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आओ, सब टाइगर ऐक्स्प्रैस पर सवार हो जाओ

आओ, सब टाइगर ऐक्स्प्रैस पर सवार हो जाओ

Shraddha Uchil
  • एथिको, 'अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस' पर गोवर्धन मीना का सम्मान पूर्वक अभिवादन करती है, जिन्होंने एक सुसज्जित मिनी बस के द्वारा हज़ारों बच्चों को ना केवल 'राजसी बाघों' से, परिचित कराया, बल्कि उन्हें उनके निकट बसे जंगल के साथ भी जोड़ा।

रणथंभोर नेशनल पार्क के निवासी बाघों के विषय में बताते हुए गोवर्धन मीना कहते हैं --- "मुझे उनमें से कई बहुत पसंद हैं --- कृष्णा, सुल्तान, माला --- लेकिन मछली मुझे सबसे अधिक प्रिय थी। वह नितांत दिव्य थी। २०१६ में उसकी मृत्यु हो गई। उसका स्थान कोई नहीं ले सकता।" ये वही बाघ हैं जिनके संरक्षण के लिए वे 'सेंचुरी नेचर फ़ाउन्डेशन' द्वारा की गई पहल-- "किड्स फ़ॉर टाइगर" (KFT) के अंतर्गत एक स्थानीय समन्वयक की अपनी नौकरी के दौरान अपने जीवन में लंबे समय तक संघर्ष करते रहे।

मीना राजस्थान के इस प्रसिद्ध नेशनल पार्क की सीमा पर बसे, रणवल ग्राम में अपनी मां, पत्नी और दो पुत्रों के साथ रहते हैं। "किड्स फ़ॉर टाइगर" के साथ उनकी यात्रा सन् २००५ में प्रारम्भ हुई, जब वे बहुत छोटी उम्र के थे।

रणथंभोर नेशनल पार्क की निवासी बाघ एरोहेड अपने दो बच्चों के साथ

उसी समय से वे निरंतर अपनी एक मिनी बस, जिसे वे टाइगर ऐक्स्प्रैस के नाम से पुकारते हैं और जिसमें एक प्रोजेक्टर, ध्वनिव्यवस्था, शैक्षिक फ़िल्मों, एक पुस्तकालय जैसी और भी कई सुविधाएं उपलब्ध हैं, पर बैठकर चारों ओर के क्षेत्र में घूमते रहे हैं। वे टाइगर रिज़र्व क्षेत्र के चारों ओर बसे ग्रामों के भीतर जाकर वहां के स्कूली बच्चों को अपने साथ रोमांचक यात्रा पर ले जाते हैं, वहां वे सफ़ारी की वन यात्रा पर बाघों को देखते हैं, वृक्षारोपण तथा सुविधाओं से वंचित गांवों में स्वच्छता कार्य करते हैं, संरक्षण के विषय पर फ़िल्में देखते हैं और गांवों के निवासियों के लिए बाघों से संबंधित नाटक भी प्रस्तुत करते हैं। इन सभी कार्यों में व्यस्थ रहने के बावजूद मीना स्थानीय जंगल विभाग के लिए फ़ंसे जंगली जानवरों का बचाव करने के लिए भी समय निकाल लेते हैं।

मीना पार्क में गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल, रणवल के छात्रों को बाघों के बारे में जानकारी देते हुए

'बाघ संरक्षण' से भी बढ़कर

"किड्स फ़ॉर टाइगर" की स्थापना १९९९ में बाघ के प्राकृतिक निवास के निकट के साथ-साथ देश के शहरी बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में हुई। लेकिन बाघ संपूर्ण प्रकृति का केवल एक प्रतीक है। इस कार्यक्रम का वास्तविक उद्देश्य बच्चों को यह सिखाना है कि बाघ के संरक्षण का तात्पर्य है-- प्रकृति का संरक्षण और प्रकृति के संरक्षण का अर्थ हमारी वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की सलामती को सुनिश्चित करना है।

अतः केवल रणथंभोर ही क्यों या गोवर्धन ही क्यों? रणथंभोर सन् १९७३ में भारत में स्थापित नौ मूल "बाघ संरक्षित क्षेत्रों" में से एक था। यह नेशनल पार्क इस राजसी बिल्ली का निवास होने के साथ-साथ पेड़ पौधों की व्यापक जैव प्रजातियों तथा भारतीय तेंदुआ, नीलगाय, सांभर, मग्गर मगरमच्छ का वास भी है। यद्यपि यह पार्क मानव-बाघ की हुई घातक मुठभेड़ों और शिकार की अवैध घटनाओं के लिए समाचारों की सुर्खियों में रहा है। सन् २००५ में, रणथंभोर में केवल २५ बाघ शेष बचे थे। इनके संरक्षण की दृष्टि से बहुत करने की आवश्यकता थी और इसी कारण "सेंचुरी नेचर फ़ाउन्डेशन"और "किड्स फ़ॉर टाइगर" के संस्थापक 'बिट्टु सहगल' ने बहुत त्वरित प्रतिक्रिया की।

