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मेंस्ट्रुएशन सिर्फ एक फिज़ियोलॉजिकल प्रोसेस से कहीं ज़्यादा है। इंडिया में ये सोशल स्टिग्मा के साथ-साथ खराब वेस्ट मैनेजमेंट सोल्यूशन और इललिट्रिसी का भी मारा है जिसके कारण हमारे एनवायरनमेंट को नुक्सान पहुँचता है। अगर आप मेंस्ट्रुएशन के स्टेटिस्टिक्स देखेंगे तो पाएंगे कि 18-58 प्रतिशत इंडियन वीमेन डिस्पोज़ेबल सैनेटरी नैपकिन (डी.एस.एन.) यूज़ करती हैं। हर साल इंडिया हज़ारों टन सैनेटरी वेस्ट प्रोड्यूस करता है क्योंकि एस्टीमेट किया गया है कि एक वुमन अपनी रिप्रोडक्टिव ऐज में 6,000+ सैनिटरी पैड यूज़ करती है। अगर डी एस एन बाकी परसेंटेज को भी मिल जाऐं तो नंबर्स पता नहीं कहाँ पहुँच जाएंगे। एक कन्वेंशनल डिस्पोज़ेबल 90% प्लास्टिक से बना होता है जो आपको पता ही है ऑर्गेनिक वेस्ट को होल्ड करने के लिए कितना प्रोब्लेमैटिक सब्स्टेंस है।
हमारी मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट की चॉइस हमारे वर्ल्ड पर डायरेक्ट असर रखती है और ये कुछ फैक्ट्स हैं जो सिलेक्शन में आपकी मदद करेंगे।
डिस्पोज़ेबल सैनेटरी नैपकिन्स हेल्थ हैज़र्ड हैं
डी.एस.एन. और टैमपून में केमिकल, प्लास्टिसाइज़र और अर्टिफ़िशियल खुशबु के रूप में कार्सिनोजीन्स, एंडोक्राइन डिसरप्टर और सरफ़ेस इरिटैंट्स होते हैं। 'डायोक्सिन' केमिकल के बारे में पढ़ें। इसे वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईज़ेशन ने कार्सिनोजेनिक और इम्यूनोसप्रेसेन्ट के रूप में माना है। इसे पैड में काम आने वाली कॉटन और सेल्यूलोज़ वुड पल्प को ब्लीच करने में यूज़ किया जाता है ताकि वे हाइजिनिक दिखें। वजाइनल म्यूकस मेम्ब्रेन आसानी से इस कार्सिनोजेनिक को सोख सकती है जिसके कारण ब्लड स्ट्रीम में डाइऑक्सिन मिक्स हो सकता है और सर्वाइकल और ओवेरियन कैंसर के सिवा रिप्रोडक्टिव प्रॉब्लम और हार्मोनल इम्बैलेंस भी हो सकते हैं। बी.पी.ए. जैसे प्लास्टिसाइज़र्स और पैड में लगी सिंथेटिक लाइनिंग बैक्टीरिया एक्सपोज़र का रिस्क बढ़ा देते हैं जिससे वजाइनल इन्फ़ेक्शन हो सकता है। सैनेटरी पैड में सुपर अब्ज़ौरबेन्ट पॉलीमर भी होते हैं जो पेट्रोलियम के बाइप्रोडक्ट होते हैं जिनके कारण एलर्जी, रैशेज़ और रेयर केसेस में टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम भी हो सकते हैं।
बी.पी.ए. जैसे प्लास्टिसाइज़र्स और पैड में लगी सिंथेटिक लाइनिंग बैक्टीरिया एक्सपोज़र का रिस्क बढ़ा देते हैं जिससे वजाइनल इन्फ़ेक्शन हो सकता है ।.
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पर्यावरण के लिए घातक इंडिया में हमारे सैनेटरी वेस्ट डिस्पोज़ल का कोई स्टैण्डर्ड तरीका नहीं होता है। इस पर से मेंस्ट्रुअल पीरियड्स के साथ शेम व सीक्रेसी दोनों जुड़ी होती हैं जिसके कारण इनका डिस्पोज़ल इम्प्रॉपर होता है। वैसे भी डी.एस.एन. को डिसपोज़ करने का कोई सही तरीका नहीं होता है। यदि आप इसे गाड़ दें तो केमिकल सॉइल और ग्राउंडवॉटर में घुल जाएँगे, यदि आप इन्हें बर्न करें तो हानिकारक डायौकसिन हवा में मिक्स होगी, अगर आप फ़्लश करेंगे तो ड्रैन्ज़ क्लॉग होंगी और अगर आप इन्हें फेंक देंगे तो ये लैंडफ़िल में पहुँच जाएँगे जहाँ बायोकेमिकल वेस्ट — ब्लड — सालों तक वैसा का वैसा ही रहेगा क्योंकि उसे डिकम्पोज़ होने के लिए सनलाइट या मॉइस्चर नहीं मिलेंगे। जो हमारे लैंडफ़िल की कंडीशन है उसमें तो 'डिग्रेडेबल' सैनिटेरी पैड (कॉर्नस्टार्च, बैम्बू से बने हुए) भी नहीं डिकम्पोज़ हो पाएंगे।
जो हमारे लैंडफ़िल की कंडीशन है उसमें तो 'डिग्रेडेबल' सैनिटेरी पैड (कॉर्नस्टार्च, बैम्बू से बने हुए) भी नहीं डिकम्पोज़ हो पाएंगे।.
