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इस मुंबई दंपत्ति का घर ईको-फ्रैंडली अरबन घर की मिसाल है

इस मुंबई दंपत्ति का घर ईको-फ्रैंडली अरबन घर की मिसाल है

Team Ethico
  • सस्टेनेबल होम की तरफ़ कुछ समझदार तरीके अपनाकर प्रशांत और विभूति अपने घर को शहरी जंगल के बीच एक सुखी जगह बनाने का प्रयास करते रहते हैं

मुंबई दंपत्ति प्रशांत और विभूति बजाड़िया हर दिन ज़ीरो-वेस्ट लाइफ़ के अपने सपने को साकार करने के प्रयास करते रहने के एक मिशन पर हैं। अपने दो मंज़िल के घर को उन्होंने सोलर पॉवर पर पूरे रूप से कन्वर्ट कर दिया है, सोलर वॉटर हीटर लगा दिया है, घर के गीले वेस्ट के लिए होम कम्पोस्टर लगा लिया है, रेन वॉटर हार्वेस्ट को अपना लिया है, रोज़मर्रा के जीवन में प्लास्टिक बैग को काम में लेना बंद कर दिया है और अब लीफ़ कम्पोस्टर लगवाने के तरीके ढूढ़ रहे हैं। प्रशांत तो अपनी पार्किंग में बिजली से चलने वाली कार की कल्पना भी कर चुके हैं। इनके एनवायरनमेंट पर कम-से-कम दबाव के इस विचार के साथ इनके दोनों टीनएज्ड बेटे और इनका प्यारा सा लैब्राडोर पर्ल भी रहते हैं। 

Roof-top solar panels atop the Bajara’s Mumbai home

सोलर पावर

इनके परिवार को लोगों को होस्ट करना बहुत पसंद है और इसीलिए इनके 3,000 स्क्वायर फुट के घर में मेहमानों का आना जाना लगा रहता है। जिसका मतलब यह भी है कि सारे एप्लायंस काम में आते रहते हैं जिससे लम्बा चौड़ा बिजली का बिल आता है। प्रशांत ने बताया कि सोलर पावर को अपनाना इनका कार्बन एमिशन को कम करने का तरीका था। और ये दोनों तरीकों से फायदेमंद रहा क्योंकि ये कॉस्ट भी कम करता है। लेकिन शुरू में नहीं। प्रशांत ने बताया कि पेबैक शुरू होने में 4-5 साल लगते हैं और सोलर पावर चुनना उनके गो-ग्रीन रास्ते का पहला कदम था। "एक बार शुरू की फ़िक्सिंग होने के बाद काम कम ही रहता है," प्रशांत ने बताया। इस पूरे प्रोसेस को उसने बहुत अच्छे से रिसर्च किया था और अधिकार इंडिया में बने हुए पार्ट्स ही इस्तेमाल किये। 

 


सोलर पावर के पैनल कितनी पावर बना सकते हैं? 

  1. रूफ़टॉप सोलर सिस्टम अधिकतर शहरी जगहों पर ऑफ़-ग्रिड काम नहीं कर सकते हैं, उनको लोकल बिजली के उत्पादक के साथ काम करना होगा। सोलर सिस्टम का साइज़ आपके कनेक्टेड लोड के हिसाब से होता है। महाराष्ट्र में आप अपने कनेक्टेड लोड के 80-90% से सोलर सिस्टम लगवा सकते हैं। जैसे, अगर आपका कनेक्टेड लोड 10 किलो वाट है तो आप 9 किलो वाट तक का सिस्टम लगा सकते हैं।
    अगर (बिजली के बिल के हिसाब से) आपका कनेक्टेड लोड 3 किलो वाट है और आप अपने रूफ एरिया के हिसाब से 5 किलो वाट या 10 किलो वाट का सिस्टम लगवाना चाहते हैं, तो आपको अपने बिजली के प्रोवाइडर से संपर्क करके कनेक्ट किया हुआ लोड बढ़वाना पड़ेगा।
  2. 1 किलो वाट सिस्टम तीन सोलर पैनल का बना हुआ होता है और हर पैनल 1 मीटर चौड़ा और 2 मीटर लम्बा होता है। इसीलिए 5 किलो वाट सिस्टम के लिए 15 सोलर पैनल की जगह की ज़रुरत है।
  3. सोलर इंस्टॉलर ये मानते हैं कि आप हर दिन बिजली के हर एक किलो वाट के हिसाब से 5 यूनिट बिजली जेनेरेट करते हैं। यह सिस्टम को कितनी धूप मिलती है उस पर निर्भर करता है और आमतौर पर जेनेरेशन हर किलो वाट पर 4 यूनिट होता है। मानसून के समय और बादलों में कम होता है।

