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फ़ास्ट फ़ैशन को आउट-ओफ़-स्टाइल क्यूँ हो जाना चाहिए

फ़ास्ट फ़ैशन को आउट-ओफ़-स्टाइल क्यूँ हो जाना चाहिए

Neha Talwalkar
  • फ़ैशन इंडस्ट्री दुनिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्रीज़ में से एक है जो ग्लोबल जी.डी.पी. का 2% बनाती है और सबसे बड़े पोल्यूटैंट्स की लिस्ट में सिर्फ़ तेल के नीचे है।

क्या आपको पता था:

  1. ग्लोब्ली हम 80 बिलीयन नए क्लोदिंग को हर साल कनज़्यूम करते हैं — दो दशक पहले के कंसम्पशन से 400% ज़्यादा।
  2. एक एवरेज पर्सन आज पहले से 60% ज़्यादा कपड़े खरीदता है और उनको पहले से आधे समय के लिए ही रखता है ।
  3. एक गारमेंट को कितनी बार पहना जाता है उसका एवरेज भी 36% घट गया है — और इसीलिए वो रीसाइक्लिंग से रिपरपस होने की जगह लैंडफिल में जा के ग्राउंडवाटर को पोल्यूट कर रहा है।

ये सिर्फ आइसबर्ग की टिप है । आसानी से मिलने, अफोर्डेबल होने और हर समय बदलते ट्रेंड के कारण फैशन इंडस्ट्री में कंस्यूमर डिमांड बढ़ती जा रही है और ये इन्डस्ट्री वहाँ पर कंजूसी कर रही है जहां सबसे ज़्यादा फ़र्क पड़ता है — हमारे प्लैनेट के रिसोर्सेज़ पर ।

आपके पैन्ट्स पर प्लास्टिक है!
आपने कभी सोचा है आप कपड़े किसके बने हैं और कैसे प्रोड्यूस होते हैं? पॉलिएस्टर, नायलोन और ऐक्रेलिक (जो सिंथेटिक फाइबर फ़ास्ट फैशन ब्रांड्स सबसे ज़्यादा यूज़ करते हैं) एक तरह के प्लास्टिक हैं जो पेट्रोलियम से बनते हैं और ब्रेक डाउन होने में 200 साल लेता है। 63% टेक्सटाइल फायबर पेट्रोकेमिकल से बनते हैं; जिसका मतलब ये है की आपके वार्डरॉब का बड़ा हिस्सा शायद प्लास्टिक ही है। हर बार जब हम इसे वाश करते हैं, ये लाखों प्लास्टिक के माइक्रोफाइबर रिलीज़ करते हैं जो प्लास्टिक के 5 एम.एम. साइज़ से छोटे पार्टिकल्स होते हैं और ह्यूमन हेयर के एक स्ट्रैंड से भी पतले हैं । ये इतने छोटे होते हैं की हमारी वाशिंग मशीन से ड्रेन होकर वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट से पास होते हुए हमारे समुद्रों और महासागरों में जाते हैं । ये पार्टिकल्स वहाँ इंडेफिनिटली बने रहते हैं और हमारे और एक्वेटिक लाइफ़ के लिए खतरा बन जाते हैं । प्लैंकटन जैसे छोटे क्रीचर इनको खा लेते हैं और फ़ूड चेन के ज़रिये मछली के रास्ते ये हम तक पहुँच जाते हैं ।

63% टेक्सटाइल फायबर पेट्रोकेमिकल से बनते हैं जिसका मतलब ये है की आपके वार्डरॉब का बड़ा हिस्सा शायद प्लास्टिक है।.’

कॉटन भी सांस नहीं ले पाता है
कॉटन जैसे नेचुरल फाइबर भी पानी जैसे कम होते नेचुरल रिसोर्सेज पर कहर ढाते हैं । इंडिया में कॉटन उगाने के लिए जितना पानी लगता है वो हमारी 85% डेली वाटर नीड्सको पूरा कर सकता है । इंडिया में 100 मिलियन लोगों को ड्रिंकिंग वाटर का एक्सेस नहीं है । एक कॉटन की शर्ट को बनाने में 2,700 लीटर पानी लगता है ।इतना पानी एक इंसान अपने जीवन के 2.5 सालों में पीता है!

The water used to grow cotton in India could cover 85% of the country’s daily water needs.’

इमेज सोर्स: आईस्टॉक

और कार्बन फुटप्रिंट्स …?! टेक्सटाइल प्रोडक्शन बहुत कार्बन इंटेंसिव है और ये शिपिंग और एविएशन के कंबाइंड इम्पैक्ट से भी ज़्यादा ग्रीनहाउस गैसेस छोड़ता है । हर सेकंड, एक गार्बेज ट्रक जितनी टेक्सटाइल्स या तो लैंडफिल में डाली जाती हैं या जलाई जाती हैं । अगर कुछ नहीं बदलता है तो 2050 तक फैशन इंडस्ट्री दुनिया का 25% कार्बन बजट यूज़ कर लेगी ।और जब तक कोई बड़ी तबाही नहीं होती है, फ़ास्ट फैशन के स्लो डाउन होने का कोई आसार नहीं दिख रहा है।

अगर कुछ नहीं बदलता है तो 2050 तक फैशन दुनिया का 25% कार्बन बजट यूज़ कर लेगी.’

ग्रीन टिप्स

  • किसी नए शर्ट/स्कर्ट/ट्रॉउज़र को देखते समय सोचें की क्या आप उसे 30 बार से ज़्यादा पहनेंगे? अगर नहीं, तो उसे छोड़ दें
  • If you absolutely must buy, consume consciously and responsibly by reading the labels first. Look for the ‘Made From’ on your label – is your item made from Natural Fabrics like Cotton or Synthetic Fabrics like Polyester or is it a blend? Natural is always better! With Natural Fabrics, Material Certifications like GOTS (Organic Cotton Certification) are preferred. Care Instructions on Labels is important as the better you follow them, the longer your clothes will last, and stay out of landfills.
  • रीसाइकल्ड मटेरिल बेस्ट चॉइस है, क्यूंकि जो आलरेडी मौजूद है वो नए रिसोर्सेस पर प्रेशर काम करता है और डिस्पोज़ ऑफ़ करने के बर्डेन को कम करता है । आप बड़े इवेंट्स के लिए रेंटल सर्विसेज़ जैसे फ्लाईरोब या द क्लोदिंग रेंटल यूज़ कर सकते हैं ।
  • सिम्पल तरीके अपनाकर अपने कपड़ों की लाइफ बढ़ाइए जैसे कपड़ों को कम धोना, ठन्डे पानी में धोना, तभी धोना जब मशीन भरी हुई हो, लाइन ड्राई करना और समय रहते तरीके सुधार लेना ।

समय बीत रहा है । फैशन इंडस्ट्री को उसी एक ट्रेंड को अपनाना चाहिए जो सबसे ज़्यादा मैटर करता है — सस्टेनेबिलिटी।

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