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क्लॉथ पैड फॉर द विन इंडिया में क्लॉथ पैड को मेंस्ट्रुअल हाइजीन प्रोडक्ट के फॉर्म में यूज़ करने का पुराना ट्रेडिशन है जो माइंडफ़ुल, हैल्थी और कन्वीनिएंट है। आज के क्लॉथ पैड डिस्पोज़ेबल जितने ही कनविनिएंट हैं। इनको वॉश कर के रियूज़ किया जा सकता है जिसके कारण वेस्ट भी कम होता है। ये अलग-अलग साइज़ और अब्सॉर्बैन्सी के लेवल के साथ आते हैं जिसके हिसाब से इनको डेली डिस्चार्ज, पीरियड फ्लो, माइल्ड इंकोंटिनेन्स और पोस्ट पार्टम ब्लीडिंग के लिए यूज़ किया जा सकता है। अधिकतर क्लॉथ पैड ऑर्गेनिक कॉटन से बने होते हैं। पैड के टॉप पार्ट पर सॉफ्ट फ़्लैनल कॉटन और अंदर अल्ट्रा अब्ज़ौरबेन्ट कॉटन होती है। इसमें कितनी लेयर्स होती हैं वो पैड के मॉडल पर डिपेंड करता है। पैड के बैक में पी.यू.एल. (पोलियूरिथेन लैमिनेट) की लीक प्रूफ लेयर लगायी जाती है।
इंडिया में क्लॉथ पैड को मेंस्ट्रुअल हाइजीन प्रोडक्ट के फॉर्म में यूज़ करने का पुराना ट्रेडिशन है जो माइंडफ़ुल, हैल्थी और कन्वीनिएंट है।
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मेन्स्ट्रूअल कप मेन्स्ट्रूअल कप मेडिकल ग्रेड सिलिकोन से बनता है। ये कम से कम सात साल चलता है। मेंस्ट्रुएशन के टाइम इसको टैम्पून की तरह बॉडी के अंदर पहना जाता है। लेकिन टैम्पून की तरह इसको एक यूज़ में डिस्कार्ड नहीं करना होता है। इसके फ़्लूइड को फेंक कर, वाश करके, दोबारा काम में लिया जा सकता है। यूज़ के बाद कप को सैनीटाइज़ करके अगले पीरियड तक रखा जा सकता है। मेन्स्ट्रूअल कप को यूज़ करने में थोड़ी प्रैक्टिस लगती है पर दो साइकिल में आप इसको मास्टर कर सकते हैं। और नहीं, ये कभी अंदर स्टक नहीं होगा। मेंस्ट्रुअल कप को अच्छे से इन्सर्ट करने से कप फ़ील ही नहीं होगा, कोई रैश या बर्निंग नहीं होगी और बिना किसी लीक के आपको ड्राई और क्लीन फ़ील होगा।
मेन्स्ट्रूअल कप को यूज़ करने में थोड़ी प्रैक्टिस लगती है पर दो साइकिल में आप इसको मास्टर कर सकते हैं। और नहीं, ये कभी अंदर स्टक नहीं होगा।.
फ़र्स्ट टाइम कप यूज़ कर रहे हैं? आगे पढ़ें ...
हम समझते हैं कि फ़र्स्ट टाइम यूज़ करने में काफी डाउट हो सकते हैं। इनमें से कुछ का जवाब हमने दिया है।
1. क्या कप अंदर खो सकता है?