 

इंस्टॉलेशन के पहले क्या बातें ध्यान में रखनी चाहिए?

  1. सप्लायर/इंस्टॉलर से पैनल खरीदने के पहले उस समय चल रही सरकारी सब्सीडी के बारे में जान लें। सब्सिडी केवल भारतीय कंपनियों के बनाये गए पैनल पर मिलती है। इन्वर्टर फॉरेन मेक के हो सकते हैं।
  2. पैनल लगाने वाली कंपनी पहले आपकी प्रॉपर्टी का 'शैडो एनेलिसेस' करेगी ताकि आपको पैनल लगाने की सबसे अच्छी जगह बता पाएँ। पैनल का स्पॉट और एंगल (साउथ फेसिंग) सबसे ज़्यादा सनलाइट का पड़ना निर्धारित करेगा।

 

कोर इंस्टॉलेशन

  1. शहरी घरों के लिए ओन ग्रिड रूफटॉप सिस्टम अच्छा होता है। अगर आप रूफ को नहीं इस्तेमाल करना चाहते तो फ़्लोर-लेवल पर भी पोल बनाकर पैनल लगा सकते हैं (इनको साफ़ करना आसान है पर इनके लिए ख़ास परमिशन लेनी पड़ती है)। अगर छत पर सोलर पैनल लगाने हों तो एक स्ट्रक्चर बना के उस पर इस तरह से सोलर पैनल लगाने होते हैं कि जब सफ़ाई करनी हो, उन तक आसानी से पहुंचा जा सके।
  2. जो कंपनी आपके लिए सिस्टम लगाएगी वही आपके बिजली के प्रोवाइडर से सारी परमिशन ले कर आएगी।
  3. सोलर पैनल इन्वर्टर से कनेक्टेड होते हैं जो डी.सी. (डायरेक्ट करंट) को ए.सी. (ऑलटरनेट करंट) में बदल कर पावर कंपनी के ग्रिड में भेजता है। दिन में जब आपकी बिजली की खपत सबसे ज़्यादा होती है, थोड़ी पावर सोलर सिस्टम से ली जाती है और थोड़ी ग्रिड से। शाम को, सूरज ढलने के बाद, जब सिस्टम आराम कर रहा होता है, तब इन्वर्टर में रखी सरप्लस पावर ग्रिड में वापस जाती है।
  4. इन्वर्टर में ऑटो शट डाउन सिस्टम होना चाहिए। ये एक एहतियाती उपाय है ताकि ज़्यादा बिजली निकलने पर लाइन पर काम करते हुए किसी को भी करंट न लगे।
  5. बिजली की कंपनी दो मीटर लगाएगी — 1 सोलर मीटर और एक नेट मीटर जो बिजली का इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट मॉनिटर करेंगे। आपके सोलर बिल में दो कॉलम होंगे — इम्पोर्ट (इस्तेमाल की गयी बिजली के लिए) और एक्सपोर्ट (उन यूनिट के लिए जो ग्रिड में वापस जा चुकी हैं) और नेट यूनिट — जो दोनों के बीच का फ़र्क होगा।
  6. आपको एक अर्थिंग वायर के लिए 6 फुट का गड्डा खोदना होगा जो बिजली गिरने पर या एकदम से तेज़ बिजली निकलने पर बचाव करेगा।

 

क्या सिस्टम काम में न ली गयी बिजली को बचाता है?