मीना कहते हैं-- "मुझे बखूबी याद है, बिट्टु सर हम में से कुछ को बाघों की खोज के लिए जंगल के भीतरी रास्तों पर लेकर गए थे। मैंने उस दिन बहुत कुछ सीखा और यही वो दिन था जब मैंने जाना कि अपने इस सुंदर राष्ट्रीय पशु की रक्षा के लिए मुझे कुछ करना है। मैंने उनसे सहायता मांगी और इस प्रकार मेरी 'के.एफ़.टी' के स्थानीय समन्वयक के कार्य तक पहुंचने की यात्रा पूरी हुई।"

बीते वर्षों पहले ही इस नौजवान के उद्देश्य सभी लोगों से भिन्न होने के विषय में बात करते हुए सहगल कहते हैं, "गोवर्धन अभ्याकरण्य के जीवन में "किड्स फ़ॉर टाइगर" कार्यक्रम का हिस्सा बन कर आया था जब वह केवल 12 वर्ष का था। पहले ही दिन से स्पष्ट था कि उसमें कुछ अलग है। और यह केवल उसका प्रकृति के प्रति लगाव नहीं था -- यह संवेदनशीलता की भावना थी। जिन पशुओं को वह देखा करता, जिन लोगों से मिला करता था और दूसरों के प्रयासों के प्रति उसकी संवेदनशीलता।"

ब्लू स्टार अकादमी, सवाई माधोपुर के नन्हे छात्रों को गोवर्धन मीना वन्य जीव से परिचित कराते हैं

कुछ वर्षों के बाद, सन् २०११ में, मीणा को 'टाइगर एक्स्प्रैस' दी गई ताकि वे सरलता से एक गांव से दूसरे गांव तक घूम सकें। आज भी आप उन्हें प्रसन्नतापूर्वक अपनी पसंदीदा धुन, राजस्थानी गीत 'मोरिया आचो बोल्यो रे' गुनगुनाते हुए, अपनी मिनी बस में भ्रमण करते हुए पाएंगे। उनका कहना है कि प्रारंभ में गांववासी मेरी बातों को व्यर्थ समझकर मुझे अस्वीकार कर देते थे। उन्हें मेरे काम की गंभीरता को समझाने में मुझे बहुत समय और प्रयास लगाने पड़े। परंतु मैंने हार नहीं मानी। प्रत्येक पशु का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है, हम किसी एक को भी विलुप्त होने नहीं दे सकते। जिस दिन वनों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, हमारा भी अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

वन यात्रा के साथ-साथ, मीना बच्चों को पेड़ पौधे लगाने की भी शिक्षा देते हैं

एक बच्चे से शुरू हुआ

अब तक मीना हज़ारों बच्चों के साथ जुड़ चुके हैं। वे कहते हैं -- "मैंने पार्क की सीमाओं पर लगे ४५ गांवों के ९५ स्कूलों में भ्रमण किया है।" इस प्रकार से उन्होंने अपने किशोर पुत्रों के समक्ष एक महान उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार-- "जहां तक संभव होता है, वो मेरी यात्रा पर मेरे साथ रहते हैं, वे मुझपर गर्व करते हैं-- यह मुझे दिखाई देता है। वे कहते हैं वे बड़े होकर मेरी ही तरह बनना चाहते हैं। मुझे इस बात से बहुत प्रसन्नता होती है।"

अंततः बाघों के क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे हमारे वनों के संरक्षण की लड़ाई में श्रेष्ठतम अंग हैं। वे बड़े होकर टूर गाइड्स, क्षेत्रीय जीव वैज्ञानिक, वन रक्षक एवं पर्यावरणीय विकर्षक भी बनेंगे। यदि उन्हें समुचित संसाधन उपलब्ध कराए जाएं तो 'संरक्षण नेता' बनकर अपनी आवाज़ सुनाने में सक्षम हो सकते हैं।

गोवर्धन मीना अपनी पत्नी निशा और अपने पुत्रों हेमंत और विशाल के साथ

मीना बात करते हुए कहते हैं कि किस प्रकार बड़ों तक इस संदेश को पहुंचाने का सबसे सही मार्ग बच्चों को शिक्षित करना ही है। "अब यदि उनके माता-पिता वन में किसी वृक्ष को काटते हैं या किसी सांप को मारते हैं, तो बच्चे ही उन्हें बताते हैं कि यह उचित कार्य नहीं है। अधिकतर वे बच्चों की बात मानते हैं। यदि नहीं मानते, तो उस समय हमें बुलाया जाता है।

