के लिए खाली समय रहता है। दोपहर एक बजे भोजन लगता है और फिर चार बजे काम शुरू होता है जो साढ़े छः तक चलता है। इसके बाद रात का खाना परोसा जाता है।
हर्ष ने इस जगह को पूरी तरह से अपना लिया है और हर दिन कुछ नया सीखता है। उसका मानना है कि इस जीवनशैली के इनाम इसकी चुनौतियों से कहीं ज़्यादा हैं। हर्ष के अनुसार, "हमारे हाथों से ये लैंडस्केप बदलता है, नए-नए वालंटियर हमसे जुड़ते हैं, हम खुद अपना खाना उगाते हैं, अपने रहने की जगह बनाते हैं, हमें प्रतिष्ठित ग्रांट मिलती हैं, नए दोस्त बनते हैं और बिजली और पानी की सप्लाई मिलती है — ये सभी बहुत रिवॉर्डिंग है।" किसी समय में खराब हुई ज़मीन अब इस फ़ार्म के रूप में ऑर्गेनिक टमाटर, आलू, पपीता, पैशन फ्रूट, बैंगन, तरबूज, खरबूजा, मोरिंगा और मटर उगा रही है और जल्द ही यहां वाइल्ड राइस और रागी उगाने की भी तैयारी है।
‘किसी समय में डीग्रेड हुआ लैंड, अब इस फार्म के रूप में आर्गेनिक टमाटर, आलू, पपीता, पैशन फ्रूट, बैंगन, तरबूज, खरबूजा, मोरिंगा और मटर उगा रहा है और जल्द ही यहां वाइल्ड राइस और रागी उगाने की भी तैयारी है।’
कुछ साल पहले हर्ष के मन में उठी अवेयरनेस की लहर उसे इस रास्ते पर ले कर गयी। अधिकतर युवकों की तरह हर्ष और उसके दोस्त भी देश के इकनोमिक और मोरल फ्यूचर के बारे में बात करते हुए कहते नहीं थकते थे कि, "इंडिया का कुछ नहीं होने वाला है।" इस टॉपिक पर उनके एक मित्र ने कहा कि वे दूसरों की ओर उंगली उठाने से पहले अपना कंसम्पशन देखें। "मेरे मित्र ने मेरे पास के सारे इम्पोर्टेड आइटम की ओर इशारा करते हुए कहाँ ,'अगर तुम्हें सच में परवाह है, तो सही चुनने से शुरू करो।' इस बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मैंने जाना कि मेरा पूरा जीवन ऐसी चीज़ों के इर्द-गिर्द घूमता था जिनके बारे में मुझे कुछ नहीं पता था — वे कहाँ बनती थीं, कौन उन्हें उगाता था या उनको बनाने की क्या प्रक्रिया थी। इसीलिए मैंने फार्मिंग, सेल्फ़-सस्टेनेबिलिटी ,परमाकलचर, ऑफ-ग्रिड लिविंग, प्राकृतिक निर्माण व गिफ़्टिस्म जैसे सभी आयामों को पढ़ना शुरू किया जो मुझे आत्मनिर्भर बना सकते थे।
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‘ मैंने जाना कि मेरा पूरा जीवन ऐसी चीज़ों के इर्द-गिर्द घूमता था जिनके बारे में मुझे कुछ नहीं पता था - वे कहाँ बनती थीं, कौन उन्हें उगाता था या उनको बनाने की क्या प्रक्रिया थी।’
हर्ष ने गाइया को एक मॉडल फार्म के रूप में बनाने की कल्पना की थी। अब नए गोल बनाने का समय आ गया है। "सपनों की कोई सीमा नहीं होती है। मैं और जगहों पर भी गाइया ग्रिड बनाने की सोच रहा हूँ। जो लोग अपने परमाकलचर फ़ार्म बनाना चाहते हैं उनके लिए कंसल्टेंसी भी शुरू करना चाहता हूँ। मैंने कन्ज़र्वेशन के बारे में रूचि रखने वाले लोगों के साथ जुड़ उनकी खाली ज़मीन पर फ़ॉरेस्ट फ़ूड स्पेस बसाने पर कंसल्टेशन भी शुरू कर दिया है। इसके सिवा हमारी नयी कम्युनिटी स्पेस पर वर्कशॉप व क्लॉसेस भी मैं होस्ट करने लगा हूँ और नियमित रूप से अलग-अलग यूनिवर्सिटीज व इवेंट्स में अपनी बात रखता हूँ ताकि युवाओं में नेचर कन्ज़र्वेशन की जीन को उभारा जा सके।
आप अपना फार्म शुरू करना चाहते हैं तो स्वयं से ये पूछें:
- आपका क्या बजट है?
- लैंड खरीदने का आपका क्या उद्देश्य है?
- क्या आपके पास पर्याप्त फंड्स /रिसोर्स हैं?
- क्या मिट्टी उपजाऊ है और वहाँ पानी उपलब्ध है?
- लैंड उत्तर को देखता है या दक्षिण को? दिशा से ये अनुमान लगाया जा सकता है कि वहाँ कितनी हवा, बारिश या धूप आएगी।
- क्या वहाँ के लोकल लैंड नियम आपकी योजनाओं के अनुकूल है?
- वहाँ की रजिस्ट्रेशन पॉलिसी कितनी आसान है? क्या लोकल सरकार लैंड के मामले में मददगार हैं?
- आपके पड़ोसी कौन होंगे और वहाँ का इतिहास कैसा है?
- क्या आपका प्रोजेक्ट समाज के लिए हितकारी होगा?
- क्या ये आपको सही भावना देता है?
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सुष्मिता मूर्ति एक फ़ीचर्स राइटर हैं। सस्टेनबिलिटी से सम्बंधित विषयों में रूचि रखती सुष्मिता एक अनुभवी प्रोक्रस्टिनेटर हैं, जो विडम्बना से अपनी जीविका समयसीमा के पीछे भागते हुए कमाती हैं।