रिलैक्स! आप पहले नहीं हैं जो ये सोच रहे हैं। ये सबसे कॉमन कंसर्न है। लेकिन अश्योर हो जाएँ ये नहीं होगा। कप का इन्ट्रिंसिक डिज़ाइन (कोन या कुछ केसेस में बैल शेप) ऐसा है कि जितना डीप वो जाता है उससे ज़्यादा जा ही नहीं सकता। जो ऊपर जाएगा वो नीचे आएगा ही।
2. अगर मैं उसे पुल आउट न कर सकूं? तकनीक ज़रूरी है जब कप को पुल आउट करने की बात हो तो और इसको मास्टर करने में ज़्यादा से ज़्यादा एक साइकिल या सिर्फ़ दो दिन ही लगेंगे। स्टेम को पिंच करके उसे हलके से साइड से साइड स्विंग करना है जब तक आप कप को ऑलमोस्ट फ़ील कर सकें और उस पॉइंट पर अपनी चारों फिंगर्स से उसको पकड़ें और जेंटली स्लाइड आउट लें। और इसे करते समय स्क्वाट पोज़िशन में रहना याद रखें।
3. अगर मैं इन्सर्ट नहीं कर सकूं? कप को इन्सर्ट करने के पहले फ़ोल्ड करने के बहुत सारे तरीके हैं — सी-फ़ोल्ड या ओरिगामी फ़ोल्ड, पंच-डाउन फ़ोल्ड आदि। आप ट्राई करके देखें आपके लिए क्या कम्फ़र्टेबल है। इन्सर्ट करते टाइम स्क्वाट करना याद रखें।
4. क्या वो स्टिंक करेगा? उसको कैसे वॉश करें? पैड की तरह कप से कोई ओडर नहीं आता है। नहाते समय सोप वॉटर से रिंस कर लें। हर साइकिल के पहले और बाद में बोइलिंग वॉटर के पॉट में 5-7 मिनट तक स्टरलाइज़ करें। ध्यान दें कि कप वेसल को टच न करें, बस फ़्लोट करे।
5. कप को डिस्पोज़ कैसे करूँ?
मेडिकल सिलिकॉन ग्रेड कम्पोस्टेबल नहीं होती है पर एनवायरनमेंट के लिए ज़्यादा हार्मफुल नहीं होती। इंटिमाडॉटकॉम सजेस्ट करती है कि मेडिकल ग्रेड सिलिकॉन का मतलब है "सिलिकॉन को एफ़.डी.ए. ने बायोकमपैटीबिलिटी के लिए टैस्ट और अप्रूव किया हुआ है तो उसे सेफ़ली और लम्बे समय के लिए अंदर पहना जा सकता है। मेडिकल ग्रेड सिलिकॉन हाइपोएलर्जिक, लेटेक्स-फ्री और टोक्सिन-फ्री है और नॉनपोरस भी है तो बैक्टीरिया की ग्रोथ रेज़िस्ट करती है।" आप उसके रीयूज़ के तरीके देख सकते हैं जैसे छोटे , पौटेड प्लांट्स को पानी देने के लिए या अपने लोकल हॉस्पिटल से चेक कर सकते हैं कि वो कैसे मेडिकल ग्रेड सिलिकॉन को डिस्पोज़ करते हैं और उसे अपना सकते हैं।
6. क्या ये क्रैम्प्स में मदद करता है? हाँ! कप के कारण हुआ सक्शन मेंस्ट्रुअल फ़्लो को इस तरह ड्रा करने में मदद करता है कि मेंस्ट्रुअल क्रैम्प कम हो जाते हैं।
7. क्या ये ज़्यादा सस्ता है? हाँ बिलकुल! एक रेगुलर पैड करीब-करीब 10 रूपए का होता है। सात साल की सप्लाई में करीब 6,000 खर्च होंगे। एक कप की कीमत सिर्फ 450 रूपए है। ये काफी बड़ी सेविंग है।
एक्सपर्ट व्यू: मेंस्ट्रुअल कप एक ऐसा डिवाइस है जिसे आसानी से रियूज़ और क्लीन किया जा सकता है जो इसे इकॉनौमिकाली औरएनवायरनमेन्टली सस्टेनबल बनता है।कुछ सैनेटरी पैड और टैम्पून की तरह इसमें ब्लीच या डायोक्सिन नहीं होते जिसके कारण ये नॉन-कार्सिनोजेनिक होता है। सिलास्टिक मटेरियल एक इनर्ट सब्सटेंस है और बहुत ही रेयर केस में रिएक्शन कॉज़ करता है। टैम्पून के मुकाबले उसकी टी.एस. एस. (टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम) कॉज़ करने की फ्रीक्वेंसी बहुत कम होती है। ये क्रैम्प को कम करने में भी मदद करता है क्योंकि ये वजाइना में सक्शन पैदा करके मेंस्ट्रुअल फ्लो कलेक्ट करता है। हर ऐज की वीमेन इसे यूज़ कर सकती हैं।
डॉ अश्विनी अजगाओंकर
एम.डी., डी.जी.ओ.
1993 से मुंबई में कंसल्टिंग गायनेकोलॉजिस्ट
नेहा साहित्य, क्लासिक रॉक और फुटबॉल पसंद करने वाली फ़ुल-टाइम मॉमी-ब्लॉगर है। ट्रेवल के शौक रखने वाली नेहा को आप अक्सर अपनी बेटी को पढ़कर सुनाते हुए या प्लास्टिक का सबसे अच्छा विकल्प खोजते हुए पा सकते हैं!