उन्होंने यह भी साझा किया कि किस प्रकार, शुरू में ग्रामवासी उस क्षेत्र की एक शिकारी जन जाति-- मोग्यासका उन बाघों को मारने के लिए, जो अपने निवासीय क्षेत्र से बाहर निकलकर गांवों में पहुंच जाते थे, अवैध आश्रय लेते थे। परंतु अब वही ग्रामवासी किसी शिकारी या जालसाजों को देखकर या किसी जानवर के बचाव की आवश्यकता के अवसर पर हमें ही बुलाते हैं।

एक निरंतर जारी प्रयास

फिर भी मीना के आसपास सभी चीजें सहज और सरल नहीं हैं। यद्यपि अतीत में वे ग्रामवासियों के साथ बातचीत करने में समर्थ रहे, अब वहीं कुछ चिंताएं उभर रही हैं। गांव और नेशनल पार्क में बाघों की जनसंख्या में एक सहज अभिवृद्धि होने से उन्हीं के बीच परस्पर क्षेत्रीय लड़ाइयां होती रहती हैं। और वे पार्क की सीमा से बाहर और गांव के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। परिणामस्वरूप मनुष्य और पशु, दोनों कई ज़िन्दगियां ख़त्म हुई हैं।

ये सब कोरोना के प्रकोप से पूर्व की बातें हैं। जब से यह महामारी शुरू हुई, मीना की अधिकतर गतिविधियों में विराम आ गया। उनके अनुसार -- "हम जो कार्य संचालन करते थे, अब नहीं कर पा रहे हैं। सभी स्कूल बंद हैं और बच्चे घरों के भीतर हैं। अतः अब तो हम केवल कभी कभी जंगल का दौरा ही करते हैं।"

पेड़ पर खेलता हुआ एरोहेड बाघ का एक बच्चा

इस उलझी हुई स्थिति के कारण मीना चिंतित हैं। उनका यह विचार अटल है कि सेंचुरी के आसपास के क्षेत्र के निवासियों को इन बाघों और इनके प्राकृतिक वास के संरक्षण के विषय में निरंतर जागरूक करना होगा ।

तथापि ध्वनि अभियंता और वन्य जीवन संरक्षणवादी हंस दलाल, जिन्होंने मीना के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री -- "वन्यक्रांति",जो आज रिलीज़ हो रही है, पर कार्य किया है, ने कहा कि वे रणथंभोर में कोई समस्या होने के विषय में अधिक चिंतित नहीं हैं क्योंकि मीना ने सारा कार्य पहले से ही किया हुआ है -- "बच्चों को शिक्षित करने के अतिरिक्त उन्होंने और भी कार्य किए हैं, जो अधिक प्रत्यक्ष नहीं हैं। उदाहरणार्थ उन्होंने कई ग्रामों के घरों में आर्थिक सहायता प्राप्त गैस कनैक्शन उपलब्ध कराने में मदद की जिससे ग्रामवासी लकड़ी लेने जंगल में जाने के प्रति हतोत्साहित हों।

इस डॉक्यूमेंट्री में बच्चों तथा व्यस्क लोगों के द्वारा प्रशंसा को दर्शाया गया है। दलाल का कहना है --"यह स्पष्ट है कि ग्रामवासी गोवर्धन के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव रखते हैं। इतने सारे लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है जिसे उन्होंने बहुत शानदार ढंग से किया है।"

वे आगे कहते हैं--"गोवर्धन ने समय के साथ जो भूमिका निभाई, हम उसके आभारी हैं। वह एक ओर वन विभाग और दूसरी ओर ग्रामवासियों के लिए एक अत्यंत विश्वसनीय व्यक्ति बन गए हैं। यदि कोई समस्या है तो उन्हें बुलाया जाता है। वह एक ऐसी कड़ी है जो यह सुनिश्चित करती है कि मनुष्य और पशु दोनों सौहार्द्रपूर्वक सह अस्तित्व बनाए रख सकते हैं।"

सहगल इन्हीं विचारों को प्रतिध्वानित करते हैं। वे बताते हैं कि जिस प्रकार मीना ने लोगों का पार्क के प्रति संबंध को परिवर्तित करने में मदद की है, इस बात से वे बहुत प्रभावित हुए हैं। "जब अंधेरा होने के बाद दिखाई गई फ़िल्मों को देखने के लिए बच्चे बाहर निकल कर आए, उनके अभिभावक भी उनके साथ थे और प्राय: ३०० से अधिक लोगों को जीव जंगल के साथ उनके अति निकट बंधन को याद दिलाने वाले संदेश ने भीतर तक हिला दिया। गोवर्धन एक नायक हैं, मैं चाहता हूँ कि भारत के युवा इनसे प्रेरणा प्राप्त करें।"

Image Credits: Govardhan Meena and Sanctuary Nature Foundation

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