  1. अगर सोलर पैनल ज़्यादा यूनिट जेनेरेट करता है जो काम में नहीं आयीं तो वो वापस ग्रिड में जाएंगी और अगर किसी महीने में बिजली कम इस्तेमाल हुई है तो एक्सेस यूनिट अगले महीने में जुड़ जाएंगी।
  2. बारिश के मौसम में सोलर पावर कम बनती है और इन महीनों में अधिकतर ग्रिड पर ही निर्भर रहना होता है।
  3. दिन में सोलर सिस्टम से बनी बिजली ग्रिड से आ रही बिजली के साथ आपके सारे घर के उपकरणों को चलाने में काम में ली जाती है जिससे आपका बिल कम होता है। जैसे, अगर आपका कंज़म्प्शन 6 किलो वाट है तो 3 किलो वाट रूफ़ टॉप सोलर सिस्टम से आता है और 3 किलो वाट ग्रिड से।
  4. नोट करें कि पैनल वॉटर हीटिंग को कवर नहीं करते हैं। उनके लिए अलग इन्स्टलेशन की ज़रूरत पड़ती है।
  1. रूफ़टॉप सोलर सिस्टम चिड़ियों की बीट और धूल से गंदे हो जाते हैं। आपको इसके पैनल को साफ़ करने के लिए पानी का पाइप, रबर के किनारे वाला ब्रश या माइक्रोफाइबर का कपड़ा चाहिए। सफ़ाई या तो सुबह 8 बजे के पहले या शाम को 6 बजे के बाद करें जब पैनल ज़्यादा गरम न हों।
  2. दोपहर में सोलर पैनल साफ़ न करें। उनके गरम होने के कारण वो पानी से ख़राब हो सकते हैं।
  3. सोलर इंस्टॉलेशन कम्पनी एक ऐप भी उपलब्ध कराती है जहां हर रोज़ बने यूनिट मॉनिटर होते हैं। अगर रोज़ का उत्पाद 25 यूनिट है और कुछ दिन तक वो 22-18 यूनिट दिखाए इसका मतलब उसे साफ़ करने का समय आ गया है।
  4. पैनल के ऊपर चलें नहीं। उन पर चलने से ग्लास में क्रैक आ सकता है और पैनल ठीक से काम करना बंद कर सकता है। हाँ साफ़ करते समय अगर ज़रूरत पड़े तो ऐल्यूमीनियम से बने पैनल के कोने पर चल सकते हैं।

पर्यावरण और आपकी पॉकेट पर क्या असर होगा?

  1. बजाड़िया हाउस में 7.1 किलो वाट का सिस्टम 4,90,000 रुपयों का लगा था 
  2. ये बिजली के बिल को आधा कर देता है
  3. शुरू में लगाने का दाम ज़्यादा है लेकिन 4-6 सालों के बाद उपभोग के हिसाब से पेबैक शुरू हो जाता है।
  4. सोलर पैनल की समयावधि 25 साल होती है और ये कभी-कभी की जाने वाली साफ़ सफ़ाई के अलावा मेंटिनेन्स-फ़्री होते हैं।
  5. औसत देखें तो एक 5 किलो वाट का रेसीडेंशीयल सिस्टम हर साल 15,000 पाउंड कार्बन डायआक्सायड इमिशन बचता है।
  6. एक किलो वाट का दाम क़रीब क़रीब 60,000-65,000 रुपये होता है। जितना ज़्यादा बड़ा सिस्टम होगा उतना कम हर किलो वाट का दाम होगा।

 

The UtsEco Solar Water Heater 250 LPD

सोलर वॉटर हीटर

  1. यू.टी.एस.इ.सी.ओ. इंटरनेशनल के 250 एल.पी.डी. सोलर वॉटर हीटर में पानी के अंदर आकर ग्लास ट्यूब में जाने का इनलेट होता है। ये ट्यूबें पानी गरम कर देती हैं जो थर्मो साइफन सिस्टम से टैंक में स्टोर हो जाता है। आउटलेट से एक स्पेशल पाइप (पी.वी.सी. वाला नहीं) सारे बाथरूम में और किचेन में जाता है जिससे साल के नौ महीनों के लिए पूरे समय तेज़ गरम पानी आता रहता है। 
  2. याद रखें कि गरम पानी का आउटलेट पाइप आपके पहले से लगे वॉटर हीटर के इनलेट में इंस्टाल होना चाहिए ताकि इससे हो कर गरम पानी सारे नलों में जा सके। मानसून के समय आपको सिर्फ़ अपने वॉटर हीटर को स्विच ऑन करना है बिना उसके लिए अलग कनेक्शन बनाये।
  3. ये बारिश के मौसम में नहीं चलता है और उन 3-4 महीनों में आपको वॉटर हीटर से काम लेना होगा। 
  4. सोलर वॉटर हीटर में पानी 24 घंटों तक गरम रहता है।

सोलर वॉटर हीटर ई.टी.सी. ट्यूबों से बनता है जो हीट को बचा के रखती हैं। बाहर से इनपर जमी धूल को साफ़ करना होता है। ये पाइप से पानी चला के और कपड़े की मदद से हो सकता है।


पर्यावरण और आपकी पॉकेट पर क्या असर होगा?सोलर वॉटर हीटर अलग-अलग साइज़ में आता है और आप अपनी ज़रुरत के हिसाब से चुन सकते हैं। एक 100 लीटर का सोलर वॉटर हीटर 10,000 रुपये का आता है। जिसका मतलब है हर 10 लीटर के लिए 100 रुपये। इस तरह से एक 250 एल.पी.डी. का सोलर हीटर 25,000 रुपये का आएगा।

हीटिंग के उपकरण बहुत बिजली खाते हैं। सोलर वॉटर हीटर लगाने से आपके घर के कार्बन डाईऑक्साइड के एमिशन को काफ़ी कम किया जा सकता है।

 

Prashant posing next to the borewell that collects harvested rainwater

रेनवॉटर हार्वेस्टिंग

पानी की कमी और बाढ़ दोनों एक साथ होते हैं — ये बजाड़िया दंपत्ति के लिए जल्दी ही रेनवाटर हार्वेस्टिंग अपनाने का कारण था। "दुःख होता है यह देख कर कि ताज़े बारिश का पानी कैसे सीवेज में जा कर बर्बाद होता है। ये धरती को वापस देने का एक तरीका है। मेरे हिसाब से हर घर और बिल्डिंग में ये होना चाहिए। ये एक आसान तरीका है जिससे आप 80,000 से 1,00,000 लीटर पानी एक मानसून के मौसम में बचा सकते हैं। हमने 40 फ़ीट तक कर लिया है लेकिन काफ़ी जगहों पर 200 या कभी-कभी 400-500 फ़ीट तक पानी जा सकता है," प्रशांत ने बताया। ये आस-पास के इलाके में भी पानी बचाने में मदद करता है। विभूति ने बताया, "पानी अपनेआप ही नीचे की तरफ़ जाता है। एक बार आप उसके लिए रास्ता बना दें, ये अपनेआप ऐसी जगह में जाएगा जहां पानी की कमी हो।" ये सिस्टम पानी को ट्रीट भी करता है ताकि लगाने के 5-6 सालों में ये पीने के लायक हो जाए।

 


कैसे शुरू करें?

  1. रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लगाने के काफ़ी तरीके हैं — बोरवेल को रिचार्ज कर सकते हैं, रिचार्ज पिट खोद सकते हैं, छतों से बह रहे पानी को टंकियों में रख सकते हैं, आदि।
  2. अच्छा रहेगा अगर आप अपनी जगह को किसी एक्सपर्ट कंपनी से स्टडी करवा लें जिससे आपको अपने घर या बिल्डिंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प चुनने में आसानी हो।

अगर आप पहले से बने हुए बोरवेल में पानी भेज रहे हों

1. अगर आप पहले से बने हुए बोरवेल को काम में ले रहे हैं तो एक पाइप पानी को छत से एक सीमेंट की रिंगों से बनी टंकी में ले जायेगा। इस टंकी में फ़िल्टर लगा होगा जिसमें रेत, कंकड़ वगैरह लगे होंगे जो बोरवेल में जाने के पहले पानी को साफ़ कर देंगे। रिंगें ये निश्चित कर लेंगी कि बोरवेल में सिर्फ साफ़ किया हुआ पानी जाए।

2. ध्यान रखें कि बारिश शुरू होने के पहले आप छत साफ़ कर लें या पहली दो-तीन बार की बारिश को अपनेआप गन्दगी साफ़ करने दें और फिर पानी को बोरवेल में आने दें। आप पानी को कंट्रोल करने के लिए एक वाल्व भी लगा सकते हैं।

फ़िल्टर को साल में दो बार अच्छे से साफ़ करवाना होगा — एक बार बारिश के पहले और एक बार बारिश के बाद। हर बार का दाम करीब-करीब 2,000 रुपये होता है।


पर्यावरण और आपकी पॉकेट पर क्या असर होगा?

  1. यहां पर इंस्टालेशन के लिए 65,000 खर्च हुए थे
  2. एक मानसून में (3-4 महीनों में) 80,000 से 1,00,000 लीटर टैंक/बोरवेल में जाता है
  3. छतों और बोरवेल से हार्वेस्ट किया हुआ पानी फ्लश के पानी की तरह काम में लिया जा सकता है। इसमें हर रोज़ एक जने के लिए ही करीब 35 लीटर लगता है!  
  4. हर साल पानी साफ़ होता जाता है और आस-पास के इलाके का वॉटर-टेबल भी बढ़ाता है।
  5. 4-5 साल बाद पानी पीने के लायक हो जाता है, लेकिन एक बार उसकी क्वालिटी चेक करवा लेनी चाहिए।
Vibhuti displaying her home composting bins

कम्पोस्टिंग

कम्पोस्टिंग गीले वेस्ट से ऑर्गेनिक खाद बनाने का तरीका है। विभूति होम कम्पोस्टर के काम से इतनी खुश है कि उसने अपने दो मित्रों को भी ये गिफ़्ट किया है और दो और रख रखे हैं उनको देने के लिए जो इसमें दिलचस्पी दिखाएं। "कई बार हम करना तो चाहते हैं लेकिन समय की कमी या आलस के कारण नहीं कर पाते हैं। इसीलिए मैं अपने मित्रों की इस प्रोसेस को शुरू करने में मदद करने के लिए तैयार रहती हूँ ताकि कोई बहाना ना रहे।" विभूति के अपने गार्डन में ही ये कम्पोस्ट काफ़ी काम आता है क्योंकि वहाँ पपीता, बैंगन और हर्ब्स के साथ-साथ और चीज़ें भी उगती हैं - मुंबई में ये बहुत कम ही देखने को मिलता है। लेकिन जिनके पास ऐसी जगह नहीं है उनके लिए भी विभूति के हिसाब से ये अच्छा आइडिया है। "हर जगह कंक्रीट होने के कारण हमारे पेड़ों को ज़मीन से कोई पोषण नहीं मिलता है ? क्या यह अच्छा नहीं होगा कि हम पेड़ों को अपनी बनायी हुयी खाद दें?" आगे वो बताती है, "मुझे समझ में नहीं आता कि हम वेस्ट डिस्पोज़ल को गंभीरता से क्यों नहीं लेते हैं। ऐसे समय में जहां लैंडफिल भरी हुयी हैं, ये एकलौता विकल्प है।" 

उसका ये सुझाव भी है कि आप अपने वार्ड अफसर से पूछ सकते हैं कि क्या वो आपके एरिया के पेड़ों के लिए आपसे खाद लेंगे।

 


  1. मार्किट में बहुत सारे होम कम्पोस्टर मिलते हैं। आप अपनी जगह के हिसाब से देख सकते हैं कि आपके क्या काम में आएगा। अगर आप फ़्लैट में रहते हैं तो आप छोटे बिन लगा सकते हैं या उनको ग्रिल पर भी लगा सकते हैं। 
  2. बजाड़िया हाउस में लगे वर्मीकम्पोस्ट के लिए आपको पहले कम्पोस्ट बिन लेना होगा। फिर उसके बॉटम में कोकोनट हस्क, गोबर और कोको पीट (ये प्रोसेस को जल्दी करने का एक ऑर्गेनिक तरीका है और हर नर्सरी में मिलता है) लगाने होंगे। इसमें सप्लायर या नर्सरी से खरीदे फ्रेंडली वर्म या माइक्रोब जोड़ दीजिये। बी.एम.सी. या किसी भी लोकल म्युनिसिपल बॉडी से भी आप मदद ले सकते हैं क्योंकि इन्हें क्लीनर लिविंग के कामों में मदद देनी होती है। 
  3. इसके बाद अपना वेट वेस्ट डाल कर समय-समय पर हिलाते रहे।
  1. बिन के आस-पास अच्छी सफाई रखनी होती है और उसके अंदर के सामान को समय-समय पर हिलाना होता है। 
  2. ध्यान रहे कि बिन अच्छी तरह से वातित हो।

पर्यावरण और आपकी पॉकेट पर क्या असर होगा?

  1. एक रेगुलर कम्पोस्ट बिन (जैसा कि पिक्चर में दिख रहा है) करीब 3,000 रुपये का पड़ता है
  2. दूसरे इंग्रेडिएंट की कुल कीमत 200 रुपये से ज़्यादा नहीं होगी
  3. इससे गीला वेस्ट डिस्पोज़ल बचता है जो आपके गार्डन और आस-पास के पेड़ों के लिए खरा सोना साबित होता है
  4. शहरी पेड़ पोषण रहित होते हैं और आपकी बनायी गई खाद उन्हें सेहतमंद बनाने में बहुत मदद कर सकती है
  5. लैंडफिल पर पहले से हुआ बोझ कम करते हैं जिससे बदबू और पर्यावरण से जुड़े खतरे कम होते हैं

बजाड़िया हाउस के ईको पॉइंट यहां ख़त्म नहीं होते। घर के चारों तरफ़ चिड़ियों के दाने से भरे बर्डफ़ीड लगे हुए हैं। दोनों बताते हैं, "आप मानेंगे नहीं कि सुबह-सुबह हमारे घर के आस-पास कितनी हलचल रहती है। चिड़ियों की आवाज़ से घर गूंजता ही रहता है!" 

क्या आप अपने घर के लिए ग्रीन सोल्यूशन ढूढ़ रहे हैं? बजाड़िया दंपत्ति के ये सुझाव देखिये:

1. सोलर पावर इंस्टालेशन – ऊरजन क्लीनटैक

https://www.oorjan.com/home

2. सोलर पैनल – विक्रम सोलर

https://www.vikramsolar.com

3. रेनवॉटर हार्वेस्टिंग – ओसमोसिस 

http://osmosisindia.com

4. कम्पोस्ट बिन - सिंटेक्स

https://www.sintexplastics.com

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